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स्मृति ईरानी : सास भी कभी बहू थी से अमेठी तक का सफर

स्मृति ईरानी

फिल्म अभिनेत्री से नेता बनी स्मृति ईरानी एक बार फिर चर्चा में हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ ताल ठोंक चुकी श्रीमती ईरानी एक बार फिर 2019 में राहुल गांधी के खिलाफ मैदान में उतर चुकी हैं। चुनाव हारने के बाद भी 2014 में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई नरेंद्र मोदी सरकार में स्मृति ईरानी पहले शिक्षा मंत्री रहीं और उसके बाद उन्हें कपड़ा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई। स्मृति लगातार राहुल गांधी के खिलाफ भाषणों हमलावर रहती हैं। राहुल गांधी के बहाने वह अमेठी की जनता को साधने में जुटी हुई हैं। राजनीति में आने से पहले स्मृति ईरानी टेलीविजन का चर्चित चेहरा रही हैं। दिल्ली के मध्यवर्गीय परिवार में पैदा हुई स्मृति टीवी के जरिये घर-घर में प्रसिद्ध हुई और फिर राजनीति में आकर चर्चित हुई।

स्मृति ईरानी दिल्ली में मध्यवर्गीय परिवार में 23 मार्च 1976 को पैदा हुईं। उनके पिता पंजाबी और मां बंगाली हैं। तीन भाई-बहनों में स्मृति सबसे बड़ी हैं। परिवार की आर्थिक सहायता के लिए स्मृति ने दसवीं कक्षा के बाद ही काम करना शुरू कर दिया था। वह सौंदर्य उत्पादों का प्रचार करती थीं और उन्हें इसके बदले दिन में 200 रुपए मिलते थे। लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। 1998 में स्मृति ने ‘मिस इंडियां’ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया लेकिन वह फाइनल तक नहीं पहुंच पाईं। इसके बाद स्मृति ने मुंबई जाने की ठानी। मुंबई में शुरुआती दिनों में स्मृति ने आजीविका चलाने के लिए मैकडॉन्लड्स में भी काम किया।

स्मृति ने मुंबई में रहने के दौरान खुद की आजीविका चलाते हुए मनोरंजन इंडस्ट्री में ऑडिशन देना शुरू किया। 2001 में स्मृति ईरानी ने पारसी व्यवसायी जुबिन ईरानी से शादी कर ली। स्मृति ईरानी के दो बच्चे हैं। उनके बेटे का नाम जौहर और बेटी का नाम जौइश है।

एकता के सीरियल ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के जरिए स्मृति ईरानी घर-घर में प्रसिद्ध हो गईं। इस नाटक में उनके किरदार ‘तुलसी’ को काफी प्रसिद्धि मिली। तुलसी के करेक्टर के लिए स्मृति ईरानी को कई पुरस्कार भी मिले। इस नाटक के अलावा स्मृति ने ‘ये है जलवा’ शो को भी होस्ट किया। यह डांस रियलिटी शो था जो कि 2008 में ऑन एयर हुआ था। टीवी सीरियल के अलावा स्मृति ने बंगाली फिल्म में भी काम किया है। इसके बाद स्मृति राजनीति में आ गईं।

स्मृति ईरानी ने साल 2003 में भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा। उन्होंने महाराष्ट्र यूथ विंग का उपाध्यक्ष बनाया गया। साल 2004 में स्मृति ईरानी ने चांदनी चौक से कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल के खिलाफ चुनाव लड़ा। लेकिन वह चुनाव हार गई। स्मृति चुनाव तो हार गईं लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें भाजपा की केंद्रिय समिति की एग्जक्यूटिव मेंबर बनाया गया। 2010 में स्मृति ईरानी पार्टी की राष्ट्रीय सचिव एवं महिला विंग की प्रसिडेंट बनाई गईं।

स्मृति ईरानी के लीडरशिप कौशल एवं कड़ी मेहनत के बदौलत उन्हें साल 2014 में अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ उतारा गया। हालांकि स्मृति लोकसभा चुनाव तो हार गईं लेकिन उन्होंने राहुल गांधी को कड़ी चुनौती दी। उनके कौशल को देखते हुए जब मोदी लहर की बदौलत सत्ता में भाजपा आई तो उन्हें मानव संसाधन मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई। स्मृति मोदी कैबिनेट की सबसे युवा महिला सदस्य बनीं। बाद में जब मोदी मंत्रीमंडल का पुर्नगठन हुआ तो स्मृति ईरानी को टेक्सटाइल मिनिस्ट्री की जिम्मेदारी सौंपी गई।

2011 में स्मृति ईरानी को राज्यसभा भेजा गया। एक साल बाद उन्हें भारतीय जनता पार्टी का वाइस-प्रसिडेंट बनाया गया। स्मृति ईरानी 2011 से लेकर मई 2014 तक कोयला एवं स्टील कमिटी की सदस्य रहीं। 26 मई 2014 को स्मृति ईरानी मानव संसाधन विकास मंत्री बनीं। वह कई विवादों में भी घिरी। पहला विवाद उनकी शिक्षा को लेकर हुआ। विपक्ष ने उनपर जमकर हमला किया और यहां तक कहा गया कि वह शिक्षा मंत्री बनने की योग्यता नहीं रखती हैं।

दरअसल, इस विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई जब स्मृति ईरानी के 2004 एवं 2014 के शैक्षणिक योग्यता में अलग-अलग बात बताई गई। 2004 में स्मृति ईरानी ने एफिडेविट के जरिए दिल्ली यूनिवर्सिटी से आर्ट डिग्री में स्नातक होने की बात लिखी। इसमें कहा गया कि उन्होंने 1996 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉरस्पोडेंस से स्नातक की डिग्री ली है।

लेकिन जब 2014 में स्मृति ईरानी अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ रहीं थी तो उन्होंने 1994 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से कॉमर्स पार्ट-1 में स्नातक होने की बात लिखी। इसके बाद विवाद शुरू हुआ। इसके अलावा जेएनयू एवं हैदराबाद यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कॉलर रोहित वेमूला की आत्महत्या के मामले में भी स्मृति ईरानी विवादों में आई।

फिलहाल 2014 में राहुल गांधी से चुनाव हारने के बाद केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में उन्हें मौका मिला, लेकिन व्यस्तता के बाद भी वे अमेठी से हमेशा जुड़ी रही। अमेठी में विकास कार्यों को जारी रखा और 2019 में राहुल गांधी को परास्त करने की मुहिम में लग गयी हैं।

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