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सुनील का व्यंग : जौनपुरिया दादा का शौचालय घर हुआ भूमिगत, परधान जी तलाश रहे हैं ईंट

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एस.टी. बहुरूपी की कलम से

अपना यूपी बोले भाई तो जादूगरी में अव्वल है, बंगाल के जादूगर भी यहां फीके पड़ जाते हैं। आजकल एक से बढ़कर एक अजूबेदार कहानी यूपी की पर्रधानी में सामने आ रही है तो ऐ कोई बहुत बड़ी असमंजस वाली बात नहीं है। जौनपुरिया दादा तो जादूगरी शायद पहली बार देखकर भौच्चके हैं क्योंकि बेचारे परदेशी थे जुम्मा-जुम्मा अभी रिटायर्ड होकर गांव रहना शुरू किये हैं।

जौनपुरिया दादा की शिकायत है कि उनका शौचालयघर बना हुआ था भूमिगत हो गया और दौड़े-दौड़े पर्रधान जी के पास पहुंचे तो पर्रधान जी चुपचाप सुनते रहे लेकिन कुछ ना बोलें क्योंकि यह कोई नया अजूबा तो है नहीं.. क्यों कि ऐसी कितनी जादूगरी रोज होती रहती है..जौनपुरिया दादा का कहना है उन्होंने एक पर्रधान के ‘चमझा ओझा’ को मस्का पानी मारकर चाय-पान करवाया और पर्रधान से एक प्रधानमंत्री योजना के तहत शौचालयघर दिलवाने कहा तो पता चला कि शौचालयघर तो बन चुका है..अब बिचारे जौनपुरिया दादा परेशान हैं कि बन चुका है तो भूमिगत किधर हो गया..

आखिरकार थककर दरखासी दुनिया की धौंस दिखाये तो पता चला कि बना तो है लेकिन कागज पर..पर्रधान के उपर पुरी जानकारी इकट्ठा करके जब चढ़ बैठे तो पर्रधान जी का भूत का थोड़ा उतरा और दादा तो दरखास लिखकर हाथ में लिये और बस यही बोल रहे हैं कि जादूगरी की ऐसी की तेसी..हमारा शौचालयघर वापस जमीन पर दिखाओ या कागज पर से नाम हटाओ..अब बिचारे पर्रधान जी को याद आ रहा है कि उक्त शौचालय की ईंट- सामग्री उसी बस्ती का छूटभैआ नेता दादा के नाम ले गया था और बिचारे पर्रधान जी ईंट खोज रहे हैं अऊर छूटभैआ तो पान चबाकर खी-खी हंस रहा है..

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