समाजवादी पार्टी की भदोही जिला कमेटी में जो घटनाक्रम हो रहे हैं उससे लगता है कि सपा की जिला ईकाई में फूट पड़ चुकी है। महासचिव ओमप्रकाश यादव द्वारा की गयी कार्रवाई और जिलाध्यक्ष मो आरिफ सिद्दीकी के बीच शायद कोई तालमेल नहीं रह गया है, जिसके कारण पार्टी कार्यकर्ताओं में भी निराशा के भाव प्रकट हो रहे हैं।
बता दें कि सपा विधानसभा की बैठक में सपा के युवा नेता और पूर्व ब्लाक प्रमुख विकास यादव को बोलने से रोकने पर सपा के युवा यादव नेतओं में काफी रोष देखा गया।
इसके बाद ज्ञानपुर जिला कार्यालय की बैठक में बिन्द्र समाज के अग्रणी नेता व सपा में जल्द ही शामिल हुये राजेन्द्र एस. बिन्द को बाहरी बताने पर विवाद हो गया था। यहीं नहीं श्री बिन्द का आरोप यह भी था कि रास्ते में उन्हें रोककर जानलेवा हमला किया गया, जिसके फलस्वरूप श्री बिन्द ने सपा महासचिव ओमप्रकाश यादव, युवजन सभा के जिलाध्यक्ष मनोज यादव और दो अन्य लोगों पर गोपीगंज थाने में मुकदमा दर्ज कराया।
इसके बाद सपा की बैठक में राजेन्द्र एस. बिन्द सहित तीन लोगों को पार्टी से छ: साल के लिये निलंबित कर दिया गया। मीडिया में आयी खबरों के अनुसार जिलाध्यक्ष मो आरिफ सिद्दीकी ने इस मामले में पूरी तरह अनभिज्ञता जाता दी है।
सोचने वाली बात है कि जिस बैठक में निष्कासन की बात की जा रही है उसमें जिलाध्यक्ष की मौजूदगी दिखायी जा रही है, लेकिन जिलाध्यक्ष अनभिज्ञता दिखा रहे हैं। यदि बैठक में अनुपस्थित रहने पर भी जिलाध्यक्ष का नाम शामिल किया जा रहा है तो इसका साफ मतलब निकल रहा कि ओमप्रकाश यादव द्वारा बिना जिलाध्यक्ष की अनुमति के मनमानी की जा रही है और जिलाध्यक्ष बेबस होकर अनभिज्ञता प्रदर्शित कर रहे हैं। फिर अनुशासनहीन कौन है।
या फिर यह भी हो सकता है कि बाहर से जो दिख रहा है वहीं सही नहीं है बल्कि उसके पीछे कुछ और ही राजनीति हो रही है जो स्पष्ट रूप से दिख नहीं रही है। जिलाध्यक्ष का यह कहना कि हो सकता है महासचिव ने अपने स्तर से निष्कासन की कार्रवाई की हो। इस पर भी सवाल खड़े होना लाजिमी है।
उधर, राजेन्द्र एस. बिन्द का अपमान किया जाना बिन्द समाज को भी रास नहीं आ रहा है। जिसके फलस्वरूप सोमवार को बिन्द समाज के लोगों द्वारा सपा के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया गया। देखने वाली बात यह है कि इन सब प्रकरण के पीछे सपा के अंदर चल रही गुटबंदी उभर कर सामने आने लगी है। एक तरफ युवा नेता व पूर्व ब्लाक प्रमुख विकास यादव को बोलने से रोका जाना और दूसरी तरफ राजेन्द्र एस. बिन्द का पार्टी में शामिल होकर 2019 के लिये टिकट की दावेदारी करना कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रहा है इसलिये अपने वर्चस्व को कायम रखने के लिये राजनीति खेली जा रही है। खैर इसके पीछे क्या सच्चाई है यह तो सपाई ही जानते होंगे लेकिन समाजवादियों का समाजवाद इन घटनाओं को लेकर तार—तार होता दिखायी दे रहा है।