ठाणे। सामाजिक, साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था संगीत साहित्य मंच की महफ़िल ठाणे में १२ जनवरी शनिवार की शाम सजी जो प्रशंसनीय रही। जिसमें विभिन्न महानगरों से साहित्य प्रेमी उपस्थित हुए। इस अवसर पर कवियों ने अपनी रचनाओं से लोगों को आत्मविभोर कर दिया। नववर्ष के अवसर आयोजित प्रथम गोष्ठी सराहनीय रही। कवियों की प्रस्तुति से संगीत साहित्य मंच संगीतमय हो उठा।
कार्यक्रम की शुरूआत करते हुये कवि विनय शर्मा ‘दीप’ ने कहा —
कोई परिवार कोई जातिवाद पर फिदा,
धर्म संप्रदाय कोई निज स्वार्थ मस्त है ।
सोच नहीं दिखती है देश के भविष्य की,
बींच मझधार नाव जन-जन त्रस्त हैं ।
कैसे खेल खेलते दुसाशन दुर्योधन ये,
देश प्रेमी नमक हरामों से ही पस्त हैं ।
दीन-दुखी नौजवान देश के किसान सभी,
रोजी रोजगार कोई भूखा पेट लस्त है ।।
वहीं नंदलाल क्षितिज ने —
फिर चलो नववर्ष की बातें करें, नित नये उत्कर्ष की बातें करें ।
क्षितिज तक है शोर इस नववर्ष का,
आइये बस हर्ष की बातें करें ।।
आभा दवे ने अपनी रचना से माहौल में प्रेम रस घोल दिया
दिल के वीराने में, महक जाता है फूलों सा
नाजुक रिश्ता प्यार का, दुनिया के जर्रे- जर्रे में
नजर आता है रिश्ता प्यार का, राधा-कृष्ण बन
लुभाता है रिश्ता प्यार का, सदियों से चला आ रहा है
रिश्ता प्यार का, हर रिश्ते में अपना रुप दिखाता है
रिश्ता प्यार का, ईश्वर के दर्शन कराता है।
रिश्ता प्यार का, फिर कैसे न कहें,
प्यार जीता है सदा, हर दिल की धड़कन में
माँ की लोरी में , पिता के समर्पण में
बच्चों की मुस्कान में, सच्चे प्रेमियों के त्याग में
शहीदों की शहादत में, सैनिकों के अभिमान में
कुदरत के हर करिश्में में ।।
रामजीत गुप्ता ने कहा —
यदि कवि न होता
गीता, बाइबिल, कुरान
इसका रचनाकार न होता।
2-ईश्वर ने जिसे विवेक दिया, विवेकानंद बन जाते है।
आर•जे• आरती सैया हीरांशी
पता न था वो कफ़न दहेज का ओढ़ के सो जाएगी।
पालने में जो नन्हीं परी सोई सोई मुस्कुराई थी।
हाथ पकड़े जब पापा का पा पा पग चली।
अंगना की तुलसी जैसे आंगन भर में घूमी।
नन्हें तलवों की छाप से हरी रंगोली सजी।
बिटिया यूंही खेल कूदते विवाह जितनी बड़ी।
टी•आर•खुराना
जीवन रहस्य क्या है ये भी जानना-मुश्किल,
सांसों की ये सरगम है फकत मानना- मुश्किल ।
भुवनेन्द्र सिंह विष्ट
इस लंबी डगर पर चलते-चलते आज धक गया हूँ,
राह इतनी उलझी कि बहुत भटक गया हूँ ।
उमेश मिश्रा
एक अनोखी परंपरा जीवन में रंग भर रही है।
हर पल में चांदनी, चांद का इंतजार कर रही है ।।
ज्ञानचंद “ज्ञान”
मेरी हर्गिज़ नहीं ये ख्वाहिश सब के दिल की जान हो जाऊं ।
ना जियदा मशहूर हो जाऊं,ना कोई पहचान हो जाऊं ।।
एडवोकेट अनिल शर्मा
जीवन की जंग सबको आसान चाहिए।
समता का अधिकार एक समान चाहिए ।।
अट्टालिका प्रासाद में बेशक रहें बड़े,
हम छोटे गरीब को एक मकान चाहिए।
नकली पेड़ा-बर्फी संग मनी दिवाली दशरा,
जो तन मन मीठा कर दे वो जुबान चाहिए।
दीन हीन हेतु सब नियम बना रहे
अपराधी को मिले दंड वो संविधान चाहिए।
सब मंदिर और मस्जिद की बातों मैं उलझे हैं।
हमें तो जाति धर्म से ऊपर का इंसान चाहिए।
पोते पोतियों संग जो रहने दे दादी दादा को,
वृद्धाश्रम न भेजे पूत ऐसा संस्कारवान चाहिए।।
इसके अलावा कवियों में डा वफ़ा सुल्तानपुरी, उमाकांत वर्मा, अल्हड़ असरदार, उमेश मिश्रा, सुशील शुक्ल नाचीज़, नागेन्द्र नाथ गुप्ता, विधुभूषण त्रिवेदी, बैजनाथ शुक्ला आदि ने भी अपनी रचनायें सुनायी। संगीतमय साम के अंतिम चरण में अध्यक्ष रामजीत गुप्ता जी ने सभी कवियों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और कार्यक्रम का समापन किया।
मंच की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि शारदा प्रसाद दुबे विशिष्ट अतिथि डोंबिवली से पधारे भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त, वरिष्ठ साहित्यकार नंदलाल क्षितिज रहे। संचालन वरिष्ठ कवि नागेन्द्र नाथ गुप्ता ने किया।