समाजवादी पार्टी के संस्थापक एवं पूर्व रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव का ससुर द्वारा रोपित और जेठ अखिलेश द्वारा पोषित घर की सपा को छोड़कर भाजपा में जाना एक बड़ी राजनीतिक घटना है। इसे वर्तमान दौर के राजनीतिक मौकापरस्ती अथवा सत्ता लोलुपता के रूप में नहीं लिया जा सकता। एक विचारशील यौवना की साहसिक हिम्मत और अन्य युवाओं के लिए प्रेरणा की दिलेरी है। जो अपने विचारों पर जीना और उस पर चलकर समाज और राष्ट्र के लिए कुछ करना चाहते हैं।
अपर्णा यादव का भाजपा में जाना औरों के लिए भले ही एक राजनीतिक खेल हो। खुद भाजपा भी इसे चाहे सत्ता के लिए भुनाये। किंतु वास्तव में यह एक ऐसी घटना है जो भारत के राजनीतिक भविष्य की रूपरेखा तय करेगी। भारतीय राजनीति का चालू दौर सत्तामुखी है। सत्ता के लिए बड़े-बड़े दिग्गज भी विचारों से समझौता और ध्रुवविरोधी दलों से भी दिल मिलाते दिख रहे हैं। देखा जाए तो विचार आधारित राजनीतिक दल सिर्फ ढांचा ही रह गए हैं। उनके संचालक अथवा कार्यकर्ता तो किन्ही और विचारवादी दलों से आकर डेरा जमा लिए हैं। दल तो अब सत्ता के साधन बनकर रह गए हैं। ऐसे मैं यदि अपर्णा यादव जैसी युवती अपने विचारों से मेल खाती भाजपा में जाने की हिम्मत दिखाई तो यह उसके साहस की पराकाष्ठा ही है। उसके लिए पद अथवा सत्ता सुख के साधन उसके घर में ही हैं। वह जहां से चाहती सपा उसे टिकट दे देती। पार्टी में वह जो पद चाहती सपा वह पद देती। सपा में वह एक झटके में बड़ी नेता बन जाती। बावजूद उसके वह सपा में रुचि नहीं ली। उसे पद और रूतबा भी गौड़ तथा विचार महत्वपूर्ण लगा। भाजपा में जाने का निर्णय भी अपर्णा यादव के लिए आसान नहीं रहा होगा। वह अनेका अनेक वैचारिक द्वन्दो जूझी होगी। एक तरफ परिवार, परिवार के लोगों द्वारा स्थापित एवं संचालित सपा जैसी पार्टी होगी तो दूसरी तरफ विचार धारणा और वह सोच जिसे वह बचपन से सोचती आयी होगी। दोनों के द्वन्द में संभवत उसे अपना विचार महत्वपूर्ण लगा होगा। तभी तो अपने परिजनों के सुझाव विचार और सपा की राजनैतिक अहित की बात को परे ढकेल अपने विचार को स्वच्छन्दता से जीने के लिए भाजपा का आंचल थाम लिया।
इससे भी बड़ी बात तो वह है कि जो अपर्णा यादव ने भाजपा की सदस्यता लेने के बाद परिवार के विषय में कहा। अपर्णा यादव से जब पूछा गया कि भाजपा में आने के बाद इसका जो असर परिवार पर होगा उससे निपटने की क्या तैयारी है। इसके जवाब में अपर्णा यादव ने जो कहा उससे लगा कि भारतीय परिवारों को एक सूत्र में बांधे रखने वाली मर्यादा और मधुरता की डोर भविष्श् में भी सुरक्षित रहेगी। जिसकी अपरोक्ष व्याख्या एक नारी या गृहणी से बेहतर और कौन कर सकता है।
अपर्णा ने कहा कि यह उसका व्यक्तिगत विचार है। वह अपने निजी निर्णय के बल पर भाजपा में आई है। इसके लिए उसके परिजनों का न कोई दबाव था और न ही कोई सुझाव। जहां तक इसके असर की बात है तो परिवार से संबंध और उसकी मधुरता में इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। परिवार में जिससे जो रिश्ते हैं उस रिश्ते की जो मर्यादा और मधुरता है। वह पूर्ववत बनी रहेगी। उसने साफ कर दिया कि उसके राजनीतिक अथवा सार्वजनिक जीवन के निर्णय से परिवार अथवा उसके रिश्ते से कोई लेना देना नहीं है।
अब सवाल यह उठ रहा है कि भाजपा में ऐसा क्या था जो उसे सपा में नहीं दिखा। इसका उत्तर भी अपर्णा यादव ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद अपने बयानों में दिया। श्रीमती यादव ने कहा कि वह भाजपा के राष्ट्रवाद और नरेंद्र मोदी के कार्य व्यवहार से प्रभावित थी। उसे लगा कि राष्ट्र की सेवा भाजपा के राष्ट्रवाद से जुड़कर ही बेहतर की जा सकती है। नरेंद्र मोदी की का मार्गदर्शन और योगी आदित्यनाथ का साथ उसे राष्ट्रसेवा के मार्ग पर बढ़ने में सहायक होंगे। राष्ट्र और परिवार के प्रति अपर्णा यादव द्वारा कही गई बातें उन युवाओं के लिए नजीर है जो सार्वजनिक जीवन के दहलीज पर खड़े विभिन्न राजनीतिक दलों के सत्तामुखी लोलुपता के शिकार हैं। अपर्णा यादव का भाजपा में जाना एक ऐसी राजनैतिक घटना है। जो संक्रमण दौर से गुजर रही भारतीय राजनीति के लिए नई इबारत और परिभाषा लिखेगी। लोग इसे उदाहरण के तौर पर देखेंगे। सयाने लोग इसे मिसाल देंगे। आने वाले समय में भारतीय युवा इसी अपर्णा यादव को एक दिन अपना नेता मानेगी। जाहिर है भाजपा में अपर्णा यादव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप से होगी। जबकि सपा में वह रातों-रात किसी पद पर बैठकर नेता बन सकती थी। किंतु अपर्णा ने सामान्य से ही सीखते हुए आगे बढ़ने का निर्णय लिया। अपर्णा की तुलना विचारों से समझौता न करने वाली नेत्री के रूप में भी होगा।
जानने वाले बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव परिवार की बहू बनने के कुछ समय बाद ही अपर्णा यादव ने सार्वजनिक जीवन जीने का संकेत दिया था। तब भी वह भाजपा को अपनी पसंदीदा राजनीतिक पार्टी बताई थी। किंतु तब परिजनों का दबाव सुझाव उसे भाजपा की तरफ बढ़ने से रोक दिया। इससे उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के रूप में देखा गया। जिसकी पूर्ति हेतु उसे वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में लखनऊ की कैंट सीट से सपा का प्रत्याशी बनाया गया। हालांकि उस चुनाव में भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी से हार गई थी। माना जा रहा था कि इस बार भी सपा उसे कहीं न कहीं से प्रत्याशी अवश्य बनाती। किन्तु इसका अपर्णा ने मौका ही नहीं दिया।
अपर्णा यादव को भाजपा में जाने से सपा बैकफुट पर है। अब तक स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्मवीर सैनी, दारा सिंह चौहान समेत कई दिग्गज और दर्जन भर विधायकों को भाजपा पाले से सपा खेमे में लाए अखिलेश यादव अकेली अपर्णा यादव को भाजपा में जाने से सपा को होने वाले मानसिक नुकसान के मूल्यांकन में लगे हैं। इससे वे दुखी हैं अखिलेश द्वारा कही गई यह बात की अंतिम समय तक अपर्णा को समझाने का प्रयास किया गया किंतु वह नहीं मानी। उनके दुख को ही झलकाता है। अपर्णा के रूप में भाजपा को सपा के खिलाफ फ्रंट पर खेलने का मौका मिल गया है। यह सत्तालोलुपकों की मौका परस्ती वाली नूरा कुश्ती है। किंतु इससे परे अपर्णा यादव एक ऐसी युवा नेत्री बनकर राष्ट्रवादी सोच के युवाओं के बीच उभरी हैं जो अपने विचारों से समझौता नहीं करती। जिसके लिए राष्ट्रवाद आगे और सब पीछे है।