कल्याण: पुत्र रत्नो की लम्बी आयु के चाहत मे रखा गया यह पर्व जिसे आमतौर पर बोलचाल की भाषा मे जिऊतिया भी कहा जाता है! इस दिन मातांए पुरे दिन रात तक यानी 24 घंटो तक निर्जला उपवास रखती है, जिस व्रत मे भोजन ग्रहण करना तो दूर फलाहार लेना तथा पानी पीने से भी परहेज रखती है।
गौरतलब हो कि आश्विन मास में अष्टमी के रोज किया गया यह व्रत महिलाओ के लिए काफी असहनीय होती है, बावजूद इसके महिलाएं अपनी संतानो की लम्बी उम्र की दुआओं की आकांक्षा मे इसे करने से तनिक भी परहेज नही करती। ज्ञातव्य हो कि सूर्योदय के पहले ही महिलाए अन्न जल ग्रहण कर लेती है, उसके बाद पूरे दिन रात तकरीबन 24 घंटो तक इस व्रत का स्वच्छता से पालन करती हैं !
यहां तक कि कितनी माताएं इस पवित्र उपवास व्रत के दरम्यान घर के रोजमर्रा के काम करने पर भी फूंक फूंक कर कदम रखती है जिसमें इन्हे और पारिवारिक सदस्यो हेतु रोटी बनाने की भी मनाही रहती है। स्नान करने के पश्चात बालो का लट बनाना या बालो मे कंघी आदि फिराने तक भी मनाही रहती है। कहा तो यह भी जाता है कि माताओ के खुले हुए बालो से जो नहाने के पश्चात पानी की जो बूँदे टपकती है उसे देख पितर पूर्वजो को तृप्ती भी मिलती है। बतातें चलें कि 2 अक्टूबर को मंगलवार की शाम 4 बजे के बाद से महिलाओ ने अपनी अपनी टोली बनाकर इस व्रत का कथा श्रवण भी देखा गया जिसमें कल्याण पूर्व के चिंचपाङा रोड स्थि गांवदेवी मंदिर, बजरंग कालोनी तथा कैलाशनगर में महिलाओ द्वारा गीत मंगल गान एवं जिऊतिया माई के कथा पाठ के दृश्य भी दिखें। ज्योतिषाचार्य लवकुश महाराज के कहनानुसार इस व्रत का पारण एवं समापण 3 अक्टूबर को बुधवार के दिन सूर्योदय वेला परांत होगा ।