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भाजभा प्रचार समिति में वरिष्ठ साहित्यकार श्री राजाराम सिंह का सम्मान एवं काव्यगोष्ठी की सजी महफ़िल

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हमार पूर्वांचल
काव्य गोष्टी कार्यक्रम

ठाणे : भारतीय जन भाषा प्रचार समिति ठाणे एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद के तत्वावधान में विशेष काव्य गोष्ठी का आयोजन दिनांक 01/12/2018 शनिवार को किया गया। उक्त गोष्ठी उत्तर प्रदेश से चलकर मुंबई-ठाणे की पावन धरती पर आये सम्मान मूर्ति, वरिष्ठ साहित्यकार श्री राजाराम सिंह जी के आगमन पर आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि श्री हौसिला प्रसाद सिंह अन्वेशी जी ने किया, एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ गज़लकार, गीतकार श्री लक्ष्मण दुबे जी रहे। इस काव्यगोष्ठी का सुदृढ संचालन भारतीय जनभाषा प्रचार समिति ठाणे के सचिव, गज़लकार श्री एन•बी•सिंह नादान जी ने किया।

हमार पूर्वांचल
कार्यक्रम में उपस्तिथ -कवी,गीतकार,गजलकार

उपस्थित कवियों, गीतकारों, गजलकारों में डाॅक्टर शैलेश वफ़ा, श्री नंदलाल क्षितिज, श्री विनय शर्मा दीप, श्री जवाहर लाल निर्झर, एडवोकेट राजीव मिश्रा अभिराज, श्री भुवनेन्द्र सिंह विष्ट, श्री टी•आर•खुराना, श्री पवन तिवारी, श्री समीम अब्बास, श्रीमती रश्मि दुबे, श्री चंद्रभूषण विश्वकर्मा, श्री सतीश चौहान, श्री सुशील शुक्ल नाचीज़, डाॅक्टर दिलसाद सिद्दीकी, श्री उमेश मिश्रा, एडवोकेट अनिल शर्मा, श्री ओमप्रकाश सिंह, श्रीराम शर्मा, श्रीमती पूनम खत्री, सुश्री आरती साइया, अखिला दुबे, वसि रिजवी के साथ जनहित इंडिया पत्रिका के मुंबई प्रतिनिधि श्री मुन्ना यादव मयंक (पत्रकार) आदि थे। इस विशेष काव्यगोष्ठी की महफ़िल में कुछ अच्छे रचनाकारों की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-

सम्मान मूर्ति श्री राजाराम सिंह-

जनतंत्र को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा :-
जनतंत्र का अर्थ शब्दकोष में नहीं,
वाद-विवाद छात्रों के रोष में
और
कविता गाँव में,जोश में नहीं।
जनतंत्र का अर्थ
उन फिरते नेताओं के फर्जी
योजनाओं में नहीं,
जिनकी भाषा बदलने में केवल,
कुर्सी मिलने की देर है,
जिनकी हर कूबत
अंधे के हाथ बटेर है ।।

श्री भुवनेन्द्र सिंह विष्ट :-

बन न जाये जिंदगी जब तक स्वयं की साधना,
भक्त तुम करते रहो,आराध्य की आराधना।
जिंदगी गहराइयों में डूबने का नाम है,
जिंदगी कठिनाइयों को चूमने का नाम है।।

श्री टी•आर•खुराना :-

इन्सानियत के आदर्शों को
जीवन में ढालने का
मजहबी-पैगाम है
जिंदगी ।
जन्म और मरण के अंतराल में
कुछ कर गुजरने का
ढलती हुई आखिरी शाम है
जिंदगी ।।

श्री एन•बी•सिंह नादान :-

फूलों की तमन्ना थी मगर ख़ार मिले हैं ।
यूँ जिंदगी के रास्ते दुश्वार मिले हैं।।
ये उनका नसीबा है जो खुशियों से हैं लबरेज़ ।
हम तो हमेशा गम में गिरफ्तार मिले हैं ।।

श्री नंदलाल क्षितिज-

गाँव कौन सा गाँव,कैसा गाँव
नहीं रहा अब वैसा गाँव ।
मुरझाये चेहरे हैं सबके,
मांग रहा है पैसा गाँव ।
गाँव कौन सा गाँव,कैसा गाँव ।।

श्री विनय शर्मा “दीप”‘:-

कोई परिवार कोई जातिवाद पर फिदा,
धर्म संप्रदाय कोई निज स्वार्थ मस्त है।
सोच नहीं दिखती है देश के भविष्य की,
बीच मझधार नाव,जन-जन त्रस्त हैं ।
कैसे खेल खेलते दुसाशन दुर्योधन ये,
देश प्रेमी नमक हरामों,से ही पस्त हैं ।
दीन-दुखी नौजवान देश के किसान सभी,
रोजी-रोजगार कोई भूखा पेट लस्त है ।।

श्रीमती पूनम खत्री:-

रास्ता हमने अपना मोड़ दिया,
एक नये कारंवा से जोड़ दिया ।
खुद को मशहूर नहीं करते अब,
काम ये दुश्मनों पे छोड़ दिया ।।

अंत में भारतीय जनभाषा प्रचार समिति ठाणे के सचिव श्री एन बी सिंह नादान जी ने आये हुए सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और काव्यगोष्ठी का समापन राष्ट्रगीत से किया।

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