नील की खेती बंद कराने के लिये फूंका था क्रान्ति का बिगुल
21 अक्टूबर जन्मदिन पर विशेष
भदोही। 1857 का वह दौर जब अंग्रेजों के खिलाफ मां भारती के सपूतों ने बिगुल फूंका था। उसमें प्रमुखता से नाम लिया जाता है झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बलिया के सपूत मंगल पाण्डेय और भदोही की माटी में जन्में श्हीद झूरी सिंह। झूरी सिंह ने भदोही में अंग्रेजों द्वारा जबरदस्ती करायी जा रही नील की खेती को बंद कराने के लिये चार अंगेजों का सिर काट लिया था। अंग्रेजों के मन में शहीद झूरी सिंह के नाम की इतनी दहशत भर गयी थी कि वे उनका नाम सुनते ही भाग खड़े होते थे।
21 अक्टूबर 1816 भदोही के परउपुर गांव में सुदयाल सिंह के घर एक पुत्र का जन्म हुआ जो आगे चलकर क्रान्तिकारी झूरी सिंह के नाम से विख्यात हुआ। भदोही में अंग्रेज नील की खेती कराते थे। जिसके बदले किसानों को थोड़ा सा अनाज दे दिया जाता था। भुखमरी के शिकार हो रहे किसानों के अंदर अंग्रेजों के प्रति आक्रोश तो था लेकिन विवशता में कुछ बोल नहीं पाते थे। 28 फरवरी अट्ठारह सौ सत्तावन को अभोली के बाग में बैठक हुई। जिसमें नील की खेती न करने की रणनीति बनाई गई। साथ ही सरकारी खजाना लूटने, सेना संगठित करने, अंग्रेजों के व्यापार में गतिरोध उत्पन्न करने, भदोही से अंग्रेजों को भगाकर स्वतंत्र राज्य की स्थापना करने आदि की रणनीति बनी। सभी को जिम्मेदारियां बांट दी गयी। टोली में प्रमुख रूप से उदवंत सिंह, राम भक्त सिंह, भोला सिंह, रघुबीर सिंह, दिलीप सिंह, माता भगत सिंह, सर्वजीत सिंह, मुंशी सिंह, राज करण सिंह, संग्राम सिंह, महेश प्रसाद, गौरी बलभद्र सिंह, शिवदीन व रामटहल सहित कई लोग शामि रहे। 3 जून को क्रांति का बिगुल फूंक दिया गया। नील की खेती जला दी गई। 10 जून 1857 को भदोही में क्रांति ने व्यापक रुप ले लिया। क्रांति इतनी तेज हुई अंग्रेज सिपाही मिर्जापुर पहाड़ी की तरफ भाग गए । अपनी एक संगठित सरकार गठित कर कर्मचारियों व अपने सिपाहियों को नियुक्त कर उदवंत सिंह को राजा घोषित कर स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर दी।
अंग्रेज बौखला गये। क्रान्तिकारियों के घरों को तहस नहस करने लगे। छापेमारी में कोई का्रन्किारी हाथ नहीं लगा। 16 जून को अंग्रेजों ने अपनी चाल बदली यहां के ज्वाइंट मजिस्ट्रेट बिलियन रिचर्ड म्योर जो बंगाल सिविल सेवा का अधिकारी था। उसने उदवंत सिंह को सुलह का निम्रत्रण भेजकर संग्राम सिंह सहित तीन क्रान्किारियों को फांसी दे दिया और शव को सड़ने के लिये छोड़ दिया। ताकि दहशत पैदा हो।
चार जुलाई को सूचना मिली कि रिचर्ड म्योर सहित चार अंग्रेज अधिकारियों के साथ पाली के नील मिल में मंत्रणा कर रहा है। जहां पर हमला बोलकर तीनों के सिर काट लिये गये। इसके बाद अंग्रेजी शासन शहीद झूरी सिंह के पीछे पड़ गये। यूरोपीय इतिहासकार जेक्सन ने लिखा है कि 10 जून 1857 को भदोही में क्रांति ने बहुत ही व्यापक रूप लिया। क्रांति इतनी तेज हुई की अंग्रेज सिपाही मिर्जापुर पहाड़ी की तरफ भाग गए थे, जिसके बाद झूरी सिंह को पकड़ने के लिए मेजर वार नेट, मेजर साइमन, पी वाकर, मिस्टर टकर और हेग की एक टीम बनाई गई थी। अंग्रेजोंं ने झूरी सिंह के परऊपुर गांव में कहर ढा दिया और धोखे से झूरी सिंह को पकड़ कर मीरजापुर के ओझला नाले पर फांसी दे दी गयी। आजादी के इस नायक को जो सम्मान मिलना चाहिये था। उसे भदोही ने कभी नहीं दिया। आज जिले में एक भी सड़क या कोई भी सरकार प्रतिष्ठान शहीद के नाम पर नहीं है।
अमर शहीद झूरी सिंह को जो सम्मान मिलना चाहिये वह नहीं मिल रहा है। शहीद स्मारक को पर्यटन स्थल घोषित करके विकास किया जाये ताकि वर्तमान और भावी पीढ़ी को शहीदों के बारे में जानकारी मिल सके। पहले ज्ञानपुर दुर्गागंज सड़क का नाम शहीद झूरी सिंह मार्ग था जिसे बदल दिया गया। शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों को राजनीति से दूर रखना चाहिये क्योंकि उन्हीं लोगों की वजह से हम आजादी की सांस ले रहे हैं। अमृत महोत्सव के तहत शहीद झूरी सिंह की जयंती मनायी जाये।
रामेश्वर सिंह
प्रपौत्र शहीद झूरी सिंह