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यादों में नीरज नहीं पर नीरज का शरीर साहित्य के साक्ष्य हैं- मंजू गुप्ता

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मंजु गुप्ता

विश्व साहित्याकाश के देदीप्यमान नक्षत्र मा नीरज जी को हमारी और देश और विश्व साहित्य जगत की ओर से हार्दिक विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ।

मैं अपनी किताबों को प्रकाशित कराने के लिए मुम्बई से अलीगढ़ गयी थी और नीरज जी से मिलने की अभिलाषा मन में भी थी। तभी देवसंयोग से मेरी किताब ‘ प्रांत पर्व पयोधि ‘ उन्हें मिली और उसमें मेरा टेलीफोन नम्बर भी था। उन्होंने मुझे फोन कर अपने निवास स्थान पर आमंत्रित किया। उनसे अपनत्वपूर्ण संवाद करके ऐसा लगा कि ईश का देवदूत बन धरा पर आएँ हैं और मेरे मन की बात जैसे उन्होंने सुन ली हो।

मैं उत्सुकता के साथ उनसे मिलने अपने हमसफ़र के साथ शाम को उनके घर पँहुची। साफ-सुथरा सुंदर सुसज्जित उनका बड़ा सा हॉल था। जहाँ वे दो दोस्तों के साथ ताश खेल रहे थे। खेल जो तनावों से मुक्त रख के दिमागी कसरत है और अपने आप को व्यस्त रख के मनोरंजन का भी साधन है। तभी मन में ख्याल आया कि विश्व विख्यात गीत कारवां गुजर गया –

स्वप्न झरे फूल से मीत चुभे शूल से

जैसे गीतों के रचयिता किस तरह अपना समय खेल के साथ लेखन को समर्पित कर रखा था। उनकी रचनाओं में जीवन दर्शन, प्रेम, श्रृंगार, विरह, दर्द, देश प्रेम, देशभक्ति, मानवता का पैगाम मिलता है। नीरज जी आजादी से पहले दिल्ली में सरकारी कार्यालय में कार्यरत थे। जहाँ उन्हें ब्रिटेनिया सरकार की झूठी प्रशंसा, खूबियों के बारे में लिखना होता था। जब कोलकत्ता में गए तो ब्रिटेनिया सरकार के विरोध में नज्म लिख दी। तब सरकार इनको पकड़ने के लिए पीछे पड़ गयी। तब अपने को बचाने के लिए छिपते-छिपाते कानपुर में आ गए। यहीं पर कार्यरत हो गए।

फिर एक दिन उनके मित्र चंद्रा जी मुंबई नगरी ले आए। एक कार्यक्रम में देवानन्द जी ने उनकी नज्म सुनी तो नीरज जी के कलम की तारीफ की। उन्होंने संगीतकार आर डी बर्मन से मिलवाया। तो उन्होंने नीरज को रंगीला शब्द पर गीत लिखने को दिया। तब उन्होंने ” रंगीला रे तेरे रंग में ……” खूब बड़ा गीत लिख दिया। बर्मन जी खूब पसंद आया। इस तरह से फिल्मों में गानों को लिखना सिलसिला चल निकला। गीतों ने कामयाबियाँ, बुलन्दी, यश तो दिया। लेकिन नीरज जी का मुम्बई में मन नहीं लगा। खुशियां तलाशने अलीगढ़ आ गए। तब से यहीं परिवार के साथ आकर बस गए। यहाँ उनकी तबीयत खराब रहने लगी। तब भी वे लेखन से जुड़े रहे, कवि सम्मेलनों, हिंदी कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे थे। आज वे 93 साल के हैं। हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन अपनी कृतियों साहित्य सेवाओं से हमारे साथ हैं। गीता, ओशो के विचारों को मानने वाले नीरज जी ने देह त्यागी है। आत्मा यहीं भारत में बसी है।

मैं उनके खूबसूरत, हँसमुख सरल, सहज, विद्वत्ता, आत्मीयता से पूर्ण व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई।
अनओपचारिकतापूर्ण परिवेश में चाय पीकर मेरा परिचय उनसे हुआ। प्रांत पर्व पयोधि को देख कर मुस्कुराते हुए बोले-बिटिया देश-प्रेम जिस की रगों में बहता है, तन-मन समर्पित हो। वही देश भक्ति मानवीयता का पुजारी होता है। ” मेरी कृतियों के बारे में, मेरी पांडुलिपि दीपक, सृष्टि, अल्बम आदि के बारे में संवाद चला और मेरी उन पांडुलिपियों की समीक्षा भी करके मुझे अपनी उदारता, निस्वार्थता, सहज, हितैषी व्यक्तित्व का परिचय दिया। इतने महान साहित्यकार अहम कोसो दूर था।

पांडुलिपियों की समीक्षा कर मुझे आशीर्वाद दिया था। जो आज फल-फूल रहा है।
आज वे फोटो के संग अमर पल उनके सानिध्य का स्मरण कर के उनकी आत्मा को शांति मिले ईश से हम सब प्रार्थना करते हैं।

मंजु गुप्ता
वाशी , नवी मुंबई

 

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