Home खास खबर न मोदी की न योगी की चलेगी चाल भोगी की

न मोदी की न योगी की चलेगी चाल भोगी की

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उत्तर प्रदेश में अगली सरकार चाहे जिसकी बने। ताजपोशी चाहे जिसकी हो। किंतु दल बदल के जो नजारे दिख रहे हैं उससे एक बात साफ हो गयी है कि भाजपा के राष्ट्रवाद के मुकाबले भेगवाद के बीच ही सत्ता की जंग होगी। एक तरफ भाजपा विकास जनकल्याण और राष्ट्रवाद को लेकर जनता को आकर्षित करने का प्रयास करती दिख रही है तो दूसरी तरफ मुफ्त की सुविधा, ऋण से मुक्ति और जाति वर्ग धर्म के तीर से सत्ता का रास्ता तलाशा जा रहा है। यह भोगवाद के आकांक्षा की पूर्ति के लिये देश को खोखला कर देने तक का राजनैतिक दुस्साहस है। यानि देश के हित की शर्त पर सत्ता की चाहत। जाहिर है कि मुफ्त की सुविधा ऋण से मुक्ति समेत अन्य तरह के मुफ्त में दी जाने वाली सुविधाओं के लागत का बोझ देश की तिजोरी पर ही पड़ेगा। जो देश की आर्थिक ताकत को कमजोर करेगा। यह बात सिर्फ गैर भाजपाई दलों पर ही लागू नहीं है बल्कि खुद भाजपा भी कहीं न कहीं भोगवाद के लालसा की शिकार है। मुफ्त का अन्न किसान सम्मान निधि समेत अन्य योजनाएं इसी श्रेणी में हैं जो जन कल्याण की ओट से सत्ता में बने रहने की कवायद जैसी ही हैं। यह सब सत्तभोग के चोचलके और टोटके हैं। जो जनलुभावन की तरकीबों के श्रेणी में आते हैं। इससे राष्ट्र के खजाने पर असर पड़ता है। राष्ट्र कमजोर होता है यह भाजपा के राष्ट्रवाद में सत्तामोह के दाग जैसा है। इसे भाजपा भी जानती होगी किंतु उसकी मजबूरी शायद यह है कि सत्ता के बिना राष्ट्रवाद को देश की मुख्यधारा में नहीं लाया जा सकता। जब सत्ता होगी तभी राष्ट्रवाद को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। किन्तु सत्ता देने वाली जनता मुफ्तगिरी के लालच की शिकार है। वह बिना कुछ लालच पाए सुनने वाली नहीं है। उसे मुफ्त की खाने पाने की आदत हो गई है। इसकी शुरुआत भी देश में सत्ताभेग की लालसा में देश के कुछ नेताओं ने ही किया। पुराने लोगों को याद होगा कि पहली बार प्रदेश में सत्ता पाए सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में 10 हजार तक के बैंक कर्ज माफ कर दिए थे। इसका बड़ा असर सूबे के खजाने पर पड़ा था। जिसकी भरपाई आज तक नहीं हो पाई। बल्कि दिनों दिन इस प्रवृत्ति का विस्तार ही होता जा रहा है। खुद आदित्यनाथ योगी सरकार भी सत्ता में आते ही प्रदेश के किसानों के एक लाख तक के कर्ज माफ कर दिए थे। इसके लिए उन्होंने अपनी पीठ भी थपथपाई। खुद नरेंद्र मोदी भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का प्रचार किसानों के सच्चे हितैषी सोच के रूप में करते नहीं थकते। जनकल्याण के नाम पर जनता में मुफ्त खोरी की आदत डालना राष्ट्रहित की शर्त पर अपनी चाहत पूरी करने जैसा ही है। यह कहीं से उचित नहीं लगता। यहां एक भारतीय अमेरिकन प्रवासी के बातों का उल्लेख करना लाजमी लगता है। वह कहा था की अमेरिकन और भारतीय अंतर यह है कि एक अमेरिकन अपनी कमाई में से मानक के अनुरूप सरकार को कर देकर फक्र करता है और अपनी मित्र मंडली में बताता है कि उसने इस बार सरकार को इतना कर दिया। जबकि एक भारतीय अपने हिस्से के कर की चोरी करके गर्व करता है और अपने मित्र मंडली में इसका बखान करके वाहवाही लूटता है। दोनों में कितना फर्क है। सही मायने में राष्ट्रवादी तो अमेरिकन है जो अपनी कमाई में से कुछ अंश सरकार के खजाने में देता है। किन्तु भारत में तो सरकार का पूरा का पूरा खजाना ही मिलने पर हजम करने की लालसा भारतीयों में समाई हुई है।
देखा जाए तो इसके जिम्मेदार जनता से अधिक उसे मुफ्तखोरी की आदत देने वाले राजनेता ही हैं। जो खुद राष्ट्रवाद की दुहाई देंगे किंतु चोर दरवाजे से राष्ट्र को खोखला करने वाले लोकलुभावन नारों को लागू कर देश की जनता को मुफ्तखोर बना दे रहे हैं। देश में बड़ी भोग वाद की संस्कृति इस बार नंगनाच पर उतारू दिख रही है। यूपी से पंजाब तक मुफ्त की सुविधाओं वाले नारों का बोलबाला है। इसमें कर्ज मुक्ति से लेकर मुफ्त की बिजली खाद्यान्न आदि तक देने के वादे हैं। युवा मतदाताओं को मुफ्त में लैपटॉप टैबलेट तो सिटीजन अथवा 60 वर्ष के पार वाले लोगों को पेंशनों की बातें भी हो रही हैं। बेरोजगारों को प्रतिमाह भत्ता का भी शिगूफा छोड़ा जा रहा है। और तो और राज्य कर्मचारियों के पेंशन से लेकर वेतन वृद्धि तक की लालच दी जा रही है। मुफ्त बिजली के लिए बिना सत्ता में आए ही सपा अपने कार्यकर्ताओं के मार्फत रजिस्ट्रेशन अभियान भी शुरू कर दी है। तो क्या यहीं राष्ट्रवाद का असली विचार और असली चेहरा है। जिसकी दुहाई राजनेता देते रहते हैं।
उत्तर प्रदेश में भोगवाद की प्रवृत्ति चरम पर है। सत्ता भोगी हो चुके अनेक राजनेता सत्ता के लिए हवा का रुख भांप कर रातोंरात अपनी निष्ठा बदल दे रहे हैं। माना जा रहा है कि जारी वर्तमान विधानसभा चुनाव ऐसे ही सत्ता भोगियों के शिगूफों और झूठे दावों के इर्द-गिर्द घूमता नाचेगा ।प्रदेश में सत्तासीन भाजपा की प्रबल विरोधी सपा की सेना में नए-नए शामिल सिपहसालार ही मोर्चा संभाले दिख रहे हैं। चंद दिन पहले ही भाजपा मंत्री मंडल छोड़कर सपा में आए स्वामी प्रसाद मौर्य का भाजपा के प्रति तीखा तेवर इतना तल्ख है कि उनके सामने खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी नरम पड़ जा रहे हैं। सत्ता पाने का दावा इतना मजबूत कि जैसे चुनाव परिणाम आ गया हो। स्वामी प्रसाद मौर्य में सत्ता के लिये उतावलापन साफ-साफ देखा जा रहा है। कुछ ऐसा ही भाव भाजपा से सपा में आए पूर्व मंत्री धर्मवीर सैनी और दारा सिंह चौहान का भी है। कल तक कांग्रेस के बैनर की पोस्टर गर्ल रही प्रियंका मौर्य टिकट न मिलने से नाराज कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आते ही कांग्रेस के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया है। कुछ ऐसा ही रवैया सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव के मौसा एवं मुलायम सिंह यादव के साढू प्रमोद गुप्ता की भी है जो अब अखिलेश की बुराई करते नहीं थकते। कुछ ऐसा ही नजारा चुनावी मौसम में दलबदलुओं का पंजाब, मणिपुर, गोवा आदि में भी है।
इन दलबदलुओं के ही कंधे पर बंदूक रखकर राजनीतिक दल एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। कोई भी दल दूध का धुला नहीं रह गया है। कोई कुछ कम है तो कोई कुछ ज्यादा। देश के 5 राज्यों में सत्ता के संक्रमण का काल है। चुनावी हवा आंधी का रूप लेती दिख रही है। शब्द वार में मर्यादाओं का ध्यान कमोबेश सभी ने भुला दिया है सब की नजर एन केन प्रकारेण सत्ता कब्जाने पर लगी है। चुनाव के शह और मात वाले खेल में इस बार राजनीतिक दलों की नीति रीति और विचार गौण हैं। सत्ता के लोभी दलबदलूओं को ही एक दूसरे के खिलाफ हथियार के रूप में आजमाया जा रहा है। राष्ट्रवाद पर भेगवाद को अधिक तवज्जो मिलती दिख रही है।

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