कल्याण:पूर्व में अवध रामलीला संस्था द्वारा प्रायोजित रामलीला पाठ मंचन का 25 अक्टूबर का हर दृश्य, हर किरदार काफी यादगार रहा।
बता दें कि भगवान राम के वनवास गमन के संदर्भ में उनकी पत्नी जानकी एवं भाई लक्ष्मण भी जबरन उनके साथ चल पङे। जिस क्रम में दर्शक अपने आसूँओ को रोक न सके।
जब वन को चले रघुराई। ए जी वन को चले रघुराई।।
आगे आगे राम चलत है, पीछे से लक्ष्मण भाई।
संग संग चले बीच माता जानकी, चकित है लोग लुगाई।
जब वन को चले रघुराई ।।
बतातें चलें कि इस दरम्यान उनकी मुलाकात गुहा निषाद राज से हुई जिनके साथ ये तीनो वनवासी जंगल में ही रात्री विश्राम किए एवं प्रातःकाल स्नानोपरांत वटवृक्ष के दूध से अपने जटाजूट को सवांरे।
ऐसा दृश्य देख न सिर्फ रथ सारथी सुमंत सुबक पङे बल्कि पूरे कल्याण के दर्शक भी अपने नेत्रो से निकल पङे अश्रूधारा को रोक न सके।
हद तो तब हो गयी जब केवट ने भगवान के चरण पखारे बगैर सुरसरी नदी के उसपार जाने को राजी नही हुआ और भगवान राम के पैर पकडकर खुद ही उस चरणामृत का रसपान कर पूरे गांव वालो को भी भिजवाया और नदी से प्रार्थना करने लगा। कि
मोरे रामजी उतरेगें पार जी
नदिया धीरे बहो,
मोरे रामजी उतरेगें पार जी
नदिया धीरे बहो।
चंचल धारा, बहता पानी
गहरी नदिया नाव पुरानी
संकट बङा मँझधार जी
नदिया धीरे बहो
मोरे रामजी उतरेगें पार जी,
नदियां धीरे बहो।।
ऐसी गुहार लगाना तथा नदी के उस पार जाकर उतराई के बदले उतराई न लेना, इसके बदले भवसागर पार लगा देना, आदि केवट के इस प्रसंग और तमाम जिद के
अनुनय विनय के दृश्य पर तो मानो हर दर्शकगण के सजल नेत्रो से झरते लोर तो आत्मसात ही कर दिए।
तत्पश्चात ऋषि मुनियो की कुटिया पर जाकर उन सबसे आशिर्वाद लेना, उन सबके दर्शन पाकर अभीभूत होना आदि के दृश्यो को देख दर्शक हर एक दृश्य में डूबते गये।
गौरतलब हो कि छठे दिन के रामलीला पाठ के मंचन की अंतिम कङी में श्रवण सहित उनकी माता पिता की मृत्यू और उसी वृद्ध द्वारा उनकी माता पिता के श्राप के वजह से राजा दशरथ की मृत्यू का दृश्य तो हजारो दर्शको को इस कदर झकझोर दिया कि लोग अपने अपने भीगीं पलकों को पोंछतें ही नजर आए इन सभी दृश्यो का समापन रात 10.30 बजे हुआ।