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नेह की उलझन मेघ में

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क्या करूँ मैं, हे मेघा!
खुश होऊँ या शोक मनाऊँ,…
काल की बदरी!
चहु ओर फैली है,
इस बदरी को कैसे अपनाऊँ…
क्या करूँ मैं, हे मेघा!
खुश होऊँ या शोक मनाऊँ….।।1।।

आगमन जो तुम्हारा अति पावन है,
कैसे उससे मुख मोड़ मैं जाऊँ?
पर चिंता सृष्टि की हृदय से,
दुर्लभ है, कि मै बिसराऊँ….
क्या करूँ मैं, हे मेघा!
खुश होऊँ या शोक मनाऊँ….।।2।।

काल का पहिया बड़ा कठिन है,
तुमसे संसार को इस पल मुश्किल है,
रक्षा की चिंता हर क्षण-क्षण,
कैसे मैं तुम्हरे गुण गाऊँ
क्या करूँ मैं, हे मेघा!
खुश होऊँ या शोक मनाऊँ…।।3।।

माना कि जरूरत किसान को,
धरती भी तुम्हरी प्यासी है,
पर सोचो जरा उनकी मज़बूरी,
जिनके मन सद्य स्थिति की उदासी है,
क्या करूँ मै, हे मेघा!
खुश होऊँ या शोक मनाऊँ…।।4।।

नेहा मिश्रा (नेह) मुंबई स्व अनुभव की स्याही से✍🏻🙏🏻

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