परिवार में माता- पिता और परिवार के बाहर शिक्षक ही बच्चों के पहले ‘रोल मॉडल’ होते है। एक बच्चा बहुत से लोगों को अपने शिक्षक की बात मानता हुआ, उनके इशारे पर किसी काम को करते हुए और नेतृत्व करते हुए देखता है तो भीतर ही भीतर प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता है। ऐसे में जरूरी है कि उसके शिक्षक योग्य हों और अपने काम को पूरी विशेषज्ञता, तन्मयता और प्रभावशीलता के साथ करें। इसके साथ उसके माता-पिता का वह अप्रत्यक्ष रूप से अनुकरण करता है। उसकी निगाहों में वे उसके आदर्श होते है। इसलिए प्रत्येक माँ- बाप का यह दायित्व बनता है कि मजबूत राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक देश के भविष्य इन बच्चों को चरित्रवान बनायें।
इसके साथ ही बच्चे को वह स्नेह और आश्वासन दें जो उसे भविष्य के लिए जिम्मेदारी लेने वाला, अपनी ग़लती स्वीकार करने वाला और अपनी ग़लतियों के सीखकर आगे बढ़ने वाला इंसान बनाएं ताकि वह जीवन में प्रगति पथ पर निरंतर आगे बढ़ता हुआ अपनी संभावनाओं को शिखर को छू सके और एक स्वपन को साकार कर सके जिसे इंसान की सर्वश्रेष्ठ संभावनाओं को वास्तविकता में बदलना कहते हैं। यह हुनर ही एक शिक्षक और और माँ- बाप के रूप में प्रत्येक व्यक्ति को ख़ास बनाता है कि वे संभावनाओं को सच्चाई में तब्दील करने का हुनर जानते है, शिक्षक भी अपने छात्र-छात्राओं को बच्चों जैसा नेह देता है और चुनौतियों से जूझने और खुद से बाहर आने का संघर्ष करने की स्वायत्तता और स्वतंत्रता भी। इन्ही दायित्वों के निर्वहन करने के कारण माँ को तो प्रथम पाठशाला भी कहते है।
इस प्रकार एक बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए एक अभिभावक न केवल जन्मदाता मात्र नहीं है अपितु एक कुम्हार जैसा होता है और एक शिक्षक मात्र वेतनभोगी कर्मचारी ही नहीं है बल्कि राष्ट्र निर्माता भी है, यह बात शिक्षकों को समझनी चाहिए,,,,। वैसे कितना भी कह दिया जाय कि जीवन मे कुछ भी असंभव नही है परंतु बचपन में अभिभावक और शिक्षक द्वारा सांचे में ढाले गये बच्चों को वक्त के साथ बदलना मुश्किल हो जाता है और देश ऐसी अनेकों प्रतिभाओं से वंचित रह जाता है।