बिरह बेदना भक्तों की अब, सही न हमसे जाए।
राम भक्त सरकार बनी है, फिर भी हाए हाए।
केंद्र में सरकार बना कर, राज्य में लेते छीन।
अब तो दोनों में ही तुम हो, फिर भी इतने हीन।
फिर भी इतने हीन की, सुनवाई ना हो पाए।
बिरह बेदना भक्तों की अब, सही न हमसे जाए।
कितने कितने कानून हैं तोड़े, कितने बने विधान।
सर्वोच्च न्याय को कितनी दी है, इज्जत तुम महान।
दीन हीन की लाज बचाने, कैसे अब प्रभु आए।
बिरह बेदना भक्तों की अब, सही न हमसे जाए।
तुमसे बढ़िया वो थे बाबू, ठोक दिलों को बोला।
तुष्टीकरण के खातिर मैनें, मुँह बन्दूक का खोला।
मुँह बन्दूक का खोला, कितने सेवक गए हकलाए।
बिरह बेदना भक्तों की अब, सही न हमसे जाए।
ताला तो हमने खोला था, उनकी भी यह राय।
मन्दिर नहीं बनाना चाहे, बाकी सब पर्याय।
बाकी सब पर्याय, मगर हम कँहा को जाए।
बिरह बेदना भक्तों की अब, सही न हमसे जाए।
ना हो तुमसे तो बोलो अब, सब सेवक मिल कर लेंगे।
तम्बू से कब तक श्री राम, हम सब के दुख को हर लेंगे।
हम सब के दुख को हर लेंगे, अब तो छत मिल जाए।
बिरह बेदना भक्तों की अब, सही न हमसे जाए।
जय श्री राम
जय जय श्री राम
लेखक: दिनेश तिवारी
बहुत सुन्दर कविता है l jai shri राम
धन्यवाद महोदय!