भदोही। गोपीगंज क्षेत्र के केदारपुर में गुरूवार को आयोजित दशहरा में रावण सीढी पर चढकर राम से युद्ध करने पहुंचा। इसे देखकर लोग आपस में चर्चा करने लगे कि यह किस तरह का वाहन है जिस पर रावण सवार होकर राम से युद्ध करने पहुंचा। हालांकि राम- लक्ष्मण बिना किसी रथ या वाहन के युद्ध करते मैदान में दिखे। कुछ लोग मजाकिया अंदाज में इसे महंगाई की मार भी करार दिया लेकिन यह केवल चर्चा मात्र थी।
रामलीला इसलिए होती है जिसमें लोग भगवान राम के चरित्र को देखकर अपने जीवन में उतारें और समाज में एक उदाहरण पेश करें लेकिन जीवन में किसी भी पात्र की बात मन में उतारना बडी बात है। बल्कि रामलीला जैसे पवित्र मंच पर नर्तकियों द्वारा अश्लील गीतों पर डांस के स्टेप को लोग जीवन में जरूर उतारते है। और रामलीला में ज्यादा भीड राम के चरित्र को देखने के लिए नही बल्कि नर्तकियों का नृत्य देखने के लिए आते है। जो समाज को बर्बाद करने में काफी सहायक है। क्योकि महिलाएं व बच्चियां तो अपने घर से राम व सीता के चरित्र को देखने आई है न कि नर्तकियों के अश्लील डांस को। आखिर इस तरह धार्मिक कार्यक्रमों में भी यदि समाज के लोग अश्लीलता परोसने से बाज नही आ रहे है तो कैसे कल्पना करते है कि हमारी बहू-बेटी संस्कारवान हो? बच्चे आज्ञाकारी हो? देखा जाता है कि रामलीला मंच पर जब भी रावण का दरबार लगता है तो दर्शक प्रसन्न मुद्रा में दिखते है क्योकि उनको पूर्ण विश्वास रहता है कि अब एक मजेदार नृत्य देखने को मिलेगा। आखिर इन नृत्य प्रेमियों से क्या आशा की जाए कि यह लोग राम के चरित्र को जीवन में उतारने का प्रयास भी करेंगे।
केदारपुर में गुरूवार को देखा गया कि मंच पर रावण के दरबार में नर्तकी द्वारा ‘कमरिया दरद करे…’ की धुन पर नृत्य हो रहा है और मंच के ठीक सामने बैठे रामादल के लोग भी इसका आनन्द ले रहे है। आखिर इस तरह की रामलीला से क्या फायदा? क्या धर्म के नाम पर केवल इसे व्यवसाय मानना उचित है? रामलीला देखने आए बच्चे आखिर क्या सीख कर जाएंगे? क्या ये बच्चे सोनाक्षी सिन्हा जैसे ही होंगे जिसे यह नही पता है कि हनुमान संजीवनी बूटी किसके लिए लेने गये? कम से कम अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों को ऐसे कार्यक्रमों में कदापि न भेजे। जहां पर धर्म के नाम पर अश्लीलता व कुसंस्कार परोसा जाता है। इस तरह का मामला केवल एक जगह नही है बल्कि अक्सर देखा जाता है।