पूड़ी पैकेट बांट बांट कर, नेता हैं परेशान।
रखे किसका खाए किसका, जनता सोच हैरान।
जनता सोच हैरान, करूं क्या भाई?
बार-बार अंबर को देखे, कौन सी ऋतु है आई।
पैकिट पर देखो बाबू जी, मेरा नाम लिखा है।
देसी घी की पूड़ी है, गरमा गरम सीका है।
खा कर पहुंचो रैली में, पगड़ी भी हम देंगे।
तुम सब की गिनती को बता के, टिकिट हम अपना लेंगे।
तुम्हरी सेवा रक्षा तुम्हरी, कसम यही हम खाते।
जब तक जीत नहीं जाते, रहेंगे आते-जाते।
जिस दिन जीत करोगे हमरी, बैंड बाजा बजवा देंगे।
मंत्री पद की खातिर भाई, पार्टी को हरवा देंगे।
जैसे-तैसे, ऐसे-वैसे, माल-माल हम खा लेंगे।
जनता खातिर पार्टी छोड़ी, ये गीत हम गा लेंगे।
ये गीत हम गा कर के, फिर चुनाव में आएंगे।
बुद्धू प्यारी मेरी जनता, फिर से हमें जिताएंगे।
बहुत सुन्दर रचना है l
धन्यवाद 🙏