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भदोही से लेकर मुम्बई, दिल्ली और गुजरात तक इस अधिकारी को अपशब्दों से नवाजते हैं लोग

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सरकार से ज्यादा ठेकेदार की चिंता करते हैं स्टेशन मास्टर साहब

भदोही। भारत सरकार और सरकार का रेलवे विभाग अपने यात्रियों को सुविधा देने के लिये तमाम दावे करता है, किन्तु सरकार की मंशा को पूरा करने वाले अधिकारी और कर्मचारी की योजनाओं में पलीता लगाने से गुरेज नहीं करते हैं। जिसके कारण स्टेशन पर आने वाले यात्री और उनके सहयोगियों को भुगतना पड़ता है। ऐसा ही कुछ हो रहा है कालीन नगरी भदोही के रेलवे स्टेशन पर, जिसके कारण रोजाना तूं—तूं मैं—मैं की स्थिति बनी हुई है। जिसके कारण त्रस्त हुये यात्री स्टेशन अधीक्षक को रास्ते भर अपशब्दों से नवाजे हैं।

बता दें कि भदोही रेलवे स्टेशन के नवीनीकरण के पश्चात प्लेटफार्म नं.1 पर जगह की कमी के कारण प्लेटफार्म नंबर 2 पर वाहन स्टैंड का ठेका दे दिया गया। आमतौर पर वाहन स्टैंण्ड के लिये ठेकेदारों को रेलवे की कुछ जमीन पर जगह मुहैया करा दी जाती है। जिसमें लोग अपने वाहन जमा करते हैं और एक निर्धारित शुल्क देते हैं। पर भदोही में ऐसा नहीं है। दो नंबर प्लेटफार्म पर अगर जाना है तो बिना पैसे दिये प्रवेश नहीं मिलेगा।

दरअसल बात यह है कि प्लेटफार्म नंबर दो के बाहर वाहन खड़ा करने के लिये बहुत सारी जगह बना दी है। वहीं प्लेटफार्म 2 पर वाहन स्टैण्ड का ठेका भी दिया गया है। अब ठेकेदार ने स्टेशन के प्रवेशद्वार पर ही बैरियर लगाकर कब्जा जमा लिया है। यदि किसी यात्री को कोई स्टेशन पहुंचाने गया तो उसे बैरियर पर ही रोक लिया जाता है। ऐसे में रोजाना किसी यात्री से बहस होती है। जो व्यक्ति अपने वाहन से किसी को सिर्फ छोड़कर जाना चाहे और गाड़ी न खड़ी करे तो भी उसे पैसा देना होगा।

सबसे मुख्य बात यह है कि ठेका सिर्फ चार पहिया वाहन का दिया गया है। जबकि वसूली बाइक सवारों से भी हो रही है और न देने पर मारपीट की नौबत तक आ जाती है। अपमानित तो सैकड़ों हो रहे है। इस मामले में कुछ जिम्मेदार सामाजिक लोगों की टीम जब स्टेशन अधीक्षक आलोक कुमार से शिकायत की गयी तो उन्होंने दबे मन से स्वीकार किया और देखने की बात कही। साथ ही दबे मन से वाहन स्टैण्ड मालिक का समर्थन किया की जितने का ठेका होता है उतनी वसूली नहीं हो पाती। जबकि रेलवे पुलिस ने शिकायत को अनसुनी कर दी।

सोचने वाली बात है कि वाहन स्टैण्ड पर जो बोर्ड लगा है। उसमें आज्ञा से कोतवाल, रेलवे पुलिस चौकी इंचार्ज और स्टेशन अधीक्षक लिखा गया है। समझ में नहीं आ रहा कि स्टेशन अधीक्षक महोदय रेलवे को लाभ पहुंचाने के लिये सोचते हैं या फिर वाहन स्टैण्ड के ठेकेदार की।

सोचने वाली बात है कि यदि किसी यात्री से वाहन स्टैंड संचालक की कहासुनी हो गयी तो गुजरात दिल्ली मुम्बई आदि जगहों को जाने वाली यात्री रेल में बैठने के बाद उसकी चिंता करने लगते हैं कि उन्हें छोड़ने आये व्यक्ति के साथ कोई अभद्रता तो नहीं हो गयी। इसका सारा दोष स्टेशन अधीक्षक पर रख दिया जाता है, और दोष रखते समय किन शब्दों का प्रयोग होता है। यह सर्वविदित है। यदि वास्तव में वाहन स्टैंड संचालक स्टेशन मास्टर की नहीं सुनता तो उन्हें अपने अधिकारियों को लिखना चाहिये। यदि नहीं लिख रहे हैं तो सवाल के घेरे में आयेंगे ही…!

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