Home खास खबर दागी से बेदाग हुये रंगनाथ मिश्र, बिखरेगी फिर रंगत…!

दागी से बेदाग हुये रंगनाथ मिश्र, बिखरेगी फिर रंगत…!

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जमीं से आसमां तक का सफर जब कर लिया हमने,
गिरे हैं, जब उठेंगे मंजिलें फिर आसमां होगी।
कवि पी. पराशर की यह लाइन उत्तरप्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री रहे रंगनाथ मिश्रा पर सटीक बैठती है। जो विगत दिनों ही अदालत से बेदाग साबित हुये हैं। उन पर राज्य सरकार में मंत्री रहते हुये आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने समेत अन्य कई भ्रष्टाचार के आरोप थे। इसका खामियाजा उन्हें जेल जाने समेत कई तरह के राजनैतिक लांछन की अनचाही पीड़ाओं को सहने के रूप में मिला। जिसे उन्होंने धैर्यपूर्वक सहा और झेला भी। हालांकि आरोप लगने के तत्काल बाद उन्होंने इसे राजनैतिक दुराग्रह की साजिश बताया था और अपनी इसी बात पर अंत तक अड़े भी रहे। अब जब उन्हें अदालत ने भ्रष्टाचार के आरोपों बरी कर दिया है तो चेहरे से आरोप की उदासी झड़कर गर्वीली मुस्कान में बदल गयी है। समर्थकों का जोश एक बार फिर परवान के रास्ते पर है। बरी होने के बाद ताबड़तोड़ शुरू हुये जनसंपर्क ने भदोही की राजनीति का पारा चढ़ा दिया है।

गौरतलब हो कि कोर्ट से बरी होने के बाद उन्होंने इसे सीधे सीधे ज्ञानपुर विधायक विजय मिश्रा की राजनीतिक साजिश करार देते हुये उसे दुर्दान्त अपराधी भी बताया। उनके जोशीले बयान से सिर्फ उनके समर्थकों में ही जोश नहीं भरा है, बल्कि उम्र के ढलान पर पहुंची श्रीमिश्र की काया में भी राजनैतिक जोश एक बार फिर पूर्व की भांति उबाल मारना शुरू कर दिया है। तो ऐसे में राजनैतिक जानकारों का यह कयास सच ही जान पड़ता है कि रंगनाथ मिश्र की उड़ान एक बार फिर आसमानी ही होगी। जो उन्हें जमीन से सत्ता के शिखर तक पहुंचायी थी। देखना यह है कि पूर्वांचल में एक बार फिर बेदाग कद्दावर हुये रंगनाथ मिश्र की उड़ान बसपा के ही प्लेटफार्म से पंख फड़फडयेगी या फिर अपनी मातृ राजनैतिक पार्टी भाजपा के वायुपथ से उड़ान भरेगी। बसपा जिसकी सरकार में शिक्षा मंत्री रहते रंगनाथ मिश्र पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। उससे रंगनाथ के रिश्ते आज भी मधुर हैं। यदि ऐसा न होता तो वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव भदोही विधानसभा क्षेत्र से श्री मिश्र को बसपा अपना प्रत्याशी क्यों बनाती।

अब तो और जब बसपा का राजनैतिक भविष्य ही ब्राह्मण जोड़ो और सोशल इंजीनियरिंग पर निर्भर हो गया है। ऐसे में रंगनाथ मिश्र का साथ बसपा के लिये और जरूरी हो गया है। यानि रंगनाथ मिश्र कल की अपेक्षा आज बसपा के लिये और जरूरी लगने लगे होंगे। किन्तु एक बात है जो श्री मिश्र के समर्थकों को चुभ रही है। वह यह है कि बसपा द्वारा विगत माह आयोजित हुये बौद्धिक सम्मेलनों में रंगनाथ मिश्र को वह अहमियत न दिया जाना जिसके वे हकदार थे। बसपा नेतृत्व कुछ भी सोचे किन्तु पूरा सूबा यह जानता और मानता भी है कि बसपा में सतीश मिश्रा के बाद यदि कोई दूसरा कद्दावर ब्राह्मण नेता है तो वह हैं रंगनाथ मिश्रा। जिनकी बौद्धिक सम्मेलनों से दूरी यह सोचने को विवश करती है कि स्वभाव से स्वाभिमानी श्री मिश्र कहीं किसी बात से नाखुश तो नहीं हैं। यहीं आशंका लोगों को यह सोचने पर विवश कर रही है कहीं उनका झुकाव बढ़कर अपनी मातृ राजनीतिक पार्टी भाजपा से जुड़ने को मजबूर न कर दे।

वैसे देखा जाये तो भाजपा के पास भदोही जनपद में कोई ऐसा बड़ा चेहरा नहीं है जो जन—जन में जाना जाता हो। अथवा हर वर्ग में कमोवश अपनी पकड़ रखता हो। रही बात रंगनाथ मिश्र के कद की तो यह इसी बात से साबित है कि भाजपा की पूर्ववर्ती सरकारों में गृहराज्य मंत्री समेत वन, उर्जा जैसे प्रमुख मंत्रालयों का सुचारू संचालन कर चुके हैं। उनकी पहचान पूरे उत्तरप्रदेश में एक कद्दावर नेता के रूप में रही है। भदोही समेत आसपास के जनपदों में विद्युत उपकेन्द्र और शिक्षा केन्द्रों की सर्वाधिक स्थापना श्री मिश्र के कार्यकाल में हुई। जो उन्हें पूर्वांचल के नेताओं में एक अलग मुकाम तक पहुंचाई। आज जब भदोही की राजनीति नेतृत्वविहीन आपसी कलह षड्यंत्र की शिकार है। भदोही का अपना कोई बड़ा नेता नहीं है। ऐसे में रंगनाथ मिश्र ही एक ऐसा व्यक्तित्व है जो भदेाही की ख्याति के अनुरूप राजनैतिक पटल पर भी भदोही का कद उंचा उठा सकता है।

कहना न होगा कि लंबे अर्से बाद वर्तमान में सूबे की ऐसी सरकार है। जिसमें भदोही को नेतृत्व नहीं मिला है। इस बात का एहसास समूचे भदोही को है। जो अपने को ठगा महसूस कर रहा है। जनमानस पर गौर करें तो भदोही की जनता उनसे उब चुकी है जो अपने पद प्रभाव का उपयोग स्वहित और विरोधियों को नीचा दिखाने में लगाये रखा। भाजपा भी इस बात से अनजान नहीं है। उसे भदोही में ऐसे चेहरे की जरूरत है जो भदोही को छीछालेदर वाली राजनीति से मुक्ति दे और स्वच्छ राजनीति को मजबूत कर सके। ऐसे में यदि उसका ध्यान अपने पुराने सिपाही रंगनाथ मिश्र पर केन्द्रित हो जाये तो आश्चर्य नहीं । भाजपा से जुड़े लोग भी इस बात को स्वीकारते हैं कि भाजपा के लिये रंगनाथ मिश्र वर्तमान की जरूरत हैं। श्री मिश्र के समर्थकों का दबाव भी यहीं कहता है कि श्री मिश्र को अपने पुराने घर लौट जाना चाहिये।

एक बात जो भाजपा और रंगनाथ मिश्र दोनों के लिये मेल में बाधा थी वह यह कि श्री मिश्र पर लगा वह आरोप जिसमें उन्हें आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोपी बनाया था। भाजपा के लिये यह बात रूकावट दे रही थी कि किसी आरोपी को शामिल करने से उसके भ्रष्टाचार विरोधी छवि को धक्का लगेगा। वहीं रंगनाथ मिश्र के लिये भी उक्त आरोप भाजपा के लिये कदम बढ़ाने से रोक रहे थे कि आरोपी छवि को लेकर वे उस भाजपा में कैसे लौटे जिस भाजपा पर स्वाभिमान से खिलवाड़ का आरोप लगाकर छोड़ आये थे। किन्तु परिस्थिति आज बदल गयी है। श्री मिश्र को अदालत ने बेदाग बता दिया है। अब भाजपा के लिये श्री मिश्र दागी न होकर कद्दावर हैं तो रंगनाथ मिश्र के लिये भाजपा उनकी मातृ राजनैतिक पार्टी। हालांकि यह सब मात्र कयासबाजी है। जो उनके समर्थकों और राजनैतिक जानकारों के बीच उड़ रही है। श्री मिश्र से करीबी रखने वाले लोग भी इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि श्री मिश्र परिपक्व और पुराने राजनीतिज्ञ हैं। उनकी योजना क्या इसे उनके सिवा और कोई नहीं जान सकता। जो भी हो किन्तु यह तय है कि दागी से बेदाग बने रंगनाथ मिश्र की राजनीति अब दूने उत्साह से अपनी रंगत बिखेरेगी।

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