मिशन 2019 से पहले भारतीय जनता पार्टी को अटल जी की मौत के बाद एक ऐसा भावनात्मक मुद्दा मिल गया है, जिसे भुनाकर भाजपा एक बार फिर वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिये तैयारी कर ली है। अटल जी के नितियों को तिलांजलि देने वाली भाजपा ने पूरे देश में ‘अटल’ लहर पैदा करके लोगों की भावनाओं के साथ खेलने का बीड़ा उठा लिया है। अटल के अस्थिकलश पर चढ़ रहे सियासत के फूलों की कितनी महक आम जनता के दिलों दिमाग में घुसेगी यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन अपनी राजनीति को चमकाने के लिये भाजपा करोड़ों रूपये पानी की तरह बहा रही है।
जनसंघ की रीढ़ रहे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपाई जी और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी जी के बलिदानों को भाजपा के लोगों को कभी भूलना नहीं चाहिये था। लेकिन मोदी सरकार बनने के बाद भाजपा में किस तरह आडवानी जी को बैकफुट पर डाल दिया गया यह किसी से छुपा नहीं है। इस दर्द को कई बार आडवानी ने अपने ट्यूटर पर व्यक्त भी किया है। मैं तो यहां यहीं कहूंगा कि अटल जी का भाग्य ही था जो वे अपनी दुर्दशा देखने से पहले बिस्तर पर चले गये। यदि वे भी मौजूदा समय में सक्रिय राजनीति में होते तो कोई आश्चर्य नहीं था कि उन्हेें भी मोदी और अमित शाह की टीम किनारे कर देती।
भाजपा अच्छी तरह जानती है कि अटल जी का व्यक्तित्व उनके पद से हमेशा बड़ा रहा। यहीं वजह थी कि उनके प्रबल विरोधी भी उनकी तारीफ करने से नहीं रह पाते थे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू जी रहें हो या स्व. इंदिरा गांधी जी सभी ने पार्टी से हटकर अटल जी को हमेशा सम्मान किया। अटल जी ने पूरे देश से पानी की समस्या को दूर करने के लिये अपना विचार दिया था कि यदि पूरे देश की नदियां आपस में जोड़ दी जायें तो पानी की समस्या दूर हो सकती है। अटल जी के बाद जब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार आयी तो अटल जी इस प्रस्ताव पर कभी चर्चा ही नहीं हुई। इसके बाद केन्द्र में मोदी की सरकार आने के बाद भी इस प्रस्ताव पर कभी गंभीरता से विचार नहीं किया गया।
वहीं अटल जी के देहावसान होते ही भाजपा को अटल जी की मौत को भुनाने का मौका मिल गया। भले ही अटल जी अपने जीवित रहते देश की नदियों को आपस में जुड़ते नहीं देख पाये, लेकिन उनकी अस्थियां सभी नदियों में प्रवाहित करने की योजना भाजपा ने बना ली। देखा जाय तो इसके पीछे न तो भाजपा की भावनायें जुड़ी हुई हैं और न ही उन्हें अटल के प्रति प्रेम है। बल्कि अटल की अस्थियों पर जो सियासत के फूल बिखेरे जा रहे हैं। उसमें भाजपा को अपना वोटबैंक बनता दिखायी दे रहा है।
राजनीति के पुरोधा स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी की अस्थियों के पीछे भाजपा ने जो राजनीति शुरू की है। उससे देश का अरबों रूपया पानी की तरह बहाया जा रहा है। श्रद्धांजलि देने वाले अधिकतर चेहरों को देखकर यहीं लगता है कि जैसे लोग किसी शोकसभा में नहीं बल्कि किसी खुशी के समारोह में शिरकत करने आये हुये हैं। यदि भाजपा अटल जी की मौत को राजनीति करने का माध्यम नहीं बनाती तो देश की प्रमुख नदियों में सादे समारोह में उनका अस्थि विसर्जन किया जा सकता था। लेकिन भाजपा को तो अपनी राजनीति चमकानी है। भले ही वह किसी की मौत पर हो। क्या फर्क पड़ता यदि देश की पवित्र नदी गंगा में एक जगह ही अटल जी की अस्थियों को विसर्जित कर दिया जाता, लेकिन एक ही नदी में सैकड़ों जगह अस्थि विसर्जन करने से भाजपा को अपना राजनीतिक उल्लू सीधा होता दिखायी दे रहा है।
देखा जा रहा है कि अस्थि विसर्जन के बहाने जगह जगह शोकसभा के नाम पर राजनीतिक मंच सजाया जा रहा है। भाजपा के नेता, सांसद, विधायक अपनी सरकार की उपलब्धियों के गुणगान कर रहे हैं। विपक्ष मौन है, क्योंकि अटल जी जैसे आकाशीय व्यक्तित्व पर बोलकर विपक्ष अपना छीछालेदर नहीं कराना चाह रहा है। आम जनता के टैक्स से आये पैसे को भाजपा अपनी राजनीति को चमकाने के लिये इस्तेमाल कर रही है और आम मूढ़ जनता यह समझ रही है कि भाजपा अटल जी के प्रति अपना समर्पण दिखा रही है।
होना तो यह चाहिये था कि जो बेशुमार धन अटल जी के नाम पर सियासत करने के लिये भाजपा खर्च कर रही है, उसी धन को अटल जी नाम पर कोई विकास की योजना संचालित करके देश की जनता को लाभ पहुंचाती, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। बल्कि कभी मंदिर के नाम पर, कभी धर्म और जाति के नाम पर लोगों की भावनाओं को भड़काकर वोट बटोरने वाली भाजपा को बैठे बैठाये अटल जी की मौत ने एक और मुद्दा सियासत की थाली में परोस दिया है। क्योंकि भाजपा को अच्छी तरह पता है कि विकास, भ्रष्टाचार, बेराजगारी देर करने के झूठे भाषणों पर आम वोटर बूथ तक नहीं आयेगा।
वास्तव में महिलाएें बहुत दुखी हैं .