सैन समाज के साहित्यकार, इतिहासकार, हिंदी भाषा के महान कवि परम आदरणीय कवि डाॅक्टर गिरीश कुमार वर्मा सब के प्रणेता द्वारा नन्द वंश के इतिहास को दर्शाया है। कृपया सम्पूर्ण लेख का विधिवत अध्ययन कीजिए और पुन:स्वाभिमान को जागृत कीजिए।
जिस प्रकार कृपाण को पैना करने के लिए शान की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार बुद्धि को पैना करने के लिए न्याय-शास्त्र की आवश्यकता पड़ती है। भारत के इतिहास का स्वर्ण युग की आधार शिला नंदों ने रखी थी। बाद में उनके उत्तराधिकारियों ने उसे आगे बढ़ाया। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि नंदवंश की उक्त बौद्धिक ताकत का आधार क्या था! इसका सीधा उत्तर है न्याय-शास्त्र द्वारा उक्त क्षमता नंदवंश को हासिल हुई थी। न्याय -शास्त्र को न्याय दर्शन भी कहा जाता है। इस शास्त्र की रचना महर्षि गौतम ने की थी।
महर्षि गौतम को शास्त्रों में अक्षपाद कहा गया है। अक्षपाद शब्द अक्ष और पाद शब्दों से मिलकर बना है। यहां अह का अर्थ आँख और पाद का अर्थ पांव से है। इसका मतलब ऐसा ऋषि जिसके पैरों में भी देखने समझने की क्षमता विद्यमान है। सामान्य तौर पर व्यक्ति के शीश पर नेत्र होते हैं। उन्हीं से वह वाह्य जगत की अनुभूति प्राप्त करता है। मगर महर्षि गौतम विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनके सिर से लेकर पैर तक में जगत के सत्य को अनुभव करने की क्षमता थी। गौतम शब्द गौ+उत्तम नामक शब्दों को मिलाकर बना है। यहां गौ अर्थ इंद्रियों का और उत्तम शब्द श्रेष्ठता का परिचायक है। महर्षि गौतम यथा नाम तथा गुण प्रज्ञापुंज थे। न्याय-शास्त्र के जानने वाले नैयायिक कहे जाते है। जैसे मास्टर आर्ट शब्द का संक्षेपण M.A. है उसी प्रकार नैयायिक शब्द का संक्षेपण नायी है।
न्याय-शास्त्र के प्रभाव से भारत में विज्ञान का प्रकाश फैला था। उसी ज्ञान के आलोक महापद्मनंद सम्राट के पद पर पहुंचा सका था। कालंतर में दूसरे वर्ग के लोगों ने नंद परिवार में फूट डाल दी। इस वंश में गृहकलह उत्पन्न हो गई। परिणाम यह हुआ कि उसके टुकड़े-टुकड़े हो गए। विचारणीय बात यह हुई कि न्यायायिकों ने न्याय दर्शन पर अमल करना छोड़ दिया। इससे उनमें बुद्धि का पैनापन नष्ट हो गया और दूरदर्शिता लुप्त हो गई।
कोई पेड़ तभी तक हरा भरा रहता है जब तक वह अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है। यदि उसकी जड़ें काट दी जाती हैं तो विकसित करने वाली खुराक उसे नहीं मिल पाती है और उसका विकास रुक जाता है। वह पेड़ सूख जाता है। यही दशा नंदवंश के साथ घटित हुई है। कभी उसका विशाल साम्राज्य था। आज उसके लोगों को लोकसभा और विधानसभाओं में घुस नहीं पाते हैं। नैयायिकों को न्याय दर्शन को अपनाना चाहिए। अपनी जड़ों से जुड़ने से उनका तेज लौटेगा।