भारत में अधिकतर नेताओं की मानसिकता इतनी गंदी हो गई है कि उन्हें केवल कुर्सी के अलावा कुछ नही दिखता है। चाहे वे किसी भी पार्टी के हो। कुछ नेताओं की बयानबाजी तो उनके भारतीय होने पर शक पैदा कर देती है। लेकिन कानून जानकार व उनके पक्षकार इसे अभिव्यक्ति की आजादी से तौल देते है। और उनके मनमानी बयानबाजी पर सही का मुहर लगाकर उनको भविष्य में और गलती करने की हवा देते है। इन नेताओं को बोलते समय कम से कम दिए जा रहे बयान की जानकारी व तथ्यों को जानकर बोलना चाहिए। लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि देश की टाप परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले शिक्षितों को कुछ अंगूठाछाप, भ्रट नेताओं की भी जी हूजुरी भी करनी पडती है। जो बेहद ही शर्मनाक है। हालांकि देश के सभी नेता ऐसे नही है, अच्छे नेताओं की भी कमी नही है लेकिन अच्छे नेताओं की संख्या कम है। भ्रष्ट, गुंडा, बदमाश, आरोपी, दबंग नेताओं की संख्या अधिक है। कुछ तो ऐसे भी है जो अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि को हमेशा ही छिपाये रहते है। और अपने सफेदपोश में लोगों ब्लैकमेल करते है।
भाजपा के सांसद नेपाल सिंह ने पुलवामा हमले के बाद कहा था कि सैनिक मरने के लिए ही होते है। ममता बनर्जी ने हमले का सुबूत मांग लिया। नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान की हिमाकत की। राहुल गांधी ने आतंकवादियों को ‘जी’ लगाकर सम्बोधित किया। हद तो तब हो गई जब अपने को प्रोफेसर कहने वाले सपा के रामगोपाल यादव ने मोदी सरकार पर ऐसा आरोप लगा दिया कि और सभी आरोप फीके पड गये। रामगोपाल ने कह दिया कि चुनाव के लिए यह हमला हुआ। लेकिन देश में लोग इन बदजुबान नेताओं को भी जमकर समर्थन इसलिए करते है कि वह किसी नेता/दल का विरोधी है।
एक नाम और काफी चर्चा में रहता है वह है ओवैसी का जो अपने को ही भारत का और इस्लाम का बहुत बडा जानकार समझते है। और आए दिन केवल अपने बयानबाजी से चर्चा में रहते है। चाहे वह तीन तलाक का मामला हो, राम मंदिर का मामला हो, चुनाव तिथि का मामला हो या मुम्बई ब्लास्ट में आरोपी असीमानन्द का मामला हो। असीमानन्द मामले में पाकिस्तान ने भी कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाया और ओवैसी ने भी इसे हिन्दू आतंकवाद से जोडकर राजनीति करनी चाही लेकिन चाल कामयाब न हो सकी। अपने को मुस्लिमों का नेता स्थापित करने के लिए केवल विवादित बयानबाजी करने से कुछ नही होगा। देश के मुस्लिम महिलाओ की दशा में सुधार, फैली कुप्रथा में अपनी बात रखनी चाहिए। जो मुसलमानों को और आगे ले जा सके। देश का युवा अब देश में धर्म व जाति की राजनीति करने वालों पर विश्वास नही करेगा। देश को विकास की राह पर ले जाने वालों का समर्थन करेगा।
चुनावी माहौल में नेता अब जनता को तरह तरह का लालीपाप देकर अपने पक्ष में करने पर लगते है पर जीत जाने के बाद उनका दर्शन दुर्लभ हो जाता है। लोगों को चाहिए कि इन नेताओं की जाल में न फंसकर अपने विवेक से सही नेता का चुनाव करें। क्योकि जब तक देश की बडी संसद में ईमानदार, शिक्षित लोग नही जायेंगे तब तक देश का सही विकास होना केवल स्वप्न जैसा है। देश में गरीबी, बीमारी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार तमाम बडी समस्याओं के लिए देश के कुछ भ्रष्ट नेता ही है।
देश में आज राष्ट्रवाद की भावना पर तरह तरह की विचारधारा हाबी हो चुकी है। इसका मूल देश के कुर्सी के लिए अपनी जाल फैलाने वाले नेता है। जिनका न कोई विचारधारा है नीति। केवल जनता को दिखाने के लिए गांधी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, राम मनोहर लोहिया, मौलाना आजाद, डा भीमराव अम्बेडकर समेत कई महापुरूषों के पद चिन्हों पर चलने की कस्मे वादे करते है जो उनकी राजनीति से काफी दूर है। जबकि वास्तविकता है कि मौका पाते ही अपने चीर विरोधी को भी कुर्सी के लिए गले लगा लेते है। जिससे किसी तरह से सत्ता पर काबिज हो जाए। देश के आजादी के इतने दिन बाद भी हमारा देश विकसित न बन सका इसकी मुख्य वजह देश के भ्रष्ट नेता है। जो देश में रहकर ही विभिन्न घोटालों की वजह से देश को अंदर से खोखला कर दिया है। फिर भी देश के लोग पता नही क्यों रजिस्टर्ड घोटालेबाज, अपराधियों व अनपढों को अपना कीमती मत देते है।
इसके पीछे भी है लोगो की कुंठित मानसिकता का प्रभाव दिखता है जो जाति, धर्म, क्षेत्र के नाम पर बंटकर अपना वोट गलत आदमी को दे देते है। किसी देश खासकर भारत का विकास तभी होगा जब देश से भ्रष्टाचारी नेताओं को हटाकर स्वच्छ छवि के नेताओं को अपना मत देना होगा। और दूसरी बात कि जाति, धर्म व क्षेत्र के नाम पर कभी भी मामताधिकार का प्रयोग न हो। जब तक हर भारतीय के मन में राष्ट्र के प्रति सकारात्मक सोच व उसके हित को सर्वोपरि रखना शामिल नही होगा। भारत की वर्तमान दशा में किसी भी किमत मे सुधार संभव नही है। देश के सभी नागरिकों के मन में देशहित का स्थान पहले नंबर पर हो। इस समय जाति धर्म के नाम पर लडने वालों को सोचना चाहिए कि उनके द्वारा आज बोए जा रहे जाति धर्म की जहर को आने वाली पीढियों को अवश्य पीना पडेगा। तब वे केवल गाली देंगे न कि सम्मान करेंगे।
अत: देशहित को ध्यान में रखकर हमें देश की हर चीजों पर सजकता से रहना होगा। और समाज को जाति, धर्म या अन्य किसी मुद्दों पर बांटकर राज करने वाले कुछ सफेदपोश नेताओं से सावधान रहकर राष्ट्रहित में सोचने व करने वालों का साथ देना होगा। कोई भी दल या नेता बुरा नही है लेकिन जो देश की एकता अखण्डता व अस्मिता पर सवाल उठाए उसे मिलकर जबाब देना जरूरी है। क्योकि नेता रहे न रहे लेकिन भारत देश रहना जरूरी है। क्योकि देश की तरक्की तभी संभव है जब देश का हर नागरिक अपने जिम्मेदारी व कर्तव्यों का निर्वहन राष्ट्रवादी भावना से करें।