मुंबई। साहित्य जगत के जाने-माने वरिष्ठ गज़लकार आदरणीय “साकी ग्वालियरी” दिनांक 29 जुलाई 2020 लगभग सुबह 8.30 बजे शिवाजी महाराज रूग्णालय कलवा (पश्चिम) ठाणे (महाराष्ट्र) में जीवन की लड़ाई हार गये। भारतीय जनभाषा प्रचार समिति ठाणे के अध्यक्ष रामप्यारे सिंह रघुवंशी ने बताया कि साकी जी जीवन पर्यंत अविवाहित रहे। वे ग्वालियर के रहने वाले थे। ग्वालियर शहर में उनकी कपड़े की पुश्तैनी दुकान थी। कुछ समय तक उन्होंने दुकान चलाया लेकिन उनकी रुचि ग़ज़ल में अधिक थी। वह बहुत अच्छा लिखते थे और गाते भी बहुत बढ़िया थे। ग्वालियर रेडियो स्टेशन से उन के बहुत सारे गीत और गजल प्रसारित हुए थे। ग्वालियर में वह एक अच्छे ग़ज़ल कार के रूप में जाने जाते थे।इसके बाद उन्होंने दुकान अपने भाइयों को दे दी और मुंबई की फिल्मी दुनिया में हाथ आजमाने के लिए मुंबई आ गए। उनका असली नाम “रामकुमार वर्मा” था। मुंबई आकर उन्होंने फिल्मों में काफी स्ट्रगल किया। साकी जी की माली हालत बहुत अच्छी न थी। क्योंकि यहां वह सब कुछ अपने दम पर ही करना चाहते थे, उनका अपना यहां कोई नहीं था। इसलिए कहीं कहीं वो आर्थिक तंगी के कारण भी स्ट्रगल में कमजोर पड़ते थे। उनके कई गीत फ़िल्मों में रिकॉर्ड तो हुए लेकिन दुर्भाग्य से वह फिल्में पटल पर नहीं आ पाईं। बाद में आजीविका चलाने के लिए वह स्थानीय समाचार पत्र के संपादक भी रहे। वे कहानियां भी लिखते थे। “छब्बीस ग्यारह” की मुंबई में आई बाढ़ ग्वालियरी जी के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बन कर आई थी। जिसमें उनके सभी साहित्य बाढ़ की भेंट चढ़ गए,तभी से साकी जी अत्यंत निराश रहने लगे थे और उन्हीं दिनों उन्हें शराब की लत भी लग गई।उसके बाद भी उन्होंने काफी हाथ पांव मारा लेकिन कहीं सफलता हाथ नहीं लगी।
जीवन में उनकी केवल दो ही शौक थी। एक तो शराब पीना,
दूसरी गज़ल लिखना। उनके पास कुछ पैसा था जो बिल्डरों को देकर रखा था,उसी का ब्याज मिलता था ,जिससे उनका खर्च चलता था।बाद में स्टेट की हालत खराब होने के बाद बिल्डरों ने भी इंटरेस्ट देने से मना कर दिया जिससे वह बहुत तंगी में आ गए थे। उनके दूसरे नंबर के भाई ने दो शादियां की थी। लगभग 3 बरस पहले उसकी एक बीवी अपने बेटे के साथ मुंबई आ गई थी और बेटा कुछ करने लगा था। अंतिम समय में वही लोग उनके साथ रहे। साकी जी मुंबई व उपनगरों के सभी साहित्यिक मंचों हस्ताक्षर, काव्यसृजन, भारतीय जनभाषा प्रचार समिति ठाणे, काव्यकुंज आदि में जाया करते थे, गजलों के बादशाह कहे जाने वाले साकी की आवाज बुलंद थी, जहाँ भी स्वर बिखेरते थे तालियों की गड़गड़ाहट से महफ़िल में चार चाँद लग जाता था। साहित्य जगत में उनकी बहुत बड़ी कमी लोगों को खलेगी, महाराष्ट्र के उर्दू,हिन्दी, मराठी, गुजराती भाषा के सभी साहित्यकारों ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि उन्हें अपने चरणों में स्थान प्रदान करें ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके।