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पूर्वांचल मानस मंडल के द्वारा राजेश दूबे अल्हड़ का एक असरदार साहित्यिक स्ट्रोक-आर पी सिंह रघुवंशी

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मुंबई। 29 जनवरी 2020 को पूर्वांचल मानस मंडल के माध्यम से राजेश दूबे अल्लढ़ ने साहित्य के क्षेत्र में एक असरदार स्ट्रोक लगाया, जब मुंबा देवी के परिसर में पंचायत वाड़ी के प्रांगण में एक मैराथन साहित्यक गोष्टी का आयोजन सुबह 11:00 बजे से रात लगभग 8:00 बजे तक किया गया। यूं तो उन्होंने महानगर की 6-7 साहित्यिक संस्थाओं को निमित्त बनाया पर सचमुच प्रयास और सोच के पीछे अगर कोई था तो वह सिर्फ और सिर्फ राजेश दूबे अल्हड़-असरदार ही रहा।

यह कार्यक्रम इस मायने में अद्भुत है कि इस छोटे परंतु अनोखे कार्यक्रम के माध्यम से राजेश दूबे ने अपनी कर्मठता का असरदार परिचय दिया। राजेश दूबे अल्हड़ इसलिए हैं कि वे कुछ अलग करने की सोच रखते हैं, जो सामान्य न हो, पर यह भी विचार रखते हैं। इसे असरदार भी बनाया जाए। अन्य लोगों को जोड़ा जाए और कार्य का विस्तारित रूप हो अर्थात एक बड़े से तबके में उसका असर हो। सच तो यह है कि पागल ही इतिहास बनाते हैं। क्या गांधी जी पागल नहीं थे जिन्होंने अपनी बैरिस्टरी छोड़कर देश की आजादी की तरफ रुख किये। एक एक अंग्रेज ने धक्का दिया था और वे पूरे अंग्रेजों को ही धक्का देने के लिए के लिए सोच लिए। सुभाष चंद्र बोस जिनकी काबिलियत का लोहा विदेशों में भी माना जाता है उन्होंने अपने लिए क्या सोचा…? क्या किया..? भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने भरी जवानी में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया सिर्फ देश के लिए। समझदार सिर्फ अपने लिए सोचता है। समझदार टाटा बिरला बन सकता है, विद्वान बन सकता है, स्वयं को ऊंचा दिखा सकता है। पर जिसकी ऊंचाई एक आवाम तय करे ऐसे लोग विरले होते हैं, और राजेश दुबे अल्हड़ जैसे होते हैं।

अभूतपूर्व क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल लिखते हैं…

“सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।
वक्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमां।
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।।”

अब आप ही सोचें यह कैसी तमन्ना है…? क्या एक समझदार व्यक्ति इस प्रकार की तमन्ना करता है.. .? नहीं, कभी नहीं..। ऐसी तमन्नाएं तो सिर्फ दीवाने लोग करते हैं, पागल लोग करते हैं। “अल्हड़-असरदार'” शब्द राजेश दुबे के हृदय से निकली हुई आवाज है। और मैं समझता हूं कि इसमें बहुत कुछ सच्चाई है। कार्यक्रम छोटा हो या बड़ा आसान नहीं होता। कार्यक्रम लोगों को जोड़ता है कुछ सोचने पर विवश करता है और बहुत कुछ सिखाता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि उसे झुकना आ जाता है, मिलना आ जाता है और आ जाता है तमाम राहों में इक राह ढूंढना..। मानता हूं कि कार्यक्रम में बहुत भव्यता नहीं रही, दिखावापन नहीं रहा। और कार्यक्रम में आने वाले भी लोग कम समझदार लोग ही थे। जो साहित्य के बारे में सोचते हैं, हिंदी भाषा के बारे में सोचते हैं और सोचते हैं देश के बारे में…। कार्यक्रम में लोगों को शाल देकर के सबका दो-दो बार सम्मान किया गया। एक उम्दा प्रकार का स्मृति- चिन्ह जो लगभग सबको प्रदान किया गया। मुंबई थाना और नवी मुंबई के ऐसे श्रेष्ठ और वरिष्ठ साहित्यकार जो अक्सर मंचों पर कम दिखाई देते हैं। उनके मार्गदर्शन में कार्यक्रम को सुनि- योजित किया गया। दशकों पुर्व भारत के लाल किले से कविता पढ़ने वाले वरिष्ठ साहित्यकार भुवनेंद्र सिंह बिष्ट का नाम बड़ी प्रमुखता से लिया गया। अन्य प्रमुख साहित्यकारों में आदरणीय डा. सुधाकर मिश्र, लक्ष्मण दुबे, सागर त्रिपाठी, रमेश श्रीवास्तव,, सुरेश मिश्र, सरस पांडेय जैसे लोग विद्यमान थे। कार्यक्रम में
नवोदित कवियों को भी जोड़ा गया था जो हिंदी के भविष्य के लिए आवश्यक है। मैं अल्हड़ जी के इस कार्यक्रम की हृदय से प्रशंसा करता हूं और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।

रामप्यारी सिंह ‘रघुवंशी’
अध्यक्ष-भारतीय जन भाषा प्रचार समिति, ठाणे

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