सत्ता के लिए सपा को साइकिल रैली ही सहारा
भदोही । विगत दिनों छोटे लोहिया के नाम से विख्यात रहे सपा के ब्राह्मण नेता जनेश्वर मिश्र के जन्मदिवस मौके से सपा ने एक बार फिर उसी साइकिल यात्रा को अपना सहारा बनाया। जिससे कई बार उसे ताजपोशी का सुख मिल चुका है। फर्क सिर्फ इतना था कि अपने बयानों क्रियाकलापों और आचरण में ब्राह्मणों अथवा हिंदुत्व से बचती आई सपा इस बार परशुराम का नारा भी लगाया। ब्राह्मणों का हितैषी भी बताया। दबी जुबान इशारा भी किया कि भगवान राम कृष्ण और शंकर किसी के बपौती नहीं है। बल्कि सभी के हैं।
जो सबको साथ लेकर चले सबका हित सोचें और सभी को समवेत सम्मान और संस्कार दें वहीं समाजवादी है। जनेश्वर मिश्र को समाजवाद का प्रतीक साबित करते हुए यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि देश के अनेक ब्राह्मण नेता समाजवाद को मजबूत बनाने में अपना योगदान दिया है, और वे समाजवादियों के प्रेरक पुरुष हैं।
सपा का ब्राह्मण अथवा हिंदुत्व प्रेम सत्ता के लिए हो या बसपा के ब्राह्मण हितैषी होने का जवाब अथवा भाजपा के सवर्ण वोटों में घुसपैठ का तरीका, किंतु यह जरूर है कि इसमें कुछ न कुछ है तो जरूर। अन्यथा अब तक राम के नाम से परहेज करती आई सपा परशुराम का नारा क्यों लगाती। जनेश्वर मिश्र को समाजवाद का प्रतीक क्यों बताती। जो भी हो किंतु ब्राह्मणों के साथ सपा को अपनी साइकिल यात्रा फिर याद आ गई। प्रदेश में जनेश्वर मिश्र के जन्मदिवस पर हुए कार्यक्रमों के बाद साइकिल यात्राएं निकाली गई। इसमें सपा प्रमुख अखिलेश यादव समेत उनकी धर्मपत्नी डिंपल यादव और सपा के अन्य बड़े नेताओं ने भी शिरकत किया। सपा प्रमुख खुद साइकिल चलाएं और कार्यकर्ताओं में जोश भरते गांव गांव की गलियों तक पहुंचने का आह्वान किया। माना जा रहा है कि समय-समय पर किसी न किसी बहाने अब सपा की साइकिल रैली दौड़ती रहेगी। यह सिलसिला चुनाव तक जारी रहेगा। जाहिर है कि साइकिल यात्राएं सपा का आजमाया हुआ सफल नुख्शा है। यही साइकिल यात्राएं सपा को कई बार सत्ता तक पहुंचाई हैं। आज भी सपा को साइकिल पर भरोसा है कि साइकिल ही कार्यकर्ताओं को एकजुट करेगी। उन्हें संघर्ष का जोश देगी और साइकिल ही सत्ता के सिंहासन का रास्ता देगी।
जो सबको साथ लेकर चले सबका हित सोचें और सभी को समवेत सम्मान और संस्कार दें वहीं समाजवादी है। जनेश्वर मिश्र को समाजवाद का प्रतीक साबित करते हुए यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि देश के अनेक ब्राह्मण नेता समाजवाद को मजबूत बनाने में अपना योगदान दिया है, और वे समाजवादियों के प्रेरक पुरुष हैं।
सपा का ब्राह्मण अथवा हिंदुत्व प्रेम सत्ता के लिए हो या बसपा के ब्राह्मण हितैषी होने का जवाब अथवा भाजपा के सवर्ण वोटों में घुसपैठ का तरीका, किंतु यह जरूर है कि इसमें कुछ न कुछ है तो जरूर। अन्यथा अब तक राम के नाम से परहेज करती आई सपा परशुराम का नारा क्यों लगाती। जनेश्वर मिश्र को समाजवाद का प्रतीक क्यों बताती। जो भी हो किंतु ब्राह्मणों के साथ सपा को अपनी साइकिल यात्रा फिर याद आ गई। प्रदेश में जनेश्वर मिश्र के जन्मदिवस पर हुए कार्यक्रमों के बाद साइकिल यात्राएं निकाली गई। इसमें सपा प्रमुख अखिलेश यादव समेत उनकी धर्मपत्नी डिंपल यादव और सपा के अन्य बड़े नेताओं ने भी शिरकत किया। सपा प्रमुख खुद साइकिल चलाएं और कार्यकर्ताओं में जोश भरते गांव गांव की गलियों तक पहुंचने का आह्वान किया। माना जा रहा है कि समय-समय पर किसी न किसी बहाने अब सपा की साइकिल रैली दौड़ती रहेगी। यह सिलसिला चुनाव तक जारी रहेगा। जाहिर है कि साइकिल यात्राएं सपा का आजमाया हुआ सफल नुख्शा है। यही साइकिल यात्राएं सपा को कई बार सत्ता तक पहुंचाई हैं। आज भी सपा को साइकिल पर भरोसा है कि साइकिल ही कार्यकर्ताओं को एकजुट करेगी। उन्हें संघर्ष का जोश देगी और साइकिल ही सत्ता के सिंहासन का रास्ता देगी।