वह जमाना रहा होगा जब लोगों के मन में यह भाव था कि नारी विवश व लाचार है। लेकिन अब वह बात अब केवल स्वप्न जैसा दिखता है। क्योकि आज पुरूषों से किसी भी स्तर से पीछे नही है नारी। नारी सच में दया, क्षमा, प्रेम, सेवा, कर्मठता की प्रतिमूर्ति होती है। इसीलिए कहा गया है कि जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवता रमण करते है। यह बात भारत में हमेशा से देखने को मिलती है। लेकिन कुछ इसमें अपवाद भी है। भारत में नारीशक्ति का सम्मान हमेशा से होता रहा है, देश की नारियां हमेशा से पुरूषों की सहभागी के रूप रही है। मुगल शासन काल में भले ही महिलाओं की दशा असमानता भरी रही लेकिन ब्रिटिश काल में महिलाओं के जीवन स्तर में काफी परिवर्तन देखने को मिला। भारतीय महिलाओं के अधिकारो में वृद्धि आजादी के बाद उन्हें मतदान के साथ-साथ समाज के हर क्षेत्र में जाने का मौका मिला। भारतीय महिलाओं में राजनीति में इंदिरा गांधी, श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू समेत कई महिलाओं ने अपने को स्थापित करके विश्व में भारत की राजनीति को एक नई चमक दी। देश की सबसे बडी और सम्मानित परीक्षा आईएएस उत्तीर्ण करने वाली अन्ना जार्ज ने इस मिथक को तोडा कि बेटियां आईएएस नही बन सकती है, देश की सबसे बडी अदालत सुप्रीम कोर्ट की जज के रूप में ए फातिमा बीबी ने यह दिखा दिया था कि महिलायें किसी से पीछे नही है।
एवरेस्ट फतह करने का कारनामा करने वाली बछेन्द्री पाल ने भी अपने हौसले से विश्व में भारत के साथ-साथ महिलाओं का भी सम्मान रखा। खेलों में भी महिलाओं में ग्रांड ओल्ड लेडी के नाम से प्रचलित कुंजरानी, एन.लम्सडेन और ओलम्पिक भारोत्तोलन में पदक पाने वाली कर्णम मल्लेश्वरी ने देश के साथ महिलाओं के नाम मे भी चार चांद लगाया। भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी, अन्तरिक्ष में जाने वाली कल्पना चावला, सुनिता विलियम्स, वायुसेना की पायलट हरिता- दयाल ने अपने जज्बे से जमीन पर ही नही अपितु आसमान में भी भारतीय महिलाओं की उपस्थिति दर्ज कराईl
महिलाओं में खेलों में झूलन गोस्वामी, मिताली राज, स्वाति, मनुभाकर, पीवी सिंधू , सहजार रिजवी, युकी भांवरी ने देश में भारत का नाम रोशन किया है , वहीं राजनीति में मीरा कुमार, सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित, ममता बनर्जी, आनंदीबेन समेत देश की राजनीति में महत्वपुर्ण भूमिका निभा रही है l फिल्मों में भी काफी महिलायें अपने कार्यों से देश ही नही अपितु विदेश में भी भारत का नाम रोशन कर रही है जिसमें प्रियंका चोपडा का नाम आगे है। देश के गणतन्त्र दिवस के मौके पर दिल्ली में आयोजित परेड भारत की महिलाओं ने नारी शक्ति का एक ऐसा उदाहरण पेश किया कि पुरा विश्व दांतों तले अंगुली दबाकर भारत की बेटियों के जज्बे का कायल होकर उन्हें सलाम किया। विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता में हरियाणा की मानुषी छिल्लर ने विश्व की कई प्रतिभागियों को पछाडते हुये विश्व सुन्दरी के खिताब पर कब्जा किया। हरियाणा की ही बिटिया मनुभाकर मात्र 16 वर्ष की उम्र में आईएसएसएफ विश्व कप में दस मीटर एअर राइफल में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है, यह वहीं हरियाणा है जहां बेटियों की कम संख्या का दंश झेल रहा है लेकिन अब हरियाणा की बेटियों द्वारा विश्वस्तर पर नाम करने पर हरियाणा के लोग भी बेटियों के प्रति अब सकारात्मक रूख अपना रहे है।
भारत में भले ही महिलायें अपने कार्यों से एक नया आयाम प्रस्तुत कर रही है लेकिन आज भी कुछ जगहों पर महिलाओं की स्थिति दयनीय है, आज महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, प्रताडना, व्यभिचार और अन्याय की कमी भी नही है। चाहे वह सोहदों द्वारा छिटाकशीं, बडे अधिकारियों द्वारा शोषण, पुरूष प्रधान समाज, अन्धविश्वास की आड में मानसिक व शारीरिक शोषण, गरीबी की बजह से वेश्यावृति, दहेज न देने पर मौत, स्वास्थ्य और शिक्षा में पिछडापन समेत काफी मुद्दे है जो भारत की नारियों की शक्ति पर प्रश्न चिह्न लगाते है। महिलाओं को आज शासन व प्रशासन के तरफ से काफी सुविधायें दी जा रही है लेकिन स्थिति में उचित सुधार नही हो रहा है, आज समाज में बहू सबको चाहिये लेकिन बेटी पैदा होने पर मन गिर जाता है, भले लोग बेटी पढाओ बेटी बचाओ का नारा बुलन्द करते है लेकिन वास्तविकता अलग है। हिन्दू समाज में जहां दहेज जैसी कुप्रथा बेटियों की जिन्दगी पर कटार की तरह तनी है वही मुस्लिमों में हलाला की कुप्रथा भी कम असमाजिक नही है, ऐसी प्रथाओं को सती प्रथा की तरह रोक देना चाहिये। महिलाओं के अधिकारों के हनन के लिये समाज धार्मिकता की दुहाई देकर उन्हें गुमराह करता है जो सही नही है। भारत का कानून सभी को मानना चाहिये न की अपने कुछ स्वार्थ वश किसी अन्य का उदाहरण देकर विरोध करना चाहिये।
यदि भारत की महिलायें वास्तव में देश की प्रमुख धारा से जुडना चाहती है तो उन्हें अपने हक और न्याय की लडाई के लिये स्वयं आगे आना होगा न की साधू, बाबाओं, मौलिवियों, पादरियों व राजनेताओं के बहकावें में आकर रूढीवादी विचारधारा के दलदल में फंसे रहना है। महिलाओं को शक्ति का दूसरा रूप कहा जाता है, यदि महिलायें अपने सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक, राजनैतिक विकास में स्वयं आगे नही आयेंगी तो इसका परिणाम स्वयं महिलाओं को ही भोगना पडेगा। भारतीय नारी हमेशा से विश्व के लिए पथ प्रदर्शक रही है। और वर्तमान समय में भी इस रूतबे को कायम रखना परम कर्तव्य है। देश की वर्तमान दशा देखकर महिलाओं को भी अपनी सहभागिता को और बढाना होगा। जिससे भारत का सर गर्व से और ऊंचा रहे। पुलवामा में हुए हादसे के बाद भारत की उन वीरांगनाओं को देखकर रोम-रोम पुलकित हो गया जो अपने पति के अंतिम विदाई के समय जय हिन्द का नारा लगाकर विदाई दी। यह रूतबा और हौसला नारियों में आज भी है जो देश हित को अपने सभी हितों से आगे रखती है। विश्व की समस्त नारी सत्ता को कोटि कोटि नमन।