Home अवर्गीकृत अब तो लैला मजनूं का प्रेम बन गया है ‘वेलेंटाइन डे

अब तो लैला मजनूं का प्रेम बन गया है ‘वेलेंटाइन डे

hamara purvanchal

“प्यार किया नही जाता हो जाता है.…”.भले यह एक फिल्मी गाने के बोल हों मगर इसमें सौ फीसदी सच्चाई और भाव है।
मगर यह बीते दौर की बातें हैं जब प्रेम जात- पात ,धर्म ,अमीरी- गऱीबी देखकर नही होता था। तब लैला-मजनू, शीरी-फ़रहाद, रोमियो-जूलियट वाला समय था।

तब के समय में दूर रहकर भी प्रेमी-प्रेमिका मुहब्बत निभाते थे।उस समय का प्यार अंधा होता था। उस समय सिवाय प्रेमी-प्रेमिका के भाव के अलावा कुछ नही दिखाई देता था, मगर तब और अब में जमीन आसमान का फर्क आ गया है। अब का प्यार सब कुछ देखता समझता है ,परखता है,  तब जाकर कहीं होता है।
“मने जात जमात जेब तो”आजकल का प्यार पहले देखता है परखता है ,उसके बाद ही होता है। रंग, रूप ,व्यवहार हो तो ही किसी पर दिल आता है।

यही नही अब पहले की तरह प्रेमी-प्रेमिका की झलक पाने के लिए उसके गली मुहल्ले का महीनों चक्कर भी नही लगाता, अब तो किसी लड़के को लड़की आकर्षक और सुंदर दिखी तो हो गया टेम्पेरेरिया प्यार। और दो चार दिन में लड़की ने सहमति दे दी तो किसी मॉल या केबिन रेस्टोरेंट में मुलाकात तय हो जाती है।

नम्बरों के आदान -प्रदान के बाद मेरा व्हाट्सएप पर सोना बाबू खाना खाया की नही ?मेरी…हार्ट बीट क्या कर रही हो?…मिस यू…लव यू लॉट के बाद धीरे-धीरे बातों का स्तर रोमांटिक होने लगता है। फिर यह स्तर चरम की तरफ बढ़ता है। वीडियो कॉलिंग पर थोड़ा ‘ना’ के बाद ‘इससे ज्यादा नहीं’ के बाद अगले मुलाकात में लड़की(प्रेमिका) कहती है पता है बाबू मेरी क्लास मेट का बॉयफ्रैंड उसे बहुत महंगा गिफ्ट दिया है, लड़का समझ जाता है कि लड़की कहना क्या चाहती है।उसी समय लड़का (यानी प्रेमी) शॉपिंग-वापिंग, गिफ्ट-विफ्ट से लड़की को इम्प्रेस  करता है।

अगली मुलाकात एकांत कमरे या पार्क में होती है,और आंखों के आकर्षण से शुरू हुई प्रेमकहानी गले से उतरते हुए ‘नाभि के नीचे’ उतर कर दम तोड़ देती है।
इसके कुछ दिनों बाद या दो चार दस मुलाकातों के बाद प्रेमी के सोना, बाबू , जानू वाले बोल बदलकर यार टाइम नही है, मम्मी हैं, पापा हैं कुछ इसी टाइप के हो जाते हैं।

चूंकि प्रेमी प्रेमिका शुरू से इस बात के लिए मेंटली प्रिपेयर रहते हैं इसलिए दोनों को बहुत खास फर्क नही पड़ता है और महीने दो महीने बाद यही ‘ब्रेकअप’ में बदल जाता है।
इसके बाद लड़की फिर से प्रेमी और लड़की फिर से प्रेमिका की तलाश करने लगते हैं। नही तो भला अकस्मात होने वाली इस मुहब्बत को किसी तारीख ,महीने का इंतजार क्यों होता?

अब ” वेलेंटाइन डे”की जरूरत लड़के-लड़कियों को इसलिए पड़ने लगी है क्योंकि प्रेम अब भारतीय संस्कृति संस्कार के गोद से निकल कर पश्चिमी संस्कृति के ‘ बेबी वाकर'( बच्चों को घुमाने वाली गाडी ) में घूमने लगा है।

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