Home मुंबई हिन्दी साहित्य पर परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी संपन्न

हिन्दी साहित्य पर परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी संपन्न

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मुंबई । हिन्दी साहित्य विधा पर विशेष परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी शिव शक्ति अपार्ट के दूसरे महले पर डॉ रामनाथ राणा के घर पर त्रिलोचन सिंह. अरोड़ा के संचालन एवं हौशिला अन्वेषी की अध्यक्षता में, डॉ राणा की सद्य: प्रकाशित पुस्तक पर परिचर्चा तदनंतर काव्य गोष्ठी का कार्यक्रम संपन्न हुआ ।
मुंबई के साहित्यकारों में उपस्थित श्रीराम शर्मा,मुन्ना सिंह विलय ,पं• श्रीधर मिश्र,अल्हढ़ असरदार, लाल बहादुर कमल , शिवप्रकाश जौनपुरी , भोलानाथ मुर्धन्य ,डॉ, राणा , त्रिलोचन सिंह अरोड़ा व. हौशिला प्रसाद सिंह अन्वेषी, अंजनी कुमार द्विवेदी आदि थे।सभी ने परिचर्चा के पश्चात कविता, गीत,गज़ल से समा बांधने का कार्य किया। अंत मे, डॉ•राणा ने उपस्थित सभी साहित्यकारों का विधिवत सम्मान करते हुए धन्यवाद देकर आभार माना और गोष्ठी का समापन किया।उक्त कवियों में कुछ की रचनाएँ इस तरंह रही-

शितला प्रसाद सिंह अन्वेशी

समय
धड़कता है ।
पकड़ो
और चाँप दो
अपनी रचना में ।
बना दो
इतिहास
समय. का ।
और कहो कि
यह दस्ताबेज है
अपने समय का ।
जब जरूरत पड़े
निकाल लेना,
आलमारी से
परंपरा की।
और दिखा देना
आइना
अपने समय को।
समय रहते ।
अनिल कुमार राही

सत्ता की बात कर न सियासत की बात कर।
ख़तरे में मुल्क है तु हिफ़ाजत की बात कर।।
अब आन बान शान बचाने की बात कर।
कायर नहीं हैं हम ये दिखाने की बात कर।।

रण बांकुरों के जान की कीमत हैं मांगते।
बस दुश्मनों के सर तु उड़ाने की बात कर।।

गिनती हुई ख़तम कि बनके कृष्ण आज तू।
शिशुपाल बध को, चक्र उठाने की बात कर।।

कुरबाँ हुए हैं लाल तिरंगे की आन में।
बेकल है रूह प्यास बुझाने की बात कर।।

हाज़िर है जान यूँ सदा वतन के वास्ते।
अब दुश्मनों को जड़ से मिटाने के वास्ते ।।

भोलानाथ तिवारी मूर्धन्य
ठकूरसोहती में कंकड़ भी
अक्सर दीनार हुए
जिस पर भरोसा था
वहीं दरकिनार हुए

हम शब्ज़बाग रिस्तों
पर यकीं कैसे करूं
जब दुश्मनों के फिहरिस्त में
अपने ही मुख्तार हुए

पं• शिवप्रकाश जौनपुरी
आंसू और बहायें कितना,और बहायें कितना खून।
कितनी माँगे और आप सब ,करवाओगे सून।।
सहन नहीं है हो रहा,पीये बहुत हलाहल।
अब तो छाती चीर दुष्ट की,बहा दो उसका गंदा खून।।

अंजनी कुमार द्विवेदी
बन्द आँखों से हम बहारों की छटा देखेंगे।
तेरी जुल्फों में भी हम बादल की घटा देखेंगे।
नजर लग न जाएं जमाने की कहीं मेरे चाँद को,
कभी हम तुमको सीधे तो कभी नजर हटा देखेंगे।

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