Home मन की बात क्या गंगा पर राजनीति होनी चाहिए

क्या गंगा पर राजनीति होनी चाहिए

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हमार पूर्वांचल
साभार गूगल

जहां गंगा धर्म, संस्कृति और आस्था की प्रतीक मानी जाती है, वही गंगा पुत्र कहे जाने वाले मशहूर पर्यावरणविद जी डी अग्रवाल आईआईटी कानपुर से सेवानिवृत्त प्रोफेसर थे। जिन्होंने अपना जीवन गंगा की निर्मलता और अविरलता सुनिश्चित करने में समर्पित कर दिया। ऐसे कितने भगीरथ गंगा की स्वच्छता व निर्मलता के लिए अपने प्राण त्यागेंगे। गंगा को अविरल बनाने के लिए गंगा एक्ट की मांग को लेकर 22 जून 2018 से अनशन पर बैठे पर्यावरणविद प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ ज्ञानस्वरूप सानंद का गुरुवार को निधन हो गया। प्रोफेसर अग्रवाल पिछले 111 दिन से अनशन पर थे और उन्होंने मंगलवार से जल भी त्याग दिया था। जिसके बाद बुधवार को उन्हें प्रशासन ने जबरन उठाकर ऋषिकेश के एम्स में भर्ती कराया, जहां 86 वर्षीय जीडी अग्रवाल ने अंतिम सांस ली, अब उनके इस मृत्यु पर राजनीति शुरू हो गयी है।

शोक संदेशों के आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर लिखा, ”श्री जीडी अग्रवाल जी के निधन से दुखी हूं। सीखने, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण, विशेष रूप से गंगा सफाई की दिशा में उनके जुनून के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। मेरी श्रद्धांजलि।” वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अग्रवाल की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने गंगा नदी के लिए अपना जीवन त्याग दिया। वह उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे। हम आपको बताने चाहेंगे कि गंगा की स्वच्छता को लेकर यह पहला देहत्याग ममला नहीं है, इसके पहले काग्रेंस शासनकाल मे हरिद्वार के पास स्थित कनखल मे 1998 में निगमानंद के साथ स्वामी गोकुलानंद ने भी क्रशर व खनन माफिया के खिलाफ अनशन शुरू किया था।

हमार पूर्वांचल
स्वामी निगमानंद:
साभार गूगल

अलग-अलग समय पर अनशन करने के बाद निगमानंद सरस्वती का 13 जून 2011 को देहरादून स्थित जौलीग्रांट अस्पताल में निधन हो गया था। हालांकि उनकी मौत को हत्या करार देते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा जांच भी की गई थी, लेकिन गंगा के लिए जान देने वाले निगमानंद की मृत्यु से अब तक पर्दा नहीं उठ सका है। स्वामी गोकुलानंद ने मांग आगे बढ़ाते हुए अनशन किया। वर्ष 2013 में वह एकांतवास के लिए गए थे, जिसके बाद नैनीताल के बामनी में उनका शव मिला था। आरोप लगा था कि उन्हें जहर दिया गया था। अब सवाल यह उठता है, कि इस भारतवर्ष की प्राण माने जाने वाली जीवदानी गंगा पर हमारे इस समाज ने ध्यान क्यों नहीं दिया? क्या गंगा की स्वच्छता, निर्मलता, अविरलता का पुरा जिम्मा इन कलयुग के भगीरथो पर ही है। मै तो यही मानता हूं कहा से इस समाज का ध्यान गंगा पर जायेगा।

हमारा समाज तो बस प्याज-प्रेट्रोल की किमतो पर ही बस राजनीति करना व तख्त पलटना जानती है। गंगा के स्वच्छता पर तो बहुत बड़े -बड़े वादे 1984 से ही गंगा एक्शन एक्ट से ही किया जाता है, पर जमिनी हालात पर देखा जाए तो इसकी सच्चाई बस इतना ही है कि असल मे इन दावो पर अमल से पहले योजनाएं स्वर्ग सिधार जाती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो गंगा आक्सीजन सोखने मे क्षमतावान है। गंगा विश्व की एकमात्र ऐसी नदी है जिसके जल मे एन्टीवैक्टीरिया पाया जाता है, इसके जल मे वर्षों गंध व किड़े नहीं लगते। जब इतने बड़े पैमाने मे गंगा प्रकृतिक औषधीय गुणों का भरमार है तो हमारा समाज इनके स्वच्छता के लिए प्रण क्यो नहीं लेता।

गंगा को साफ करना भारतवर्ष के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बनती जा रही है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती गंगा में हर तरफ से आ रहा मल-मूत्र का कचरा, औद्योगिक कचरा, बूचडखानों का कचरा, धार्मिक कर्मकाण्डी अनुष्ठानों का कचरा है। जैसाकि उपरोक्त मे आपको बताया 1984 में गंगा एक्शन एक्ट के तहत बेसिन में सर्वे के बाद अपनी रिपोर्ट में गंगा के प्रदूषण पर गंभीर चिंता जताई थी। इसके आधार पर पहला गंगा एक्शन प्लान 1985 में अस्तित्व में आया। इसके तहत काम शुरू भी किया गया, लेकिन सफलता बेहद कम मिली। यह 15 साल चला। इस पर 901 करोड़ रुपये खर्च हुए। मार्च 2000 में इसे बंद कर दिया गया। इसी बीच अप्रैल 1993 में तीन और नदियों यमुना, गोमती और दामोदर के साथ गंगा एक्शन प्लान-दो शुरू किया गया, जो 1995 में प्रभावी रूप ले सका।

वहीं मोदी सरकार ने 2014 में नमामि गंगे कार्यक्रम शुरू किया। 1995 से 2014 तक की गंगा सफाई की इन योजनाओं पर 4,168 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इसमें छोटी-बड़ी 927 योजनाओं पर काम कर रही हैं। गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। अब हमारे समाज को भी इस विषय में जागृत होना चाहिए। इसके साथ ही धार्मिक भावनाएँ आहत न हों इसके भी प्रयत्न करते हुए सबको संकल्पित होना जरूरी हो गया है। नमामि गंगे योजना के अन्तर्गत 7304 करोड़ रुपये सरकार गंगा सफाई के लिए पानी की तरह बहा दिया, फिर भी 1.3 अरब लीटर गंदगी अभी भी निकला गया। इतना सबकुछ होने के बावजूद गंगा के अस्तित्व पर संकट के बादल छाया है,और उसपर राजनीति भी हो रही है।

गंगा के निर्मलता, स्वच्छता, अविरलता के लिए जब तक हमारा समाज संकल्पित नहीं होगा तब तक प्रोफेसर जी डी अग्रवाल उर्फ ज्ञानस्वरूप सानंद, निगमानंद सरस्वती, स्वामी गोकुलानंद जैसे भागीरथ का देहत्याग चलता रहेगा और उसपे राजनीति होती रहेगी। क्योंकि गंगा स्वच्छता के नाम से खरबो रूपयों का खेल अनवरत चला आ रहा है और इन भगीरथो के देहत्याग एक दुविधा बनी रहेगी, क्योंकि निगमानंद, गोकुलानंद के बाद अब प्रो जीडी अग्रवाल के मृत्यु पर अगुलियां उठनी शुरु हो गयी है। क्योंकि एम्स हास्पीटल के कर्मचारियों द्वारा उनके इलाज के नाम से जबरजस्ती उन्हें उठाकर ले जाने के कुछ घण्टों मे उनकी मृत्यु भी संदेहास्पद बन बैठा है।

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