उत्तरप्रदेश में चुनाव डेहरी पर है। सत्ताधारी भाजपा समेत मुख्य विपक्षी सपा और अन्य राजनैतिक दलों की तैयारियां चरम पर हैंं। भाजपा अपनी सरकार को स्थिर बनाये रखने का हर जुगत जतन कर रही है। वहीं सपा को अपनी सरकार बनने का अतिविश्वास है। कांग्रेस प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में लड़की हूं लड़ सकती हूं के नारे के दम पर अपनी मौजूदगी को मजबूती देने लगी है। किन्तु बसपा उम्मीद के विपरीत भूमिगत बनी पता नहीं किस रणनीति के घात में है। भाजपा के पुराने साथी प्रमसपा नेता ओमप्रकाश राजभर सपा के साथ मिलकर भाजपा को नेस्तनाबूद करने की कसम खाते घूम रहे हैं। हैदराबादी ओवैसी मुस्लिम बिरादरान को अपने कौम के मजबूत वजूद के लिये लामबंद होने की अपील कर रहे हैं। अन्य छोटे दल भी कुछ सपा तो कुछ भाजपा के साथ मिलकर चुनावी समर के मैदान में हैं। वायुद्ध तेज हो गया है। एक बार फिर नैतिक मर्यादायें तार—तार हो रही हैं। एक दूसरे की बुराईंया खोज—खोजकर जनता के बीच बतायी जाने लगी हैं। बात पाकिस्तान के जिन्ना से लेकर तानाशाह औरंगजेब और गाजी सालार तक पहुंच गयी हैं। अब तो भारत में ऐसी बातें आम हो गयी हैं। किन्तु इस बार हद तो तब हो गयी। जब उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री के नरेन्द्र मोदी के दो दिवसीय काशी प्रवास को उनकी अंतिम यात्रा बता दिया। हालाकि बाद में उन्होंने यह कहकर अपनी सफाई दी कि वे मोदी के लिये नहीं बल्कि भाजपा के लिये अंतिम यात्रा की बात कही थी।
जो भी हो किन्तु इसके तरह—तरह के मायने निकाले जाने लगे हैं। मोदी के प्रति अखिलेश के उक्त कथन को सपा समर्थक यह कहकर बचाव किया कि समाजवादी डरता नहीं बल्कि कहता और करता है। सपाईयों के अनुसार भाजपा जा रही है और सपा आ रही है। ऐसे में भाजपा सरकार की काशी यात्रा उसकी अंतिम यात्रा नहीं तो और क्या है। किन्तु अन्य लोग इसे अखिलेश की बौखलाहट मान रहे हैं। जो उनके सजते संजोते सपने को मूर्तरूप लेने से पूर्व ही ध्वस्त हो जाने की आशंका में बदल दिया है। ऐसा मोदी को काशी पहुंचने एवं काशी की धरा से किये गये उद्बोधन में औरंगजेब गाजी सालार के कारनामों के प्रतिकार उठ खड़े हुये मराठा राजा शिवाजी और महाराज सुहेलदेव राजभर के इतिहास में दबी बातों को उजागर करने से हुआ। फौरी तौर पर मोदी ने प्रसंगवश औरंगजेब और गाजी सालार के कार्यकाल के इतिहास में दबी इबारत को जनता के सामने उजागर किया। किन्तु इसके सियासती मायने इतने गहरे जुड़ गये कि सालों से अखिलेश यादव ओमप्रकाश राजभर ओवैसी और कांग्रेस द्वारा भाजपा के खिलाफ की जा रही राजनैतिक मशक्कत की हवा निकाल दी। हिन्दुस्तान के बंटवारे उस दौर में हुये खूनखराबे के जिम्मेदार और पाकिस्तान बनाने वाले आजम जिन्ना को देश के सरदार पटेल जैसे स्वतंत्रता सेनानियों से तूलना करने का दुस्साहस कर जो अखिलेश यादव वर्ग विशेष में सपा की खिसकती छवि को वापस लाने की जुगुत की थी। वह सारी मेहनत मोदी के औरंगजेब पलभर में तार—तार कर दिया।
सपा से दुराव रखने वाले जो लोग अखिलेश यादव को जिन्नावादी कहकर लानत दे रहे थे। ओमप्रकाश राजभर को भी सपा प्रमुख का साथ देने के लिये कोस रहे थे। उनलोगों को भी मोदी की इतिहास वाली बातों से बल मिला। गाजी सालार के खिलाफ महाराज सुहेलदेव राजभर की वीरगाथा याद कर राजभर समाज को जिस तरह एक वाक्य से मोदी ने गदगद किया वह ओमप्रकाश के लिये पैर के नीचे से जमीन खिसकने जैसा रहा। एक साथ दोहरा वार। यानि अखिलेश के जिन्नावाद पर औरंगजेब के कारनामों का प्रहार जहां सपा को बहुसंख्यक समर्थको दूर कर सकता है। वहीं पूर्वाचल में प्रभावशाली उनके नये साथी ओमप्रकाश राजभर को भी मोदी का गाजी सालार प्रसंग उनके सपा प्रेम के कारण राजभर समाज से दूर कर सकता है। ऐसे में सत्ता के मुहाने पर पहुंचने का आत्मविश्वास पाले अखिलेश यादव को यदि कोई पत्रकार कुरेदे और मोदी के काशी प्रवास के असर का सवाल पूछे तो स्वाभाविक है कि बौखलाहट में कुछ ऐसा असर पहुंच सकता है जो उनके सार्वजनिक छवि पर असरकारक हो।
शायद कुछ ऐसा ही हुआ जब अखिलेश यादव ने मोदी के काशी प्रवास को उनकी अंतिम यात्रा की संज्ञा दे दी। और अपनी गलती का अहसास होते ही सफाई पर उतर आये।
जो भी हो किन्तु मोदी का काशी प्रवास भाजपा का चुनावी आयोजन नहीं था। यह बाबा विश्वनाथ धाम के कारीडोर के प्रथम फेज का लोकार्पण समारोह था। जिसे पूर्ण आस्था परम्परा और वैदिक विधि से पूरा करने के बाद मोदी ने सार्वजनिक उद्बोधन किया। प्रसंग बाबा विश्वनाथ मंदिर परिसर के आधुनिककरण का था। इतिहास में भारतीय आस्था केन्द्रों पर किनके किनके द्वारा प्रहार हुआ। प्रसंगवश औरंगजेब और गाजी सालार का नाम उद्बोधन में आ गया। जिसे लेकर सियासत में तरह तरह के कयास जारी हैं।
जो जिस नजर देखता है। वह उस नजर से सोचता है। कोई इसे पुरातन भारत की आधुनिक आभा मानता है। तो कोई इसे विस्मृत विरासत को संजोने का भगीरथ प्रयास। कोई इसे सुप्त भारतीय संस्कृति के उदय काल का प्रभात कह रहा है तो कोई इसे भाजपा का राजनैतिक प्रपंच। किसी की नजर में मोदी भारत की भारतीयता के लिये देवदूत हैं। तो कोई उन्हें समाज के लिये बड़ा खतरा मानता है। कोई उन्हें राष्ट्र के महानायक की संज्ञा दे रहा है तो कोई उन्हें नये भारत का उर्जाश्रोत कहता सुना जा रहा है। गैर भाजपाई राजनैतिक दलों के लोगों के लिये मोदी देश के लिये अभिषाप हैं। तो अधिसंख्य जनता की नजर में मोदी भारत के लिये वरदान। जो भी हो जिसकी जैसी भावना वह उस नजरिये से मोदी को देखता को देखता और उनके कार्यों का मूल्यांकन कर रहा है। इन्हीं लोगों में से एक पीएल पाराशर हैं। जो पेशे से बौद्धिक श्रेणी से हैं। उनकी नजर में मोदी का काशी प्रवास विशुद्ध आस्था और अध्यात्मिक यात्रा है। उनका संबोधन नितांत प्रसंगवत और गैर राजनैतिक है। किन्तु श्री पाराशर जी यह मानते हैं कि यदि संयोगवश मोदी के कुछ वाक्य किसी के लिये अशुभ हो जाये तो उसमें मोदी की नहीं बल्कि उसकी भूल है। जो सत्तासुख के लिये नीति अनीति का विचार नहीं करता। मोदी के काशी प्रवास पर दिये गये उद्बोधन पर श्री पाराशर की चंद पंक्तियां ..
बड़ी साफगोई से इतिहास गाया।
किसी को हंसाया किसी को रूलाया ।
किसी की धमनियों में आया उबाल।
किसी का कलेजा हुआ तार—तार।
काशी की धूरी बाबा का त्रिशूल।
किसी के लिये फूल तो किसी के लिये शूल।।