मुंबई। लालबाग के तेलीगल्ली मे रहनेवाले नवयुवको के आदर्श बिनोद कुमार सुबेदार सिंह का जन्म बलिया जिले के ही परीखङा बस्ती मे १९६६ मे हुआ था। अपने माता पिता के ज्येष्ठ पुत्र ये राजकुमार जब ३ वर्ष के ही हुए तभी अपने माता पिता के साथ मुंबई चले आये एवं शिक्षा दीक्षा, अध्ययन पाठ आदि मुंबई मे ही ग्रहण किये जिसके कारण इन्हे हिन्दी एवं भोजपुरी के अलावा मराठी एवं गुजराती भाषाओ का अचछा खासा ज्ञान हासिल हो चुका है। जिसके कारण १८ वर्ष की अवस्था पूर्ण होते ही इन्होने तेलीगल्ली मित्र मंडल की सदस्यता स्वीकार कर ली। २१ वर्ष की अवस्था पूर्ण होते ही आदिनाथ क्रीङा मंडल एवं चिंतामणि प्रतिष्ठान का भी कार्यभार सम्हालते हुए अपने सामाजसेवी छवि की चमक विखेरने लगे।
समाजसेवा करने का जज्बा जब इन्हे झकझोरा तभी ये बलिया तथा छपरा जिले के तकरीबन आठ दस नवयुवको को खत लिखकर बुलवाए एवं अपने ही घर पर रखकर अपने ही एक कंपनी मे जहा ये नौकरी करते थे सबको रोजगार उपलब्ध कराये। जिसमे कृष्णा सिंह, शम्भू सिंह, विनोद सिंह, दीनेश सिंह, सुनिल सिंह, रणंजय सिंह तथा लालबाग के अपने पङोसी रफीक तथा आरिफ ताम्बोली आदी सबको रोजगार दिलाकर अपने समाजसेवी की गतिविधियाँ और तेज कर दी।
बता दें कि इतने जनों को निजी कंपनियो मे रोजगार देने के बाद भी जब इनका जी नही भरा तो इन्होने महाराष्ट्र सरकार मे अपनी सेवाँए देने की ठान ली और अंततः१९९० मे इन्होने मुंबई मे चलनेवाली बेस्ट बसो मे बतौर कंडक्टर की नौकरी ज्वाईन कर ली।
बतातें चले कि आठ दस घंटे डयूटी करने के बाद भी २४ घंटो के दिन रात मे मात्र ६ घंटा सोनेवाले श्री सिंह आज भी बाकी समय का योगदान ये समाजसेवा मे ही देते रहते है। इसी कङी मे वे लालबाग का राजा सेवा संस्था से जुङकर अबतक ये ९००० से भी उपर बुजूर्गो एवं मन्नतमांगनेवालो के जरुरत मंदो को लालबाग के सुप्रसिद्ध गणपत्ति वप्पा का आशिर्वाद दिला चुके है।
गौरतलब हो कि दूध मे घुले हुए शक्कर की तरह सभी सम्प्रदाय के नवयुवको मे घुल चुके श्री सिंह की इस भूमिका मे उनकी पत्नी मंजू सिंह, पुत्र सुमित सिंह और आकाश सिंह का भी बङा योगदान है तथा माताजी किस्मातो कुँअर का भी भरपूर आशिर्वाद है जिससे कि देर रात को ३ बजे भी घर पर आनेवाले श्री सिंह के साथ पूरा परिवार कंंधे से कंधा मिलाकर खङा रहता है। और तेली गल्ली के सर्व रहिवासी दिन मे कही भी दिखते ही हाय बिनोद भाई, हैलो बिनोद भाई की गूँज रटते फिरते है।