Home साहित्य तिरछी नज़र …. बड़ी बड़ी कड़ाहियों में

तिरछी नज़र …. बड़ी बड़ी कड़ाहियों में

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बड़ी बड़ी कड़ाहियों में छोटे छोटे चम्मच,
छिछोरी अदा के साथ यूँ मचल रहे हैं ।
राजनैतिक बाप ने पकड़ा दी है लॉलीपॉप,
बचकाने बन बन्दर से बस बहल रहे हैं ।
अति आत्म ज्ञान पर मोहित आज ‘देवराज’,
दिखावे का कड़कपन भूत में सरल रहे हैं ।
सुबह – शाम नित्य ही कड़ाही की खोज में,
झोला टांग पीठ पर अनवरत टहल रहे हैं ।।

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