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मुंबई: आखिर क्यों आपसी एकता का ढिंढोरा पीटते हैं उत्तर भारतीय

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सोमवार को महाराष्ट्र विधानसभा के लिये वोट डाले जायेंगे। कुछ जगहों को छोड़ दिया जाये तो भाजपा शिवसेना के आगे कोई टिकता दिखायी नहीं दे रहा है। लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी भाजपा नीत सरकार बनने के चांस हैं। किन्तु मुंबई कल्याण और पालघर जिले में कई ऐसी सीटें हैं। जिनपर उत्तर भारतीयों का सीधा प्रभाव है। हम बात करते हैं कल्याण विधानसभा की जहां पर उत्तर भारतीयों के सहयोग के बिना कोई भी दल अपना परचम लहरा नहीं सकता है।

गौर करने वाली बात यह है कि जब भी चुनाव आता है तो उत्तर भारतीयों में आपसी एकता और भाईचारा का ढिंढोरा पीटना शुरू हो जाता है। उत्तर भारतीय अपना वर्चस्व बनाने के लिये बड़ी बड़ी बातें करते हैं किन्तु चुनाव के पश्चात जब परिणाम आता है तो सबकुछ ढोल की पोल की तरह सामने आ जाता है। उत्तर भारतीयों में एक दूसरे को नीचा दिखाने के प्रवृत्ति कभी दूसरों को आगे बढ़ने नहीं देती है।

कल्याण डोम्बीवली परिक्षेत्र में उत्तरभारतीयों का बोलबाला है। कहने के लिये तो अपने समाज को एकजुट करने के लिये सभी जी—जान से जुटे हुये हैं किन्तु सैकड़ों की तादात में बने संगठन यहीं जाहिर करते हैं कि लगभग सभी समाज के लिये नहीं अपितु अपने वर्चस्व के लिये जंग लड़ रहे हैं। यदि कोई दूसरा आगे बढ़ने के लिये सोचता है तो उसकी टांग खिचौवल की परंपरा हावी हो जाती है।

इस क्षेत्र में शायद ही कोई संगठन होगा जो उत्तर भारतीय समाज के सभी वर्गों, सभी जातियों को लेकर साथ चलता होगा। सवर्ण समाज उत्तर भारतीय के नाम पर अपना वर्चस्व स्थापित करने में लगा है तो यादव, वैश्य आदि जातियों के लोग अपने वर्चस्व को लेकर चिंतित हैं। शायद ही कोई ऐसा संगठन हो जो वास्तविक रूप से उत्तर भारतीय समाज की एकता को बल देता हो। जिसमें हर जाति और धर्म के लोग शामिल हों।

देखा जाय तो उत्तरभारतीय पूरे मन के साथ अपने समाज के किसी व्यक्ति को अपना नेता मानने को तैयार नहीं होता है। अपना सिक्का हावी रहे इसलिये चुनाव के समय उन्हें ही वोट करता है जिनका पिछलग्गू बनने में उन्हें शर्म नहीं नहीं आये। जबकि एक बार उत्तर भारतीय समाज एकजुट होकर अपनी ताकत दिखाये और अपने ही समाज के किसी व्यक्ति को आगे बढ़ने दे तो आगामी चुनाव में बड़े दल उत्तरभारतीयों के समक्ष झुकने को विवश होंगे, लेकिन इस चुनाव में भी ऐसा कुछ देखने को नहीं मिल रहा है।

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