सूरत : किसी भी फर्म की जान उसके कर्मचारी होते है लेकिन यह सिर्फ कहने के लिए हो गया है । वर्तमान में सूरत के GIDC के डाईंग मिल के मालिकों के रवैये से यहीं पता चलता है । आज से दो महीने पहले सूरत के पांडेसरा GIDC के शालू मिल की घटना में मारे गए मजदूरों की सही जानकारी नहीं मिली । चलिए इतनी बड़ी घटना घटी फिर भी कोई मिल मालिक इससे सबक नहीं लिये। यहाँ तक प्रशासन भी मिल में घटने वाली घटनाओं में निर्जीव बन जाता है कोई उचित कार्यवाही नहीं करता। 16 अगस्त को संदीप रॉय नामक व्यक्ति जो उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के थाना पटहेरवा के गांव नरहवा का मूल निवासी हैं। पांडेसरा के गुप्ता डाईंग मिल में मेंटेनेंस विभाग में काम करता है।
16 अगस्त को मिल में काम करते हुए 30 फिट की ऊँचाई से धुलाई वाले टंकी के उबलते हुए पानी में गिर गया। इसके बाद उसको कई हॉस्पिटल से जवाब मिलने के बाद महावीर हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया जहाँ उसका इलाज चल रहा था परंतु 24 अगस्त को मील के मैनेजर ने बिना डॉक्टर की सलाह लिए उसे डिस्चार्ज करा कर उसे एक दूसरे हॉस्पिटल के पी संघवी में भर्ती करवा दिए जहाँ उसका इलाज अभी भी चल रहा है। 2 सितंबर को मिल के मैनेजर द्वारा मजदूर के परिवार से यह कहा गया कि मिल 3 अगस्त तक इलाज में जो खर्च हुआ है सिर्फ उसी का वहन करेगा। जबकि मजदूर की हालत अभी भी बहुत दयनीय है।
मजदूर के पिता का कहना है कि जब घटना की सूचना उसको मिली तो मिल वाले इलाज के लिए आनाकानी करने लगे और वो 35000 रुपये व्याज से लेकर उसे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया । जो आज तक मिल से नही मिला और अब इस तरह से उसके अधिकारों को बरगलाया जा रहा है । मजदूर के पिता ने हमार पूर्वांचल को बताया कि उनके पुत्र का दायां पैर जंघे के पास से और बाँया हाथ कंधे से टूट गया है। उबलते पानी मे गिरने की वजह से कमर के नीचे का पूरा अंग और पीठ बुरी तरह से जल चुका है ।
अब सवाल इस बात का है कि मजदूर की वजह से मील का पूरा कार्य होता है मजदूर की मेहनत से ही कोई भी मील चलता है और काम करते समय जब कोई मजदूर इस तरह की घटना का शिकार होता है तो उसकी अनदेखी क्यों होती है । क्यों सूरत के मिलो में मजदूरों को उनके अधिकारों से वंचित किया जाता है । पीड़ित मजदूर के पिता के अनुसार मजदूर अपने घर का इकलौता कमाने वाला है उसकी दो छोटी बहनें है जिसके घर की हालत इतने बड़े इलाज का खर्च उठाने में समर्थ नही है ।
सूरत के हर प्रकार के फर्म में मजदूरों से 12 घंटे की मजदूरी कराई जाती है और जब इस तरह की कोई दुर्घटना होती है तो उनकी हमेशा अनदेखी की जाती है खासकर उत्तर भारतीय मजदूरों की ही । क्यों कोई संगठन इस तरह के अमानवीय कृत्यों के लिए आवाज नही उठाता । जब हमार पूर्वांचल मील के मैनेजर से बात करना चाहा तो मैनेजर ने कोई जवाब नही दिए । अब बात उत्तर भारतीय समाज के लोगो पर है कि बड़े बड़े उत्तर भारतीय समाज सेवी बनने वाले लोग इस मामले को कितनी गहराई से लेते है । क्या उत्तर भारतीय संगठन एक गरीब मजदूर को उसके अधिकारों को दिलाने के लिए आगे आते है । अभी तक उत्तर भारतीय समाज के युवा समाज सेवी धनंजय रॉय हॉस्पिटल जाकर पीड़ित के दुख को साझा किया है और उसको पूरी सहायता देने की बात को रखे है ।क्या उत्तर भारतीय शालू मील की तरह इस मामले को भी यू ही जाने देंगे या फिर उस गरीब मजदूर के हक के लिए सामने आएंगे देखने वाली बात है ।