मुम्बई !
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा दी गई अधिसूचना के अनुसार केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, क. जे. सोमैया परिसर, विद्याविहार, मुम्बई द्वारा भी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की 125 वीं जयंती को “पराक्रम दिवस” के रूप में आयोजित किया गया । कार्यक्रम अवसर पर परिसर के निदेशक प्रोफेसर भारत भूषण मिश्र ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के पराक्रम और साहस के कारण ब्रिटिश शासन को भय हो गया था जिसके कारण हिन्दुस्तान को आजादी शीघ्र मिल गई । केवल महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धान्त पर देश को आजाद कराना संभव नहीं था । इसलिए नेताजी सुभाषा बोस एवं उस समय के क्रान्तीकारी सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त पं. राम प्रसाद बिस्मिल जैसे महान क्रान्तिकारियों के योगदान को भुलाया को नहीं जा कता है । सारस्वताथि के रूप. में जबलपुर के संस्कृत प्रचारक पं. आचार्य रविशंकर चतुर्वेदी ने कहा कि नेताजी सुभाषचन्द्र बचपन से ही तुफान और बिजली जैसे थे जो किसी भी अत्याचार को सहन नही कर सकते थे । वही कार्य नेताजी ने अंग्रेजों के खिलाफ में किया । विशिष्ट वक्ता के रूप में शिक्षाशास्त्र विषय के डॉ. वी. एस. भास्कर रेड्डी ने कहा कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस मानव धर्म में विश्वास करते थे । वह हिन्दुस्तान को शक्तिशाली भारत के रूप में देखना चाहते थे । वह देश की आजादी के लिए किसी से भी समझौता करने को तैयार थे । पराक्रम दिवस के अवसर पर मुख्यवक्ता के रूप में राजनीति शास्त्र विषय के डॉ. रंजय कुमार सिंह ने कहा कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस देश की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ विदेश में जा कर जिस तरह से आजाद हिन्द सेना का संगठन तैयार किया तथा ब्रिटिश हुकुमत के विरोध में जंग छेड़ी वह एक महानायक और महान योद्धा ही कर सकता है । नेताजी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अस्थायी सरकार की स्थापना करने वाले भारत माता के प्रथम सपूत थे । इसलिए यदि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को भारत का प्रथम प्रधानमंत्री कहा जाय, तो अतिशयोक्ति नहीं होगा । इस अवसर पर मंगलाचरण व्याकरण विषय के डॉ. नवीन कुमार मिश्र, स्वागत भाषण हिन्दी विषय की डॉ. गीता दूबे, धन्यवाद मराठी विषय की डॉ. मीनाक्षी बरहाटे जबकि आभासीय रूप से कार्यक्रम के संयोजक एवं संचालन ज्योतिष विषय के डॉ. अनिरुद्ध नारायण शुक्ल ने किया । इस कार्यक्रम में सभी शिक्षक, कर्मचारी एवं छात्र आभासीय रूप से उपस्थित थे ।