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बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर संगीत साहित्य मंच के तत्वावधान में कवियों की सजी महफ़िल

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हमार पूर्वांचल
भव्य कवी गोष्ठी कार्यक्रम

ठाणे। साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था संगीत साहित्य मंच के संयोजक रामजीत गुप्ता के संयोजन में 09 फरवरी 2019 शनिवार सांय मुन्ना बिष्ट जी के कार्यालय, सिड्को ठाणे में बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर कवियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्प अर्पण एवं दीप प्रज्वलित कर पूजन अर्चन, वंदन के साथ भव्य कवि गोष्ठी संपन्न हुई। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री त्रिलोचन सिंह अरोडा ने की, विशेष अतिथि प्रसिद्ध गजलकार मोहम्मद हनीफ एंव रचनाकार सुशील शुक्ला जी मंच पर विराजमान थे।
गोष्ठी का कुशल संचालन श्री नागेंद्र नाथ गुप्ता जी ने शेरों-शायरी के साथ किया। श्रीमती सुधा बहुखंडी एवं श्री राधाकृष्ण मोलासी जी की सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम शुरू हुआ। काफी संख्या में कवि-कवियत्री एवं श्रोता उपस्थित रहे।

कवियत्री श्रीमती शिल्पा सोनटक्के, श्रीमती अनिता रवि, श्रीमती सुधा बहुखंडी, आभा दवे और तनुजा चौहान ने सस्वर कविता पाठ किया। अन्य कवियों में गजलकार वफ़ा सुल्तानपुरी, भुवनेंद्र सिंह जी बिष्ट,
जगतगुरू विदेह जी महराज, ओम प्रकाश सिंह, टी०आर० खुराना, अड० अनिल शर्मा, राधाकृष्ण मोलासी, उमाकांत वर्मा, अनिल कुमार राही, मनोज मैकश, एवं पासवाने अदब के संयोजक जनाब नजर हयात पुरी के साथ प्रेमांजली के संस्थापक श्री राम शर्मा के बाद अध्यक्ष श्री त्रिलोचन सिंह अरोडा एवं विशेष अतिथि श्री मोहम्मद हनीफ जी ने बहुत जानदार शायरी पेश की और अतिथि श्री सुशील शुक्ला जी ने अपनी रचना से उपस्थित जनों को चमत्कृत किया। श्री नागेंद्र नाथ गुप्ता ने सभी गोष्ठी में आये कविजनों का आभार और धन्यवाद् प्रकट कर गोष्ठी का समापन किया। उक्त काव्य गोष्ठी में प्रस्तुत की गई कवियों की रचनाएँ इस प्रकार रही-

कवियत्री आभा दवे :-

माँ सरस्वती ! ज्ञान की वीणा बजा
अज्ञान का तिमिर मिटा
चले सब नेक रास्ते
ऐसी राह दिखा
तेरा हो सदा वंदन
सब में ऐसी प्रीत बढ़ा
कंठ में हो वास तेरा
ऐसी करुण कृपा बरसा
सत्य की राह चले सब
ऐसी मति सब में जगा
हे सरस्वती माँ ! लेखनी में वास कर।

एडवोकेट अनिल शर्मा :-

हमेशा खयाल में है मेरे हालचाल में है,
मेरे चाल ढाल में है मेरी मातु भारती।
मेरे साजबाज में है मेरे बोलचाल में है जनजन आवाज में है,मेरी मातु भारती
आन बान शान में है मेरी पहचान में है,
मेरे अभिमान में है मेरी मातु भारती।
मेरे जयगान में है मेरे विजयगान में,
मेरे राष्ट्रगान में है मेरी मातु भारती।

ओम प्रकाश सिंह :-

हाथ तुम्हारे पकड़ के चलता था मैं बापू कभी कभी ,
प्रश्नों का बौछार किया करता था बापू कभी कभी।
बिन झल्लाए बीन उकताए तुम उत्तर देते रहते,
शायद तुमको भी यह मौका मिल जाता था कभीकभी।।
जब भी मौका मिलता था,तुम हमें घुमाने ले जाते,
बुटघर हो या चौपाटी हो सभी दिखाने ले जा ते।
हाथ जरा सा छुट जाता तो कैसे तुम घबरा जाते,
भीड़ भाड जब होती थी तो फौरन गोद उठा लेते।।
मुझे याद है साथ तुम्हारा, पल पल का और छण छण का,
मुझे याद एहसास तुम्हारा बीते कल की धडकन का।
मुझे देख ,देखा करती ये आँखें सपने कभी कभी,
क्यों कि हाथ पकड कर मैं चलता था साथ तुम्हारे कभी कभी।।
इन आँखों ने देखा है तुम हर जीद्द पूरी करते थे,
मेरे लिए जिया करते थे, मेरे लिए ही मरते थे।
तिनका तिनका जोड जोड के मेरा जहाँ बना डाला
मेरी खुशियों के खातिर अपनी खुशियां भी जला डाला।।

त्रिलोचन सिंह अरोरा :-

जी हां “कविता” मेरी ज़िन्दगी में शामिल है
मस्त गगन में….. धरा के चमन में
सुबह की किरण में….. निशा के नूर में
सब्ज़ खेत की हरियाली में,
प्रकाशमय दीवाली में… सप्तरंगी होली में,
नदी की धार में उछल-उछल उतरती कविता
लहरों संग आंख मिचौली खेलती “मेरी कविता”
बादल के आंचल से लिपटती,
बिजली की पायल में थिरकती,
प्यार की खुशबू में ….. हवा के हुस्न में
समय की रग-रग में ‘तैर रही कविता’
सुर ताल और राग में ‘रागिनी कविता’
दिल की थाप पे अपनेआप धड़क रही कविता.
मेरी यादों में कविता… मेरे इरादों में कविता
मेरे सपनों में कविता …मेरी हकीक़त में कविता
और तो और “कविता” प्रियतमा की अंगड़ाई भी है …….
और ठण्ड में ओढ़ने को, ‘रजाई’ भी है……
‘दिल के जज़्बात’ ही तो है कविता
हां, ‘नैनों की बरसात’ भी है कविता
चाँदनी रैना में ….दिल के चैना में,
कोयल की कूक में और नानी के “दाजवाले” (दहेज ) पुराने संदूक में संकलित है कविता.
कहाँ नहीं है कविता ? हर सांस में प्रवाहित है कविता, और तो और प्रकृति के परिवर्तित स्वभाव में…और मनुष्य के अभाव में भी तो है कविता …
सुख में, दुःख में, मुनाफे में, घाटे में,
हर मिजाज़ में पनपती है कविता …
दृष्टि से कभी ओझल नहीं हुई कविता
दर्पण में, जब-जब मैं ‘संवरू’
मुझसे पहले ‘सजती’ है “मेरी कविता”
साँझसवेरे, मुझसे जीभर बतियाती है कविता जाने क्या क्या कह सुनती है कविता
कविता कल भी थी…आज भी है कविता
मेरे अंग अंग में, मेरे हर रंग में,
मेरे संग संग विचरती है। कविता मेरा हमसफ़र / मेरा साथी है ” मेरी कविता ”
निःसंदेह, मेरी “थाती” है “मेरी कविता।।

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