Home मुंबई एअर स्ट्राइक से भी कारगर है मोदी का यह हथियार

एअर स्ट्राइक से भी कारगर है मोदी का यह हथियार

एनडीए । साभार—गूगल

लोकसभा चुनाव 2019 की घोषणा होने के बाद यूपी में सपा,बसपा और कांग्रेस के साथ आने की खबरें मीडिया में छायी रही। समाचार चैनल से लेकर अखबारों और सोशल मीडिया में तीनों पार्टियों के बीच सीटों का बंटवारा तक बता दिया गया और कांग्रेस को 15 सीटें मिलेंगी, इसकी भविष्यवाणी कर दी गई। लेकिन ऐसा अब होता नहीं दिख रहा क्योंकि मायावती खुद प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं और कांग्रेस पहले से ही राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मान चुकी हैं।

मीडिया में प्रमुखता से दो पार्टियों भजपा ओर कांग्रेस के बीच ही मुकाबला दिखाया जा रहा है किन्तु देखा जाए तो देश में इस वक्त दो नहीं, पांच गठबंधन मैदान में आ गए हैं। पहला गठबंधन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एनडीए है। दूसरा गठबंधन राहुल गांधी का यूपीए है। तीसरा गठबंधन मायावती-अखिलेश यादव का महागठबंधन है जिसे वे अब महापरिवर्तन के नाम से बुलाने लगे हैं। चौथा गठबंधन ममता बनर्जी ने बनाया है जिसे वे फेडरल फ्रंट के नाम से बुलाना पसंद करती हैं। पांचवां गठबंधन तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर का है जिसका अभी सिर्फ नेता तय हुआ है, नाम और पार्टनर नहीं मिल रहे हैं।

साभार—गूगल

भाजपा के नेताओं से बात करें तो पिछले दो महीने में पार्टी ने अपनी रणनीति पूरी तरह बदल दी है। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया, ‘पहले आक्रामक और कभी-कभी अहंकारी साउंड करने वाले अमित शाह ने पुराने सहयोगियों को किसी भी कीमत पर रोकने और नए सहयोगियों को ढूंढने का काम करीब-करीब पूरा कर लिया है। ऐसा सीधे प्रधानमंत्री के निर्देश पर हुआ है। इसी का नतीजा है कि भाजपा ने अपने सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना की करीब करीब सभी मांगें मांन लीं और नई और छोटी सहयोगी पार्टी अपना दल को भी दो सीटें दे दीं।’

भाजपा का अपना आतंरिक सर्वे बताता है कि आज चुनाव हुए तो भाजपा 250 और एनडीए तीन सौ पार नहीं कर पाएगा। जबकि नारा अबकी बार 400 पार का दिया गया है। इस वक्त भी पांच ऐसे बड़े राज्य हैं जहां भाजपा को मजबूत सहयोगी नहीं मिले हैं। केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा ऐसे चार राज्य हैं जहां सीटें सौ के करीब हैं लेकिन, भाजपा के अपने अनुमान के हिसाब से भी इन चार राज्यों में दस सीटें से ज्यादा नहीं मिल रही है। पांचवां राज्य पश्चिम बंगाल है जहां सीटें 42 हैं लेकिन भाजपा के पास न ममता जैसा कोई बंगाली नेता है, न ही कोई मजबूत सहयोगी।

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भाजपा को अभी यह समझ में नहीं आ रहा है कि यदि उत्तर प्रदेश में पार्टी को भारी नुकसान हुआ तो उसकी भरपाई किस राज्य से होगी। भाजपा पश्चिम बंगाल में पूरी ताकत लगा रही है लेकिन वहां ममता की पकड़ इतनी मजबूत है कि माहौल नहीं बन पा रहा है।

दूसरी तरफ राहुल गांधी की पार्टी अभी समीकरण बिठा रही है। 24 अकबर रोड में बैठने वाले महत्वपूर्ण नेता कुछ दिन पहले कांग्रेस का गेम प्लान कुछ पत्रकारों को समझा रहे थे। उनके मुताबिक भाजपा की तुलना में कांग्रेस की मुश्किल एकदम अलग है। कांग्रेस को फिलहाल सहयोगियों की इतनी चिंता नहीं है। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अपनी पार्टी का आंकड़ा 150 तक पहुंचाना चाहता है जिसके बाद बाकी भाजपा विरोधी दल खुद आ जाएंगे, लेकिन अगर कांग्रेस का अपना आंकड़ा 100 से नीचे ही रह गया तो राहुल गांधी का प्रधानमंत्री बनना नामुमकिन है। इसलिए बिहार में तेजस्वी यादव से कांग्रेस ने जमकर मोलभाव किया और एक-एक सीट के लिए पूरी ताकत लगाई।

उत्तर प्रदेश में भी इसीलिए गठबंधन के आसार एकदम खत्म हो गए हैं। राहुल गांधी और प्रियंका ने यहां की 20 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है जोकि महागठबंधन के साथ लड़कर पूरा होना बहुत मुश्किल है। इसकी वजह यह है कि मायावती और अखिलेश कांग्रेस को दस से ज्यादा सीट देने के लिए तैयार नहीं हैं। मायावती खुद को प्रधानमंत्री बनने का सबसे उपयुक्त उम्मीदवार मान बैठी हैं इसलिए वे उत्तर प्रदेश की नेता की तरह नहीं एक राष्ट्रीय नेता की तरह आगे बढ़ रही हैं। समाजवादी पार्टी से उन्होंने पूरे देश में गठबंधन किया है और इसी तरह आंध्र प्रदेश में भी वे अभिनेता पवन कल्याण की जन सेना पार्टी से हाथ मिला चुकी हैं। पहले मायावती के दरबार में आना-जाना बड़ा मुश्किल था और मीडिया को भी मायावती के यहां आने से पहले सख्त हिदायत दी जाती थी, लेकिन अब मायावती बिल्कुल बदल गई हैं और कैमरे के सामने आना और बात करना हर दिन की बात होती जा रही है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास भी प्रधानमंत्री बनने का एक मौका है, यह बात दिल्ली से लेकर कोलकाता तक उनकी पार्टी के सांसद फैला रहे हैं। दिल्ली में ममता बनर्जी के सबसे विश्वस्त माने जाने वाले एक राज्यसभा सांसद ने कुछ वरिष्ठ पत्रकारों को अकेले में मिलकर ब्रीफ किया था और उन्हें दीदी की रणनीति के बारे में बताया। ममता की पार्टी को लगता है कि मोदी के बाद अगर किसी नेता का सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री बनने का चांस है तो वह हैं ममता बनर्जी। पश्चिम बंगाल की 42 में से 40 सीटें जीतने का टारगेट उन्होंने रखा है। बाकी देश से दस सीटें जीतने का प्लान भी ममता ने बनाया है।

तृणमूल कांग्रेस मानती है कि अगर उसकी 50 सीटें अकेले दम पर आ गई तो खिचड़ी सरकार का नेतृत्व ममता कर सकती हैं। इसलिए जब राहुल गांधी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ने का न्योता ममता बनर्जी को दिया तो उन्होंने अपने अंदाज़ में कहा कि उन्हें अपने गठबंधन का नाम बदलना होगा। ममता के एक करीबी सूत्र ने बताया कि जब पिछली बार ममता बनर्जी और राहुल गांधी की मुलाकात हुई तो कांग्रेस की तरफ से सभी विपक्षी पार्टियों को यूपीए के अंदर आकर संयुक्त विपक्ष के तौर पर चुनाव लड़ने की सलाह दी गई थी। इस पर ममता का कहना था कि यूपीए ही क्यों, कांग्रेस को फेडरल फ्रंट में आना चाहिए। फेडरल फ्रंट ममता ने बनाया है और इसकी नेता वे खुद हैं। ममता का कहना था कि यूपीए नाम 2009 से 2014 के मनमोहन सिंह सरकार की याद दिलाता है जिन पर कई दाग थे। यह बातें बेहद चुभने वाली थी क्योंकि फेडरल फ्रंट में जाने का मतलब था राहुल गांधी खुद ही ममता बनर्जी को नेता मान लें जो नामुमकिन है। इसलिए संयुक्त विपक्ष का गठबंधन बनेगा यह बात अब करीब करीब खत्म हो गई है। ममता के पास अब सहयोगी के नाम पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं जिनकी कांग्रेस से बातचीत खत्म हो चुकी है। ऐसे में मोदी के खिलाफ कौन? भाजपा के पास यही सबसे बड़ा हथियार है जो उसे एयर स्ट्राइक से भी ज्यादा कारगर दिख रहा है।