Home खास खबर मिशन 2019: उत्तर भारतीयों के सहारे चुनावी नैय्या पार करेंगे राज ठाकरे

मिशन 2019: उत्तर भारतीयों के सहारे चुनावी नैय्या पार करेंगे राज ठाकरे

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हमार पूर्वांचल

मुंबई में हमेशा क्षेत्रवाद का शिकार होने वाला उत्तर भारतीय समाज राजनीतिक मोहरा बनता रहा है। इसके बावजूद भी मायानगरी में कभी उत्तर भारतीयों को सम्मान की जिंदगी नहीं मिल पायी है। कांग्रेस के बाद शिवसेना ने इन्हीं उत्तर भारतीयों को मोहरा बनाकर सत्ता हासिल की अब वहीं दांव आजमाने जा रहे हैं उत्तर भारतीयों के धुर विरोधी व मनसे प्रमुख राज ठाकरे। जो उत्तर भारतीयों के सहारे चुनावी नैय्या पार करने की जुगत में भिड़ गये हैं। गौरतलब हो कि रोजी रोटी की तलाश में मुम्बई गये उत्तर भारतीय हमेशा राजनीति के चलते क्षेत्रवाद का शिकार होते रहे हैंं। क्षेत्रवाद की गंदी राजनीति ने जहां कई उत्तर भारतीयों को घर से बेघर किया है वहीं कितने लोगों ने अपनी जान गंवा दी है। इस लड़ाई में हमेशा उत्तर भारतीयों का नुकसान हुआ है, किन्तु शिकार होने वाले उच्च वर्गीय उत्तर भारतीय नहीं बल्कि वे लोग हुये हैं जो झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं और सड़क के किनारे चलती-फिरती दुकानें लगाकर अपनी जीविका कमाते हैं।
ऐसे लोगों का इस्तेमाल हमेशा राजनीतिक दल करते रहे हैं। यदि हम कुछ वर्ष पीछे जायें तो महाराष्ट्र में रहने वाला उत्तर भारतीय समाज कभी कांग्रेस का वोटर हुआ करता था। उस समय शिवसेना क्षेत्रवाद के नाम पर उत्तर भारतीयों का विरोध करती थी और वहीं डर दिखाकर कांग्रेस उत्तर भारतीयों का वोट लेती थी। उत्तर भारतीयों के विरोध से उभरकर आयी शिवसेना भले ही क्षेत्रवाद के नाम पर उत्पीड़न करती रही हो किन्तु इन्हीं का समर्थन न मिलने के कारण सत्ता में अपनी पकड़ नहीं बना रही थी। इसका सबसे प्रमुख कारण यह था कि कई क्षेत्रों में उत्तर भारतीयों का वोट चुनाव की दिशा को बदल देता था।
धीरे-धीरे शिवसेना को यह समझ में आ गया कि बिना इन्हें मिलाये चुनावी नैय्या पार करना मुश्किल होगा। इसलिये उत्तर भारतीय नेताओं को लालच देकर अपने साथ मिलाना शुरू कर दिया था। सच तो यह है कि शिवसेना को उत्तर भारतीयों की अस्मिता से कोई लेना-देना ही नहीं था बल्कि वह भी उसी तरह की राजनीति करती थी जैसे कांग्रेस। डर की इस राजनीति का फायदा कुछ नेताओं ने उठाया और कुर्सी हासिल कर ली।
कांग्रेस से शुरू हुई डर की राजनीति का सफर शिवसेना के साथ भी चलता रहा। उत्तर भारतीयों को लगा कि यदि वह शिवसेना के साथ रहेगी तो उसके साथ भेदभाव नहीं होगा और वे भी सम्मान की जिंदगी जीना शुरू कर देंगे, लेकिन यह एक दिवास्वप्न ही था। इसी बीच महाराष्ट्र में राज ठाकरे की महात्वाकांक्षा ने उत्तर भारतीयों के लिये फिर मुसीबत खड़ी कर दी। महाराष्ट्र नव निर्माण सेना नामक पार्टी गठन करने के पश्चात राज ठाकरे को लगा कि यदि पार्टी को चर्चा में लाना है तो सबसे पहले उत्तर भारतीयों को ही निशाना बनाना होगा। इसका परिणाम यह हुआ कि जगह-जगह उत्तर भारतीयों के खिलाफ आग भड़कना शुरू हो गयी। जहां उत्तर भारतीय कम संख्या में मिलते उन्हें मारा-पीटा जाने लगा। कई लोगों के घर उजड़ गये तो कई परिवार अनाथ हो गये।
इस दौरान यह भी देखा गया कि उत्तर भारतीय समाज का ठेका लेने वाले नेता अपनी चुप्पी साधे रहे। जिस समाज के नाम पर उत्तर भारतीय नेताओं ने सत्ता की चाशनी चाटी, उनकी जुबान पर ताले लग गये। इसका परिणाम यह रहा कि गरीब तबके का उत्तर भारतीय हमेशा शिकार बनता रहा।
लोकसभा चुनाव के पहले एक बार फिर राजनीतिक हालात बदलने की कवायद शुरू हो गयी है, और डर की राजनीति का यह सिलसिला शुरू कर रहे हैं उत्तर भारतीय समाज के धुर विरोधी राज ठाकरे। कई चुनावों में मुंह की खा चुके राज ठाकरे को शायद अब समझ में आ गया है कि बिना उत्तर भारतीयों को मिलाये चुनावी नैय्या पार करना मुश्किल है। लिहाजा स्थानीय और उत्तर भारतीयों को एक मंच पर लाने की पहल शुरू कर दी है।
बता दें कि महाराष्ट्र में विधानसभा की कुल 113 सीटें ऐसी हैं जिनपर उत्तर भारतीयों के वोट अपना प्रभाव डालते हैं। इन वोटों पर पकड़ बनाये बिना कोई भी राजनीतिक दल सत्ता की चाभी अपने पास नहीं रख सकता है। गौर करने वाली बात यह भी है कि महाराष्ट्र में बना एक भी उत्तर भारतीय समाज का संगठन ऐसा नहीं है जो किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के चंदे से चलता हो। देखा जाता है कि उत्तर भारतीयों के हक और सम्मान की रक्षा करने के लिये संगठन बनाकर कुछ नेता पहले इनके हितैषी बनते हैं और फिर पार्टिंयों के फंड पर अपना खर्चा चलाने के लिये इसी समाज का सौदा कर लेते हैंं।
ऐसा ही एक बार फिर होने जा रहा हैं। राज ठाकरे को शायद अब एहसास हो गया हैं की बिना उत्तर भारतीयों  की मदद के वे सत्ता का सुख नही भोग पाएंगे। हालंकि उत्तर भारतीयों को अपने पक्ष में करने के लिए जिस नाव की सवारी राज ठाकरे करने जा रहे हैं वह अभी एक डूबती नाव ही हैं। जिसका वजूद अभी मुम्बई की धरती पर खड़ा नही हो पाया हैं, किन्तु सोशल मीडीया के दौर में फेसबुक और व्हाट्सऍप पर संचालित हो रहे, ऐसे संगठनो से राज ठाकरे अपनी चुनावी नैय्या पार करेंगे या बीच मझधार में डूब जाएंगे ? यह आने वाला वक्त ही बताएगा।

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