पिछले करीब पन्द्रह बीस सालो में बहुत तेजी से बदलाव आया है , तो जाहिर सी बात है त्यौहारों पर भी इसका असर पडा है , अब त्योहार बस आए और गए जैसे हो गए न उनका ज्यादा इंतजार रहता है न ही बहुत उत्साह ! इसका एक सबसे बडा कारण जो मैं समझती हूँ वो है लोगों का एकाकी जीवन , अब संयुक्त परिवार बहुत कम देखने को मिलते हैं, तो तीज-त्योहार खुशियाँ तो सबके साथ ही अच्छी लगती हैं, अकेले आप कैसे खुश रह सकते है कोई बाँटने वाला तो चाहिए।
दूसरा कारण यह है कि पहले लोगों के पास सीमित साधन होते थे तो तीज-त्योहार पर ही पकवान, कपडे, घूमना….होता था तो बच्चे, बड़े सब इंतजार करते थे लेकिन अब वो बात नही रही लोगों के पास अब पैसों की कमी नही और खर्च भी अपने ऊपर ही करना है तो उन्हें किसी पर्व का इंतजार नही करना पडता।
आज की जनरेशन अपनी खुशिया परिवार के बजाए दोस्तों के साथ बांटना ज्यादा पसंद करती है , इसलिए अब होली में हुडदंग ,और फुहडपन ज्यादा हो गया हैं ।
बाजारवाद भी बहुत बढ गया है हर चीज रेडीमेड मिलने लगी है वो भी ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए तो और भी कोई घर में कुछ बनाना नहीं चाहता और फिर प्राइवेट कम्पनियों में काम करने वालों के पास पैसा तो बहुत है बस समय नही है ,इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में बस एक दिन त्योहारों के लिए निकाल सकते है हफ्तों नहीं …….