कल्याण के चिंचपाड़ा में अवध रामलीला संस्था द्वारा संचालित रामलीला के तीसरे दिन कल्याण वाशी श्रीराम जन्म की खुशियों में डूब गये।
बता दें कि सोमवार के दृश्य में आगमन हुआ था मुनि विश्वामित्र का जो ताङका सुबाहु नामक राक्षस राक्षसियो से न सिर्फ वे ही पीङित थे बल्कि जंगल के और भी ऋषि महात्मा पीङित थे़। इसी अत्याचारियो के अत्याचार से मुक्ति पाने के अभिप्राय से राम की याचना हेतु जब मुनि चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरश के यहां पधारे थे।
बतातें चलें कि मुनि के आगमन तक तो भजन भाव एवं लय सुर ताल में गोते लगाते रहे दर्शक तो खुश ही थे यहां तक कि महाराज दशरथ मुनि का भी जमकर आतिथ्य एवं खातिरदारी किए जिससे कि उन्हे भी मन ही मन काफी खुशी की अनभूति हो रही थी। लेकिन जाते जाते मुनि विश्वामित्र की राम लखन की मांग ने महाराज दशरथ के आत्मा को अंदर से इस तरह झटका दिया कि जैसे महाराज का दिल बहुत बङे पहाङ तले दब गया। अपने लाङले पुत्रो को अपने से दूर ले जाने की मांग पर महाराज रो पङे। यहां तक कि मुनि को अकूत सम्पत्ति, दौलत, जवाहरात आदि बस्तुँए भेंट देना चाहते थे परंतु श्रीराम लखन को अपने से दूर नही भेजना चाहते थे फलस्वरूप ऐसे दृश्य पर मुनि के समक्ष राजा दशरथ को रोते गिङगिङाते देख, अनुनय विनय करते देख दर्शक भी फफक पङे।
परंतु मुनि विश्वामित्र द्वारा अयोध्या के यश, कीर्ती आदि में बढोतरी के आश्वासन पर, मुनि के मान सम्मान, याचना के मान के सम्मान में राम लखन को महर्षि विश्वामित्र के साथ में जाना पङा जहां ताङका नामक असुर का वध हुआ।
इसके बाद मुनि के साथ ही वनविचरण के दरम्यान श्री राम को गौतम ऋषि के श्राप से पत्थर की नारी बन चुकी अहिल्या का उद्धार का दृश्य दिखाया गया। तत्पश्चात आरती के बाद मंत्रो एवं जयकारो तथा उदघोषो के बीच रात 10बजे रामलीला पाठ के तीसरे दिन के मंचन आयोजन का समापन हुआ जिसमें हर रोज दर्शको की भीङ की तादाद बढती ही जा रही है।