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क्या भाजपा सरकार में एसओ राजेश पाण्डेय को ईमानदारी या ब्राह्मण होने की मिली सजा?

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यदि कोई अधिकारी अपने काम को सही तरीके से न करे तो उसे सजा मिलनी चाहिये क्योंकि पुलिस अधिकारी आम जनता की सुरक्षा के लिये ही होता है। उसकी सही कार्यर्शली ही सरकार की सही छवि जनता के सामने प्रस्तुत की जाती है, लेकिन जब किसी पुलिस अधिकारी को सही कार्य करने के लिये सजा दे दी जाये तो सोचना होगा कि हमारे प्रदेश की कानून व्यवस्था किसी पटरी पर जा रही है। सवाल यह है कि एसओ राजेश पाण्डेय को ईमानदारी से काम करने की या फिर ब्राह्मण होने की सजा मिली है?

क्या सत्ता में आसीन व्यक्ति अपने पद की गरिमा को इस तरह भूल जाता है कि वह ईमानदारी से काम करने वाले एक पुलिस अधिकारी को सिर्फ इसलिये सस्पेण्ड करवा देता है कि उसे अपनी जाति के एक आरोपी की नाक बचानी है। उसे सिर्फ इसलिये सस्पेंड करा देता है कि उसकी जाति का एक लड़का एक ब्राह्मण लड़की को भगा ले जाता है और जिस थाना क्षेत्र से लड़की को भगाया जाता है उस थाना क्षेत्र का एसओ अपने काम को ईमानदारी से करता है, लेकिन इत्तफाक से वह भी उसी जाति का होता है जिस जाति का पीड़ित है।

पिछले 18 अगस्त को उंज थाना क्षेत्र के वहिदा से एक लड़की का अपहरण कर लिया जाता है। इस मामले में लड़की के पिता द्वारा आरोपी युवक और उसके परिजनों के खिलाफ मुकदमा लिखाया जाता है। इसके बाद त्वरित कार्रवाई करते हुये दो आरोपी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया जो कानूनी प्रक्रिया के तहत ही आता है। सोचने वाली बात है कि जब 18 तारीख को मुकदमा दर्ज किया गया था तो उसकी रिपोर्ट भी एसपी भदोही को मिली होगी। फिर घटना के एक सप्ताह बाद किसी दबाव में एसओ को सस्पेंड किया गया।

इस मामले को लेकर सोशल मीडिया में भी सरकार की छीछालेदर हो रही है। सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि भाजपा सरकार में एसओ राजेश पाण्डेय को ब्राह्मण होने की सजा मिली है। जबकि एसओ के उपर आरोप लगाया गया है कि वे पीड़ित परिवार के रिश्तेदार हैं। जबकि पीड़ित परिवार से एसओ का दूर दूर तक का रिश्ता नहीं है। यदि इस मामले में डिप्टी सीएम को हस्तक्षेप भी करना था तो वे निष्पक्ष जांच का आदेश दे सकते थे किन्तु बिना किसी जांच के किसी पुलिस अधिकारी को सस्पेंड करा देना कहां तक न्यायोचित है। सोचने वाली बात है कि राजनीति पर जाति इतनी भारी हो गयी है कि न्याय अन्याय की परिभाषा ही बदल गयी है।

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