Home मन की बात आरक्षण बनाम सरकारें- राजेन्द्र प्रसाद ठाकुर

आरक्षण बनाम सरकारें- राजेन्द्र प्रसाद ठाकुर

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इस देश में जब भी आरक्षण के बारे में चर्चा शुरू होती है तो जैसे- तुफान आ जाता है, आखिर आरक्षण है क्या? और इसकी आवश्यकता क्या है? और इसका इतिहास क्या है? इस पर चर्चा किए बिना निरर्थक हो जाता है। जब हमारा ध्यान इस सनातन व्यवस्था पर जाता है तो गुण दोष के आधार पर कर्मो का बंटवारा करके 36 वर्गों में तथा 36 वर्ग को भी साथ उपखण्डों में बांटकर सनातन व्यवस्था का निर्माण होता है।

शासन एवं प्रशासन में समस्त वर्गों का प्रतिनिधित्व निर्धारित कर दिया गया है। कालांतर में यह व्यवस्था जातीय व्यवस्था के नाम से संबोधित की जाने लगी, और एक समृद्धशाली ही नही खुशहाल राष्ट्र के रूप मे यह देश विकसित हुआ परंतु आर्यों के आगमन व मनु संविधान की रचना के कारण यह देश पुनः दुर्दशाग्रस्त हो गया।

आज के 2700 वर्ष पूर्व भगवान गौतमबुद्ध की अगुवाई में पुनः सनातनकालीन व्यवस्था लागू हुई और यह देश समृद्धशाली राष्ट्र बना। परंतु बौद्ध कालीन व्यवस्था का अन्त होने के बाद पुन: मनु संविधान लागू होने के कारण यह देश दुर्दशाग्रस्त हो गया। इसका परिणाम रहा कि मुट्ठी भर अरबों, मुगलों की गुलामी झेलने के बाद अंग्रेजों की गुलामी इस देश को झेलनी पड़ी लेकिन सन् 1927 में साइमन कमीशन व औपनिवेशिक स्वराज्य का प्रस्ताव आने पर ब्रिटिश संसद में कम्युनल एवार्ड (जातीय प्रतिनिधि सभा) के गठन का प्रस्ताव पारित हुआ और सन् 1931 में जातीय जनगणना हुई।

जनसंख्या के अनुसार इस देश की मूलनिवासी जनता के लिए उसकी जनसंख्या के अनुसार 84% आरक्षण का प्राविधान किया गया, अंग्रेजों का मानना था कि शेष जनसंख्या 11% आर्य और 2% अरबियन रहते है।इन दोनों को 13% आरक्षण तथा 3% सामान्य सीट रखी गई,परंतु सन् 1935 में गांधी और आम्बेडकर के समझौते के बाद मात्र 20% दलितों के लिए आरक्षण का समझौता करके शेष 64% पिछडी जातियों के लिए आरक्षण को हमेशा हमेशा के लिए शासन व प्रशासन से दफन कर दिया गया ।

सन् 1947 में अंग्रेजों के जाने के बाद दक्षिण भारत से आरक्षण की आवाज उठने पर काका कालेलकर आयोग का गठन हुआ, जिसकी रिपोर्ट सन् 1952 में आ जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उसे ठण्डे बस्ते में डाल दिया।सन् 1977 में जनता शासन में भी आरक्षण की बात उठाए जाने पर पुन: मण्डल आयोग का गठन हुआ। उसने भी काका कालेलकर रिपोर्ट के अनुसार 64% पिछड़ों के लिए आरक्षण की सिफारिश करके तत्कालीन सरकार के पास भेज दिया, परंतु सन् 1988 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार द्वारा आंशिक रूप से लागू होने पर इस देश की राजनीतिक पार्टियां ऐसा षड्यंत्र किया कि इसका वास्तविक लाभ मौजूदा 27% मात्र सरकारी नौकरियों में होने से पिछड़ों को वास्तविक लाभ मिलना संभव नही है।

ऐसी स्थिति में 64% आरक्षण संसद से लेकर विधानसभाओं एवं सरकारी नौकरिओं में लागू करने के लिए कर्पूरी ठाकुर संघर्ष मोर्चा जनमत संग्रह के लिए अपनी मांग इस देश की जनता के समक्ष रखता है।तभी सदियों से गुलामी झेल रही इस देश की 64% पिछडी हुई जनता का सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक दशा में सुधार होना संभव है।

आज वर्तमान सरकार भी 64% पिछड़ों के साथ नकारात्मक ऊर्जा भरने की कोशिश करने में जुटी हुई है यही कारण है।कि 10% सवर्णों को आरक्षण की कमान बिना मांगे दिया गया।

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