मुंबई। विश्व मैत्री मंच की महाराष्ट्र इकाई द्वारा महिला रचनाकारों का आनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । यह आयोजन नवरात्रि के उपलक्ष्य में रखा गया। महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्षा आभा दवे द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी में बीस रचनाकारों ने भाग लिया। आदरणीया रत्ना झा की अध्यक्षता में कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना से हुई एवं महाराष्ट्र विश्व मैत्री मंच की इकाई अध्यक्ष आभा दवे के स्वागत भाषण के बाद सभी रचनाकारों ने अपनी एक से बढ़कर एक स्वरचित रचनाएं “देवी एवं नारी शक्ति” को केंद्र में रखकर प्रस्तुत की और देवी माता का गुणगान किया। सभी ने अपनी रचनाओं में नवरात्रि का उल्लेख बखूबी किया। कार्यक्रम अध्यक्ष रत्ना झा जी ने सभी की रचनाओं को सराहा और नारी शक्ति पर जोर दिया। हम सभी शक्ति की पूजा तो करते है पर समाज में हो रहे नारी पर अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठाते। आज इस कार्य के लिए नारी शक्ति को आगे आना होगा।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि कमलेश बख्शी जी ने सभी की रचनाओं का बेहतरीन आकलन करते हुए कहा कि “आज नारी शक्ति को अपनी पहचान बनानी होगी और नवरात्र के देवी रुपों को नारी शक्ति में महसूस करना होगा”। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि एवं विश्व मैत्री मंच की राष्ट्रीय अध्यक्षा संतोष श्रीवास्तव ने कार्यक्रम की अध्यक्षा रत्ना झा एवं मुख्य अतिथि आदरणीया कमलेश बख्शी जी महाराष्ट्र विश्व मैत्री मंच की इकाई अध्यक्ष आभा दवे एवं सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई दी एवं अपने वक्तव्य में नवरात्रि की बधाई देते हुए कहा -“नवरात्रि का त्यौहार वास्तव में यथार्थ के धरातल पर अपने आधार पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
शक्ति अर्थात शत्रुओं को जीतने वाली दुर्गा। दुर्गा का विस्तार संभवतः दुर्गे शब्द से हुआ हो दुर्ग अर्थात वह किला जो सुरक्षा का प्रतीक है सम्मान का हकदार है। स्त्री रूप का प्रतिनिधित्व करती है दुर्गा। जो सुरक्षा और सम्मान की प्रतीक है इसलिए दुर्गा को देवी कहा गया है। प्रतीकात्मक यह पूजा आध्यात्मिक धरातल पर भले ही मायने रखती हो किंतु स्त्री के संदर्भ में बिल्कुल भी नहीं है ऐसा मैं मानती हूँ। पुरुष समाज अन्य स्त्रियों को क्या उस नजर से देखता है जैसा अपने घरों में बहू -बेटियों को देखता है उन्हें लक्ष्मी मानता है। यदि ऐसा होता तो बलात्कार एवं पीड़िता संग वहशीपन नहीं होता और अखबार की सुर्खियां नहीं बनता। नारी का रूप बदला है लेकिन नारी के प्रति संकीर्ण भावना नहीं बदली है,बल्कि और अधिक संकीर्ण होती जा रही है।
यदि घरों की बहू बेटियां समाज में आगे बढ़ने के लिए निकलती है तो संक्रीण समाज उसमें रुकावट डालता है। यदि कोई स्त्री उसका विरोध करती है तो उसे दुर्गा या चंडी कहा जाता है नकारात्मक रूप में। स्त्री के लिए समाज के इस दोहरा रूप की अवधारणा बदलनी चाहिए। नौ दिन की आराधना के साथ- साथ पुरुष की मनोवृत्ति भी बदलना चाहिए तभी नवरात्रि मनाने का औचित्य है।” संतोष जी ने सभी रचनाकारों को पुनः बधाई देते हुए अपना आभार प्रकट किया और सभी को भविष्य के लिए शुभकामनाएं प्रदान की। ऊषा साहू, संतोष श्रीवास्तव, आभा दवे, नीरजा ठाकुर, कमलेश बख्शी, रत्ना झा, माया बदेका, सत्यवती मौर्य, रजिया रागनी, मृदुला मिश्रा, डॉ प्रभा शर्मा, शिल्पा सोनटक्के, डॉ सरोजा लोडाया, सत्यवती मौर्य, रानी मोटवानी, शिप्रा वर्मा आदि ने काव्य पाठ किया।कार्यक्रम का संचालन रानी मोटवानी, दीप प्रज्वलन रजिया रागिनी, सरस्वती वंदना शिप्रा वर्मा एवं आभार शिल्पा सोनटक्के ने व्यक्त किया।