मुंबई । मंगलवार को बांद्रा के जामा मस्जिद के बाहर जुटे हजारों लोगों की भीड़ ने लॉक डाऊन की धज्जियाँ उड़ा दी । इससे सरकार के हौसले पस्त होते दिखाई दिए । केंद्र सरकार के मंत्री सीएम उद्धव ठाकरे पर निशाना साध रहे हैं तो उद्धव ठाकरे के मंत्री केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं। खुद को बचाने के लिए सरकार ने विवादित वीडियो के आधार पर उत्तर भारतीय महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनय दुबे को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। लेकिन सवाल अभी अधर में है कि बांद्रा कांड के असली गुनाहगार कौन हैं।
बता दें कि मंगलवार को बांद्रा में हजारों लोगों की भीड़ सड़क पर उतर आई । इस मामले में मुख्य आरोपी विनय दुबे को ही बनाया गया है। मीडिया ट्रायल में जिस तरह विनय दुबे पर निशाना साधा जा रहा है उससे यही लगता है कि सरकार का अन्य गुनहगारों तक पहुच पाना मुमकिन नहीं है । फिलहाल बांद्रा की भीड़ भले ही विनय दूबे के आह्वान पर ना आयी हो किन्तु पिछले कई दिनों से जिस तरह वह लोगों को भड़काने में लगा था यदि उसे सफलता मिल जाती तो हालात सरकार के हाथ से बाहर होते ।
गौरतलब है कि मुंबई के बांद्रा में जो भीड़ जमा हुई । वह भीड़ किन अफवाहों पर इकट्ठा हुई थी और अफवाह किसने उड़ाई यह जांच अभी अधर में है । किन्तु विनय दूबे ने सोशल मीडीया पर जो वीडियो पोस्ट किया और जो लिखा उस पर भी गौर करना चाहिए ।
वीडियो 9 अप्रैल को पोस्ट किया गया था । जिसमे 18 अप्रैल को कुर्ला टर्मिनल पर आने का आह्वान किया गया । फिर भीड़ 14 अप्रैल को ही कैसे जमा हो गई । क्या उसने कोई वीडियो या मेसेज व्हाट्सएप पर वायरल किया था । फिलहाल एक फेसबुक कमेंट में उसने लिखा था कि उसकी टीम वहा मौजूद है । सवाल यह भी है कि यदि लोगों को घर जाना था तो उनके समान कहा थे । फिर यह कैसे मान लिया जाय की बांद्रा की भीड़ विनय दूबे के भड़काने पर ही जमा हुई थी । जिन्हे घर जाना था ।
इसके लिए विनय दूबे की मानसिकता को भी समझना होगा। वह एक अति महत्वाकांक्षी युवक है । 2012 में उसने एनसीपी के टिकट पर वाराणसी से विधानसभा का चुनाव लड़ा था। खुद को चर्चित करने के लिए किसी से भी उलझ जाना उसकी आदतों में शुमार था । मुंबई में कई लोगों से उलझ कर वह चर्चा में आने लगा । लोगों से गाली गलौज करना उसकी आदतों में शुमार है । मनसे प्रमुख राज ठाकरे का कार्यक्रम मुंबई में आयोजित करके उत्तर भारतीयों और स्थानीय लोगों को आपस में जोड़ने का निरर्थक प्रयास भी किया । यह सभी कारनामे उसने खुद को चर्चित करने के लिए ही किए थे । उसकी भावना ना तो देशहित में दिखती है और ना ही वह समाज के भले के लिए सोचता है । उसे सिर्फ अपना लाभ दिखाई देता है ।
गौर करने वाली बात यह भी है कि उत्तर भारतीय महापंचायत संगठन बनाकर वह चर्चा में तो आया किंतु अपने सहयोगियों के साथ भी ईमानदारी नहीं कर पाया। जिन उत्तरभारतीयो के लिए वह संघर्ष करने को तैयार था उन्ही को अपशब्दों से नवाजने लगा । जिसके कारण जो लोग कभी उसके साथ थे। आज उसकी गिरफ्तारी पर खुशी मना रहे हैं । पिछले काफी दिनों से विनय दुबे सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ एक जंग सा छेड़ दिया था । भाजपा व देश के प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस के बारे में कुछ भी उल्टा सीधा बोलता रहता था। यही नहीं सीएए लागू होने के बाद वह एनआरसी और सीएए का विरोध करने में जुट गया । सीएए के विरोध में होने वाली जनसभा में वह शामिल होने लगा।
शाहीन बाग के धरने में शामिल होकर देश के खिलाफ नारे लगाने वालों के साथ फोटो भी खींचा आया। जब कोरोना संकट के बाद लॉक डाऊन लागू हुआ तो उसके दिमाग में यही मुद्दा आया होगा कि वह लोगों को भड़का कर खुद को चर्चित कर लेगा और हुआ भी वही । उसके वीडियो को लाखों लोगों ने देखा किंतु उसकी बात मान कर एक भी व्यक्ति स्टेशन पर आया कि नहीं यह अधर में है । फिलहाल उसने 18 अप्रैल का समय दिया था और 14 अप्रैल को ही बांद्रा में हुई घटना के बाद उस घटना का तारतम्य उसके वीडियो से जोड़ कर उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
गौर करने वाली बात यह है कि वह अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब हुआ है । वह चर्चित होना चाहता था और चर्चित हो गया । उसके ऊपर जो धाराएं लगी हैं निश्चित तौर पर कुछ दिन जेल में रहने के बाद जमानत पर बाहर आएगा और एक खास वर्ग के लिए तथा सरकार विरोधी लोगों का चहेता बन जाएगा । राजनीति में शॉर्टकट रास्ता अपनाकर प्रवेश करने का जो प्लान उसने बनाया था । उसमें वह तो पूरी तरह सफल हो गया। किंतु प्रशासन यह पता लगाने में सक्षम हो पाएगा कि बांद्रा की भीड़ जुटाने वाले कौन थे । कौन वह आरोपी है जिसने मुंबई में कोरोना बम फोड़ने का प्रयास किया । विनय दूबे का वीडियो वायरल होता रहा और वह ज़हर उगलता रहा किन्तु जिस वीडियो को लाखो लोगों ने देखा उस पर पुलिस और खुफिया विभाग की निगाह क्यों नहीं पड़ी ।