Home अवर्गीकृत एक था बचपन – इंदु भोला मिश्रा

एक था बचपन – इंदु भोला मिश्रा

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जय हिंद मास्टर जी ,,
कल आप जो विषय दिये थे ,मैं
सबसे पहले लिख कर लाई हूँ ।
कक्षा में सबसे पहले हाथ उठाते हुये ।। मुनमुन, ,,
मास्टर साहब आज मुझे जल्दी छोङ देना
मास्टर साहब , क्यू, क्या, बात है ।
मास्टर साहब मै सायकिल चलाना सिख रही हूँ ।
मेरे पिता जी कहते हैं कि सायकिल सिख लेगी मेरी बेटी तो । दवा खाने से जाकर दवा लायेगी।

मास्टर साहब-
मुनमुन , तुम इतनी छोटी हो
कही गीर पङी कोई तुम्हारा साइकल छीन ले तुम क्या करोगी ।

नही नही मास्टर जी
मेरा घर एकांत मे हैं, खेत के बीचों बीच में वहां कोई साधन नहीं हैं ।
दवाखाना दूर है ,
आज पिता जी के लिए दवा लेने जाना है ।
यह पेपर देख लिजिये आप ।

मास्टर साहब पेपर देखते हुए ,
आखों मे आंसू भर गये
मुनमुन चौथी कक्षा की।।
पढ़ने मे होशियार , दो छोटे भाई दो छोटी बहने जुङवा । खाने पीने कि तकलीफ गाँव में कोई रोज़ी रोटी नही ।। प्रायमरी स्कूल की शिक्षा मे इस बेटी के पास इतना हुनर ।

मास्टर साहब आश्चर्य से-
मुनमुन सरकारी सुविधाओं का तुम्हारे घर पर कुछ सहयोग हैं ।

मुनमुन –
नही मास्टर जी ,
मेरे दादी जी के नाम से एक कमरा है उसी मे हम सब रहते हैं।
गाव का सरपंच हम सब को आवास देने को कहता हैं ।

मास्टर साहब पेपर देखते हुए
दवा ठीक हैं मै आप के घर पर ला कर देता हूँ ।

मुनमुन नही मास्टर जी
चार बजे तक पापा को देना है

मास्टर साहब
जिस उम्र में बच्चे खेलते है कूदते है ।इस छोटी बच्ची इतनी बङी जिम्मेदारी सम्भाल रही हैं ,
पढाई में भी अउअल आश्चर्य भरे नजरों से देखते हुए
ऐसी होती हैं बेटियां ?

मौलिक रचना-
इंदु मिश्रा मुंबई

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