ठाणे । भारतीय जन भाषा प्रचार समिति ठाणे एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद तथा महफ़िल ए गज़ल साहित्य समागम के तत्वावधान मुन्ना विष्ट के कार्यालय सिडको ठाणे (पश्चिम) में दिनांक 26 फरवरी मंगलवार को विशेष काव्यसंध्या का आयोजन “एक शाम दीक्षित दनकौरी के नाम” किया गया। जिसकी अध्यक्षता श्रीमती अलका पांडे जी ने की और मुख्य अतिथि के रूप में स्वयं श्री दीक्षित दनकौरी जी विद्यमान थे। विशेष अतिथि के रूप में नवी मुंबई के सुप्रसिद्ध गीत, गज़लकार जनाब नजर हयातपुरी, वरिष्ठि कवियत्री शिल्पा सोनटक्के, वरिष्ठ गज़लकारा एडवोकेट रेखा किंगर रोशनी उपस्थित धी।
इस काव्यसंध्या का आयोजन 20 वीं सदी के उत्कृष्ट रचनाकार राजीव मिश्रा एवं आर जे आरती साइया हिरांशी ने किया तथा विशेष सहयोग की भूमिका एवं मंच संचालन जनभाषा प्रचार समिति ठाणे के अध्यक्ष श्री रामप्यारे सिंह रघुवंशी ने की। नवी मुंबई, मुंबई एवं ठाणे से उपस्थित गीतकारों, ग़ज़लकारों, गीतकारों के साथ दिल्ली से पधारे अंतर्राष्ट्रीय गज़लकार श्री दीक्षित दनकौरी जी ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। काव्यसंध्या में उपस्थित सभी आगंतुकों को राजीव मिश्रा, आरती साइया एवं रघुवंशी जी ने पुष्प देकर सम्मान किया तथा आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया। कवियों में वंदना श्रीवास्तव, श्रुति भट्टाचार्य, कल्पेश यादव, साकी ग्वालियर, राजीव मिश्रा, डाॅ• शैलेश वफ़ा,डाॅ• वफा सुल्तानपुरी, टी आर खुराना जी, भुवनेन्द्र सिंह विष्ट जी, आभा दवे, प्रभा शर्मा सागर, पूनम खत्री, आर जे आरती साइया हिरांशी, विनय शर्मा दीप, अश्विनी कुमार यादव, अंजनी कुमार द्विवेदी, बारी बेचनराम, शारदा प्रसाद दुबे, लाल बहादुर यादव कमल, श्रीराम शर्मा, दिलबाग सिंह विर्क, सतीश सामयिक, धनीराम राजभर, दिलिप ठक्कर, उमाकांत वर्मा, संतोष सिंह, प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, अनिता रवि, अनीश कुरैशी, एच आर यादव आदि उपस्थित थे।
मुख्य अतिथि एवं सम्माननीय दीक्षित दनकौरी जी ने अपनी गजलों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया और तालियां बजाने से रोक नहीं पाये।
दनकौरी जी कहते हैं-
(1)
सियासत की वफादारी, हवाएँ जानती है ।
कहाँ कितना बरसना है, घटाएँ जानती हैं।
है शामिल ये नए चरागों की साज़िशों में,
किसे बीमार करना है, दशाएं जानती हैं ।।
(2)
खुलूसो मोहब्बत की खुशबू से तर है,
चले आइये, ये अदीबों का घर है ।।
(3)
आग सिने में दबाये रखिए ।
लब पे मुस्कान सजाये रखिए।।
गद्दार पडोसी को फटकार लगाते हुए एडवोकेट राजीव मिश्रा जी कहते हैं-
भारत देश वही है जिस पर
गंगा जमुना बहती हैं,
उत्तर से दक्षिण तक लेकर
अमर कहानी कहतीं हैं,
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
बौद्ध जैन सा धर्म यहाँ,
कितनी बोली कितनी भाषा
का बसता है मर्म यहाँ,
पर्वतराज हिमालय से कद
भारत का एहसास करो,
अमर संस्कृति से इसकी
कीर्ति का आभास करो
जहाँ गूँजतीं सुबह आरती
साथ साथ हो रही अजान,
ऐसे मुल्क के टुकड़े होंगे
कौन करेगा पाकिस्तान ?
जहाँ शिवाले के घंटे संग
रोज नमाज़ भी होती है
जहाँ दोस्ती की खातिर
सीता संग सलमा रोती है
जहाँ देववस्त्रों को प्रेम से
अब्दुल सीया करता है,
जहाँ मुसलमां के संग में
हिन्दू भी जीया करता है
होली ईद दीवाली मनतीं
विविध धर्म और वेश में
वहाँ सफल ना हो पाओगे
तुम अपने उद्देश्य में
जहाँ भजन में गाया जाता
ईश्वर अल्लाह एक समान
ऐसे मुल्क के टुकड़े होंगे,
कौन करेगा पाकिस्तान ?
याद करो बटवारे पर
हमने तो रीत निभाई थी
पैंसठ करोड़ जब भेजा था
तेरे सर पर छत आयी थी
याद करो सन पैंसठ में
कैसे शिकस्त तुम खाये थे
इस्लामाबाद की छाती पर
हम गाड़ तिरंगा आये थे
मत भूलो इकहत्तर में
कैसे अस्त्रों को फेक दिया
नब्बे हजार सैनिक के संग
ढाका में घुटना टेक दिया
जिसकी एक हरकत से नक्शे
पर मिट जाए नाम निशान,
ऐसे मुल्क के टुकड़े होंगे
कौन करेगा पाकिस्तान?
जो लिए कटोरा भिक्षा का
दुनियाँ में घूमा करता है
दुत्कारे जाने पर भी जो
पैरों पर जाकर गिरता है
अपनी बदहाली हालत पर
तुम जरा नही शरमाते हो
जो बेच भैंस और कारों को
दो वक़्त की रोटी खाते हो
जिसके पूरे बजट से ज्यादा
सैनिक खर्च हमारा है
ऐसे भिखमंगे ने देखो
आज हमें ललकारा है
जिसकी सकल आय से ज्यादा
भारतीय खा जाते पान,
ऐसे मुल्क के टुकड़े होंगे
कौन करेगा पाकिस्तान ?
दिलीप ठक्कर दिलदार कुछ ऐसे कहते हैं-
ज़िंदगी का दम निकलता जाएगा,
वक़्त हाथों से फिसलता जाएगा!
आस्तीनों को चढाओ मत अभी,
दौर ये भी हाथ मलता जाएगा!
गम को आने दो, खुशी की बात है,
दोस्ती का रुख बदलता जाएगा !
ठोकरों से ही सबक शीखे सभी,
गिरने वाला भी संभलता जाएगा!
जब तलक मंज़िल नहीं मिल जाएगी,
तब तलक ‘दिलदार’ चलता जाएगा!
शहीदों को नमन करते हुए कवियत्री अलका पांडे वीर पुत्रों स्मरण करते हुए कहती हैं –
सारी दुनियां से अपनी पहचान मिटा कर चले गए।
कुछ पल की सारी खुशियां, अरमान लूटा कर चले गए।
एक तमन्ना थी दिल मे की मेरा भारत खुशहाल रहे,
इसीलिए वो हिन्दुस्था पर अपनी जान लूटा कर चले गए ।।
नजर हयातपुरी ने क्या खूब कह गये
शराबे इश्क़ ही लाओ के बात बन जाए,
के आई नज़र से पिलाओ के बात बन जाए।
गुज़र रही है अंधेरों में ज़िन्दगी जिस जा,
वहां चराग़ जलाओ के बात बन जाए ।।
कवियत्री वंदना श्रीवास्तव वसंत ऋतु पर चित्रण करते हुए कहती हैं-
ऋतु वसन्ती का नवल अवतार होता, देखिए..
इस प्रणय के पर्व का सत्कार होता…देखिए..
गजलकारा पूनम खत्री दुश्मनों को आगाह करते हुए कहती हैं-
(1)
इस दुनिया की गौरवशाली शान हैं हम।
हमसे नहीं उलझना हिंदुस्तान हैं हम।।
(2)
मत पूछो क्या मुझपर गुजरी ।
पिछले बरस ..बारिश अग्नी। बनकर बिखरी पिछले बरस।
उक्त रचनाकारों की भांति सभी कवियों, गीतकारों एवं गजलकारों ने भी खूब संमा बांधा। अंत में राष्ट्रीय गीत के साथ रघुवंशी जी ने काव्यसंध्या का समापन किया ।