मुंबई (गोरेगाॅव): साहित्यिक सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था काव्यसृजन की मासिक काव्य गोष्ठी व आओ हम सब खुद से माने कार्यक्रम लालबहादुर शास्त्री मैदान शास्त्री नगर गोरेगांव वेस्ट में आदरणीय श्री श्रीधर मिश्र जी की अध्यक्षता व श्री लालबहादुर यादव कमल जी के संचालन में महानगर के प्रतिष्ठित कवि और कवियित्रियों ने अपनी कविताओं से रविवार की शाम को सुरमई कर दिया।
कवियों में श्री शिवप्रकाश जौनपुरी, रमाकांत ओझा लहरी, जाकिर हुसैन रहबर, धर्मेन्द्र कुशवाहा, श्रीनाथ शर्मा, अजय बनारसी, हौंसिला सिंह अन्वेषी, जवाहरलाल निर्झर, रुस्तम घायल, लालबहादुर यादव कमल, मंगेश माही, आनंद पाण्डेय केवल, सूरज दूबे, विरेन्द्र यादव, रमेश श्रीवास्तव, शिवनारायण यादव, रामप्रकाश मिश्र, सुशील शुक्ल नाचीज, शिवपूजन, रविशंकर, दिनेश मिश्र वैसवारी, जयंत पटेल अम्बिका अग्रवाल राजेश दूबे असरदार, सत्यम दूबे उपस्थित थे। कवियित्री सौ.डॉ वर्षा सिंह, इंदूमिश्रा, सुमन तिवारी, भारती त्रिपाठी, ऊषा सक्सेना, हेमा अंजुलि, निशा सिंह ने अपनी रचनाओं से चार चाँद लगा दिया।
इस कार्यक्रम में गुजरात से पधारी विदुषी आदरणीया निशा सिंह जी को शाल व पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया गया। आदरणीय हौंसिला अन्वेषी जी दोहा, चौपाई, अतुकान्त कविता व गजल लिखने के विधान के बारे में विस्तृत जानकारी हम साहित्यकारों के साथ साझा किये।
अपने अध्यक्षीय भाषण में आदरणीय श्रीधर मिश्र जी ने सफल काव्यायोजन के लिए संस्था काव्यसृजन परिवार की भूरि-भूरि प्रशंसा की व सभी कवियों की रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डाला। कुछ की रचनाएँ बहुत सराहनीय रही जो क्रमशः-
श्री हौसिला प्रसाद सिंह अन्वेशी-
वह विकास को कह रहा,भारत पाकिस्तान ।
हिन्दू मुस्लिम हो गया,प्यारा हिन्दुस्तान ।।
नोट बंद कैसे हुआ,पूँछ रहें हैं राम।
फिर कैसे होता नहीं,यह मंदिर का काम ।।
श्री शिवप्रकाश जौनपुरी-
रात रात भर जागकर,करते हैं खूब काम।
बीते करते काम दिन,करते ना आराम ।।
जगह जगह है कर सभा,सेखी रहे बघार।
साठ वर्ष तक मजा किये,लेकर खूब उधार ।।
श्री अजय बनारसी-
जख्म चेहरे बता रहे, क्या मुस्कराऊं मैं ।
चिथड़ों में अपने उड़े,क्या मुस्कराऊं मैं ।
है अमन किस किताब में, कैसे ढूंढ लाऊं मैं ।
आँखे भरी शोलों से,क्या मुस्कराऊं मैं ।।
श्री श्रीनाथ शर्मा-
मुश्किल घड़ी में मत कांपना,
जीवन सफर में भी मत हांफना।
सब ही मगन हैं जीवन अपने,
किसी की मोबाइल में मत झांकना ।।
श्री सुशील शुक्ल नाचीज़-
सिर्फ दौलत के ढेर से,नहीं तौलती है जिंदगी ।
माटी के ढेर पर भी,खेलती है जिदंगी ।।
कार की रफ्तार पर ही नहीं, दौड़ती है जिंदगी ।
खेत की मेड़ पर भी,डोलती है जिंदगी ।।
श्रीमती ऊषा सक्सेना-
मेरी आँखों में आँसू देखकर,तुम मुस्कुराना ।
जब आये याद मेरी,दिल अपना ना जलाना ।
पोंछ लेना आंसुओ को,अपनी आखों से ।
ना दर्द कोई दिल में पालना,ना जमाने को जताना ।।
श्री आनंद पांडे केवल-
लौट के गाँव फिर नहीं जाना हुआ।
पेड़ गूलर का सुनता हूँ पुराना हुआ ।।
लौटोगे कब तलक,शहर से पूछकर।
रोती आखों का मां का,छुपाना हुआ ।।
अंत में संस्था के उपकोषाध्यक्ष श्रीनाथ शर्मा जी सभी उपस्थित लोगों का आभार व्यक्त किया।