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व्यंग बांड़ – मामा नाम ही काफ़ी हैं

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“मामा” नाम ही काफी है, लोगों को बतलाने को।
केवल रात ही काफी है, नेताओं को आजमाने को।

एड़ी चोटी एक किये सब, अब कुर्सी हथियाने को।
मामा की ममता डूब गई तब, गैस पीड़ितों को अपनाने को।
जन जन की पुकार यही थी, मां से मामा भारी है।
रो रहे सब भांजे अब तो, हारन की तैयारी है।

पेड़ रुख अरु जंगल में से, एक आवाज निकाली है।
कोई तो कर दो कल्याण, कुर्सी अब की खाली है।

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