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गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर जनभाषा प्रचार समिति के तत्वावधान में कवियों की सजी महफ़िल

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ठाणे : भारतीय जन भाषा प्रचार समिति ठाणे एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद महाराष्ट्र के तत्वावधान में गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर मुन्ना विष्ट के कार्यालय में मुंबई व ठाणे के ग़ज़लकारों, गीतकारों द्वारा कवि गोष्ठी हुई, जिसमें देशभक्ति गीतों, गजलों से साहित्यकारों ने लोगों का दिल जीत लिया। गणतंत्र दिवस की पावन संध्या पर गोष्ठी की अध्यक्षता सिंधी भाषा के वरिष्ठ कवि हरदास पाहुजा ने की, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ व्यंगकार रमेश श्रीवास्तव रहे व मुख्य अतिथि के रूप में कवियत्री प्रभा शर्मा “सागर” विद्यमान थी।

मंच संचालन वरिष्ठ गज़लकार व संस्था सचिव एन• बी• सिंह नादान ने अपने गजलों के माध्यम से चार चाँद लगा दिया। नादान जी ने आज की वर्तमान तस्वीर को उकेरते हुए कहा-
फूलों की तमन्ना थी,मगर ख़ार मिले हैं ।
यूँ जिन्दगी के रास्ते,दुश्वार मिलें हैं ।।
ये उनका नसीबा है जो,खुशियों से है लबरेज़।
हम तो हमेशा ग़म में,गिरफ्तार मिलें हैं ।।

वहीं दुसरे वरिष्ठ गीतकार श्री भुवनेन्द्र सिंह विष्ट जी कहते हैं-

साथ लो मन को अगर तुम,तन स्वयं सथ जायेगा ।
बूँद यदि बाकी रही तो,सिंधु भी बच जायेगा ।।

देशभक्ति के रंग में रंगते हुए विनय शर्मा “दीप” ने एकता के सूत्र में लोगों को बांधने का प्रयास किया-

एक देश एक लहू है एक जाति के सभी,
माता को बस पुत्र से एकमेव चाहिए ।
सत्य अहिंसा गांधीवाद जैसा हो प्रेमभाव,
गली-गली, घर-घर भाई चारा चाहिए ।
सुख-शांति देशप्रेम भ्रष्टाचार मुक्त देश,
धर्म संप्रदाय मुक्त स्वच्छ देश चाहिए ।
हाँथ में तिरंगा दीप देशभक्ति संग-संग,
इंद्रधनुष जैसा हे एकमेव चाहिए ।।

वीर रस के गीतकार अश्विनी कुमार यादव ने तो स्वयं को देश पर न्योछावर करने की बात कह दी-
ना मुझे गाड़ी ,बंगला ,भवन चाहिए।
ना मुझे हीरे -मोती रतन चाहिए।
देश सेवा में ही जान जाये मेरी,
इस बदन पे तिरंगा कफ़न चाहिए।।

मेरे हिस्से में वो मुकाम आये।
मेरा भी खून वतन के काम आये।
बात जब भी उठे शहीदों की,
उन शहीदों में मेंरा नाम आये।।

कवियत्री प्रभा शर्मा सागर-
गणतंत्र दिवस पर आज तिरंगा,
लहर-लहर लहराये।
अमर रहे गणतंत्र हमारा,
बच्चा-बच्चा गाये।
आजादी की दीपशिखा पर,
जलते आये परवाने।
कोटि-कोटि जन ने गाये थे,
इन्कलाब के गाने।।

गणतंत्र दिवस की मधुरम् बेला पर कवियत्री शिल्पा सोनटक्के- कहती हैं-
उठो सखी।अब ऊषा आयी,
चारों तरफ लालिमा छाई।
पंछी करते कलरव गान,
हरियाली का देख वितान ।।

वफ़ा सुल्तानपुरी
खुन बहाया जान गंवाई,
आजादी के मतवालों ने।
फांसी के फंदों को चूमा,
हंस-हंस कर दीवानों ने ।।

मुंबई के वरिष्ठ गीतकार जवाहर लाल निर्झर के गीतों के माध्यम प्रश्न छोड़ते हुए कहते हैं-

ये कैसी आजादी भैया,ये कैसी आजादी ।
बहुत दूर हैं, अभी दूर हैं।
देखो अपनी वादी।।
ये कैसी आजादी———-

रमेश श्रीवास्तव
दोस्तों कब तक मनाओगे,
पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी ।
मनाते-मनाते बीत गये,
हमारी सहनशक्ति के सत्तर साल।
अंग्रेज तो चले गये,
औलाद छोड़ गये।।

त्रिलोचन सिंह अरोरा
दुश्मन ओ नहीं जो सामने रहता है,
शत्रु ओ है जो छुप कर प्रहार करता है।
ये आजादी,शाहदत भी क्या अजीब राह है,
जिदंगी बना देती है, मरने के बाद ।।

गीतों के शहंशाह रामप्यारे सिंह रघुवंशी कहते हैं-

आओ फिर से मिलें आज,
और फिर से छेड़ें मधुर तान।
काव्य-गोष्ठी के माध्यम से,
भिन्न-भिन्न रस करें पान।।

गणतंत्र दिवस के अवसर पर
फिर नमन शहीदों को कर लें।
जो कल तक थे हमराहों मे,
उनकी भी याद जरा कर लें।।

उक्त कवियों के अतिरिक्त भोजपुरी गीतों, छंदों के राजकुमार लोकनाथ तिवारी अनगढ़, बैजनाथ बा शुक्ला, कुलदीप सिंह दीप, अनीता रवि, नंदलाल क्षितिज, सुशील शुक्ल नाचीज़, गजलों के राजकुमार जाकिर हुसैन रहबर आदि उपस्थित थे, सभी ने अपने-अपने लेखनी से देशभक्ति गीतों से संमा बांधा और काव्य गोष्ठी का समापन राष्ट्रगीत से किया गया ।

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