भगवान श्रीराम ने शिव धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाई और धनुष को भंग कर दिया। धनुष भंग होते ही पूरा कल्याण जय श्रीराम के नारे से गूंज उठा। मौका था अवध रामलीला संस्था द्वारा आयोजित धनुषभंग रामलीला का। जिसमें चौथे दिन पुष्प वाटिका और धनुष भंग का मंचन किया गया।
कल्याण के चिंचपाड़ा में आयोजित रामलीला के चौथे दिन के प्रसंग की शुरूवात हरिकीर्तन से हुई। सीताराम सीताराम सीताराम जय सीताराम।
राधेश्याम, राधेश्याम, राधेश्याम जय राधेश्याम।।
दो अक्षर का प्यारा नाम।
सीताराम जय सीताराम।।
तत्पश्चात ‘अंगना दुआर अऊर महल अटरिया।
तोहरा बिना निक नाही लागे रे सांवरिया।।
भजन गाकर रामलीला की शुरूआत हुई।
बता दें कि कल के पहले दृश्य के शुरूवात के ही पुष्पवाटिका प्रसंग में राजा जनक के बगीचे में एक तरफ से जानकी ,अपने सहेलियो के साथ फूल ओटन हेतु आई थी जबकि दुसरी तरफ से माली से आज्ञा लेकर श्रीराम, लक्षमण के साथ फूल लेने को ही आए थे वही राम जानकी के आंखे चार हो गये। तत्पश्चात सीता का स्वयंवर प्रस्ताव में शिवधनुष् रखा गया जिसे महाराज जनक के प्रतिज्ञानुसार जो ही शिवधनुष का प्रत्यंचा चढायेगा या उसे खंडित करेगा पुत्री सीता का उसी के साथ विवाह कर दिया जाएगा।
परंतु आलम यह हुआ कि अनेको देशो के राजा, वीर, योद्धा आदि बहुत कोशिश किए धनुष तोङने को लेकिन धनुष टटूटना तो दूर स्वंयम्बर में रखे हुए स्थान से टस से मस तक नहीं हो पाया।
इसी बीच मुनि विश्वामित्र की आज्ञा पाकर एवं भगवान शिव के आशिर्वाद के ध्यानार्थ श्री राम ने न सिर्फ शिवधनुष को तोङे बल्कि उसे चारो दिशाओं में खंडित भी कर दिए। फलस्वरूप महाराज जनक के प्रतिज्ञानुसार सीता ने राम के गले में वरमाला पहनाई एवं राम ने सीता के गले में माला पहनाकर एक दूसरे के जीवनसाथी सीताराम हो गये।
बतातें चलें कि इसी बीच लंकेश एवं वाणासुर का भयंकर संवाद भी हुआ था जिसपर भी दर्शको ने काफी तालियाँ बजाई थी जबकि शिवधनुष टूट जाने के बाद परशुराम लखन संवाद में मंच परिसर में तालियां गूजती रही।