आज का आधुनिक विज्ञान भी योग की अतीन्द्रिय शक्तियों को हिप्नोटिज्म व टेलीपैथी के रूप में स्वीकार करता है। आधुनिक मेडिकल साइंस में भी हिप्नोथेरेपी के रूप में इसे सम्मानित स्थान प्राप्त है, जिसमें बिना एनेस्थेसिया के ही इसके प्रभाव से कई छोटे बड़े ऑपरेशन किये जाते है। बिना दवाइयों के ही कई रोगों को ठीक कर दिया जाता है। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। अतः यह पद्धति विदेशों में भी कई बड़े डॉक्टरों के बीच दिन—रात लोकप्रिय होती चली जा रही है। इसके अलावा मैडिटेशन विधि से कई शारीरिक व मानसिक रोगों को बिना दवाइयों के ही ठीक किया जाता है।
डिस्टेंस रेकी ट्रीटमेंट द्वारा दूर बैठे रोगियों को भी ठीक करने की पद्धति पूर्वी एशिया के देशों में काफी प्रचलित है। आजकल विदेशों में होमियोपैथी चिकित्सा द्वारा दूरस्थ उपचार की विधियों का प्रयोग हो रहा है। इन सभी विधियों में अष्टांग योग के ही सूत्रों का प्रयोग होता है। योगशास्त्र की अष्ठसिद्धियों के आगे अभी भी ये उपलब्धियां नगण्य है।
“योग व तंत्रशास्त्र के अनुसार ब्रह्माण्ड की समस्त शक्तियॉ हमारे शरीर में ही सूक्ष्म रूप से निवास करती हैं। ब्रह्माण्डीय नौ ग्रह व 12 राशियां भी हमारे शरीर चक्रों में सूक्ष्म रूप से विराजमान हैं।”
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”यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे’। कुण्डलिनी व सप्तचक्र जागरण के माध्यम से ही योगी व तांत्रिक अपनी इच्छा मात्र से सफलता प्राप्त कर लेते हैं। रीढ़ की हड्डी में सुसुन्ना मार्ग पर स्थित सात मुख्य चक्र निम्न हैं।
1. मूलाधार चक्र
2. स्वाधिष्ठान चक्र
3. मणिपुर चक्र
4. अनाहत चक्र
5. विशुद्धि चक्र
6. आज्ञा चक्र
7. सहस्स्रार चक्र।
तांत्रिक मूलाधार चक्र को माध्यम बनाकर आगे बढ़ता है। वहीं योगी आज्ञा चक्र को, किन्तु दोनों की मंजिल सहस्त्रसार चक्र ही होते हैं। जो समस्त दैवीय दिव्य शक्तियों का केन्द्र बिन्दु है। जिसकी सिद्धि से आठों सिद्धियां व नवों विधियां साधक के कदमों तले आ जाती हैं। ऐसे साधकों के लिये संसार में कुछ भी अप्राप्य व अगम्य नहीं रह जाता।
उसकी इच्छा मात्र से ही सारे इच्छित कार्य सम्पन्न हो जाते हैं जिससे उसकी गणना सिद्ध पुरूष, ऋषियों व महापुरूषों में होने लगती है।
आधुनिक युग के बड़े बड़े वैज्ञानिक व डाक्टर अभी अनाहत व आज्ञाचक्र के ही चमत्कारों से हैरान व परेशान हैं। जबकि उनको यह उपलब्धियां अंशात्मक ही हैं। सहस्त्र सार चक्र तक अभी उनकी पहुंच ही नहीं हो पायी हैं क्योंकि वह स्थान मशीनों व यंत्रों की पहुंच से बाहर है। वहां सिर्फ योग मार्ग द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। इसलिये उसे इन्द्रियातीत, अगम, अगोचर, सर्वव्यापी व शून्य भी कहा जाता है।
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यहीं परमब्रह्म का निवास स्थान है और यहीं से सारे मायाजगत की सृष्टि होती है। उपरोक्त विषयों पर व्यवहारिक जानकारी व साधना हेतु आप लेखक से सपर्क भी कर सकते हैं।